हाईकोर्ट ने कहा- अल्पसंख्यक स्कूलों में प्रमोशन कोटे का नियम असंवैधानिक नहीं
इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट (HC) के तीन जजों की पूर्णपीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अल्पसंख्यक स्कूलों में टीचरों के प्रमोशन के कोटे का नियम असंवैधानिक नहीं है।
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले, न्यायमूर्ति पंकज मित्तल तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पूर्णपीठ ने प्रबंध समिति स्वामी लीला शाह आदर्श सिंधी इंटर कालेज आगरा की याचिका में उठे वैधानिक प्रश्न को निर्णीत करते हुए दिया है। कॉलेज में 8 एलटी ग्रेड सहायक अध्यापक का पद रिक्त हुआ। जिला विद्यालय निरीक्षक ने रेग्युलेशन के तहत 25 फीसदी प्रोन्नति कोटा लागू करने का निर्देश दिया। जिसकी वैधता को चुनौती दी गयी थी।
प्रमोशन का नियम बाधक नहीं
कोर्ट ने कहा है कि अल्पसंख्यकों के लिए अनुच्छेद 30 के अंतर्गत मिले स्कूल के प्रबंधन के अधिकार में प्रमोशन का नियम बाधक नहीं है। इसी के साथ इस फैसले में जजों ने कहा है कि इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट के तहत बने रेगुलेशन 7(2)(ए) अल्पसंख्यक कॉलेजों के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत मिले अधिकार के विपरीत नहीं है।
सभी कॉलेजों पर समान रूप से लागू
उक्त रेगुलेशन के तहत माध्यमिक विद्यालयों से संबद्ध प्राथमिक स्कूलों के सहायक अध्यापकों की प्रोन्नति का 25 प्रतिशत कोटा निर्धारित किया गया है। याची अल्पसंख्यक कॉलेज का कहना था कि रेगुलेशन उसके प्रबंधकीय अधिकारों में हस्तक्षेप है। इसके जवाब में कोर्ट ने कहा है कि यह सभी कॉलेजों पर समान रूप से लागू है।
अल्पसंख्यक कॉलेजों को कोई अलग से छूट नहीं
अल्पसंख्यक कॉलेजों को कोई अलग से छूट नहीं दी गई है। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार को शिक्षक और छात्रों के हित में मानक तय करने का अधिकार है। यदि इसे लागू नहीं किया गया तो कॉलेज की शैक्षिक गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है। कोर्ट ने कहा है कि प्रबंधन के अधिकार में कुप्रबंधन का अधिकार शामिल नहीं है।
ये भी कहा कोर्ट ने
कोर्ट ने यह भी कहा है कि संविधान का अनुच्छेद-16 प्रोन्नति पाने का मूल अधिकार देता है। यदि इसे लागू नहीं किया गया तो यह स्टाफ के शोषण को अनुमति देना होगा। कोर्ट ने कहा है कि राज्य वित्त पोषित कॉलेजों पर रेग्युलेशन लागू होगा।
न्यायमूर्ति ए.पी.शाही ने प्रकरण पूर्णपीठ को संदर्भित किया था। याची का कहना था कि उसके प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा है कि अल्पसंख्यक कॉलेजों के प्रबंधन का अधिकार प्रबंधन समिति को है, किंतु सरकार को अध्यापकों की सेवा शर्तें व शैक्षणिक गुणवत्ता मानक तय करने का अधिकार है। यह प्रबंधकीय अधिकार में हस्तक्षेप नहीं है। सरकार अध्यापक और स्टाफ के हित में शोषण रोकने के लिए नियम बना सकता है। कोर्ट ने कहा है कि यह न केवल छात्रों के कल्याण के लिए है अपितु प्रभावी प्रबंधन के लिए है।
कोर्ट ने कहा है कि रेग्युलेशन किसी भी तरह से अल्पसंख्यक विद्यालयों के गठन व प्रबंधन में हस्तक्षेप नहीं करता बल्कि यह अध्यापकों और स्टाफ को शोषण से बचाता है। यह संवैधानिक अधिकारों व जनहित के बीच संतुलन स्थापित करता है।