आने ही वाला है राम मंदिर पर फैसला: अयोध्या के बारे में ये बातें नहीं जानते होंगे आप
अयोध्या के इतिहास को सबसे पुराना इतिहास कहा जाता है। वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: अयोध्या के इतिहास को सबसे पुराना इतिहास कहा जाता है। वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है।
रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग 144 कि.मी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग 36 कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी। कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है।
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पांच तीर्थंकरों का हुआ था जन्म
यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम एवं जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।
इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। क्षत्रियों में दशरथी रामचन्द्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था।
प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। इस प्राचीन नगर के अवशेष अब खंडहर के रूप में रह गए हैं जिसमें कहीं कहीं कुछ अच्छे मंदिर भी हैं।
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18वीं तथा 19वीं शताब्दी में बने थे ये मन्दिर
वर्तमान अयोघ्या के प्राचीन मंदिरों में सीता रसोई तथा हनुमानगढ़ी मुख्य हैं। कुछ मंदिर 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में बने। जिनमें कनकभवन, नागेश्वरनाथ तथा दर्शनसिंह मंदिर दर्शनीय हैं। कुछ जैन मंदिर भी हैं।
यहाँ पर वर्ष में तीन मेले लगते हैं - मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त तथा अक्टूबर-नंवबर के महीनों में। इन अवसरों पर यहाँ लाखों यात्री आते हैं। अब यह एक तीर्थस्थान के रूप में ही रह गया है।
भगवान श्रीराम की लीला के अतिरिक्त अयोध्या में श्रीहरि के अन्य सात प्राकट्य हुये हैं जिन्हें सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। अलग-अलग समय देवताओं और मुनियों की तपस्या से प्राकट्य हुये। इनके नाम भगवान गुप्तहरि, विष्णुहरि , चक्रहरि , पुण्यहरि , चन्द्रहरि , धर्महरि और बिल्वहरि हैं।
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