सिसक कर चलने को मजबूर हैं औद्योगिक इकाइयां, बहुत बुरा है हाल
जनपद जौनपुर में स्थापित औद्योगिक क्षेत्रों का निरीक्षण करने पर जो सच सामने आया है वह शुद्ध रूप से शासन प्रशासन की लापरवाहीयो को साफ बयां कर रहा है।
जौनपुर । बड़े एवं लघु उद्योगों सहित छोटे मोटे कल कारखानों के विकास हेतु सरकार अथवा सरकारी तंत्र कागजी बाजीगरी का खेल चाहे जितना करें लेकिन भौतिक रूप से सच कुछ और ही नजर आता है। सुविधाओं के अभाव में औद्योगिक इकाइयां सिसक सिसक कर चलने को मजबूर हैं। जनपद जौनपुर में स्थापित औद्योगिक क्षेत्रों का निरीक्षण करने पर जो सच सामने आया है वह शुद्ध रूप से शासन प्रशासन की लापरवाहीयो को साफ बयां कर रहा है। जनपद के लगभग सभी औद्योगिक परिक्षेत्र में समस्याओं का अम्बार लगा हुआ है। लेकिन जिम्मेदार इससे बेखबर पड़े हुए हैं।
यह है जिलों की कहानी
यहाँ बता दे कि जिले का ही नहीं पूर्वांचल का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र जनपद जौनपुर में मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर जौनपुर इलाहाबाद मार्ग पर स्थित मुंगराबादशाहपुर के पास सन् 1989 में 508 एकड़ क्षेत्रफल में औद्योगिक क्षेत्र सतहरिया की स्थापना भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के द्वारा किया गया ताकि पूर्वांचल का विकास हो सके और यहाँ के बेरोजगारो को रोजगार मिल सके। स्थापना के बाद कुछ समय तक तो यहाँ उद्यमियों द्वारा उद्योग लगाने की होड़ लगी थी। लेकिन इसके प्रति शासन प्रशासन की अपेक्षाओं ने उद्यमियों के हौसलों को पस्त कर दिया लोग यहाँ अपना पैसा फंसाने से परहेज कर लिए। स्थापना के तीन दशक बाद भी यह औद्योगिक क्षेत्र विकास करने के बजाय अपने विनाश की स्थिति में पहुँच गया है।
तमाम संकटों के बाद भी आज यहाँ पर लगभग 110 बड़ी छोटी औद्योगिक इकाइयां कार्यरत रह कर अपने उत्पादन कर रही है। लेकिन यह भी सच है कि शासन प्रशासन की उपेक्षाओ के कारण यहाँ पर लगभग 50 प्रतिशत उद्यमी अपनी इन्डस्ट्री बन्द कर पलायन कर गये है। वहीं आज भी पेप्सिको, अभिनव स्टील, एच आई एल सरिया, हाकिंस प्रेसर कूकर, पीसीआई, सुडिको वायो फटलाइजर, कलर फोम, जाली आदि सहित तमाम छोटी इकाइयां जो हाकिंस का पार्ट बनाती है अपना उत्पादन करने के साथ ही बेरोजगारो के रोजगार का साधन बनी हुई है।
बिजली के खम्बे हुए जर्जर
यहाँ की समस्याओ के सन्दर्भ में इन्डियन इन्डस्ट्री एशोसियेसन (आई आई ए) के अध्यक्ष बृजेश कुमार यादव से बात करने पर उन्होंने बताया कि औद्योगिक क्षेत्र सतहरिया में पानी बिजली सड़क नाली सहित तमाम समस्याएं सुरसा की तरह मुँह बाये खड़ी है जिम्मेदार लोगों से उद्यमी बराबर अपनी समस्या बताते है लेकिन शासन प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगता है। बिजली की समस्या यह है कि बिजली आपूर्ति के लिए लगाये गये खम्भे तार जर्जर हो गये है जिसके कारण प्रतिदिन घन्टो बिजली बाधित रहती है ऐसे में जनरेटर का प्रयोग करने पर उत्पाद मंहगा होना लाजिमी है। सड़कें लगभग 80 प्रतिशत जर्जर हो गयी है। जिसकी मरम्मत नहीं करायी जाती है।
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ट्रान्सफार्मर जल जाने पर उसे बदलने में हफ्तों लग जाते है। शासन प्रशासन की लापरवाहीयो के कारण कच्चा माल न मिल पाने के कारण सतहरिया क्षेत्र में लगा पावर प्लांट बन्द हो गया। जिससे यहाँ की औद्योगिक इकाइयों के समक्ष बिजली की बड़ी समस्या है। सतहरिया में रेलवे की सुविधा नहीं होने के कारण यहाँ पर कच्चा माल लाने में ट्रान्सपोरेशन खर्च अधिक पड़ता है। कठिनाई अलग से होती है। तीन दशक बीत जाने के बाद भी आज तक रेलवे लाइन सतहरिया के लिए सरकार ने नहीं बिछाया है। यही नहीं बैंक के लोग उद्यमियों को सहयोग नहीं करते है कई बार इस समस्या के निराकरण हेतु प्रशासन सहित जिम्मेदार लोगों से कहा गया लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
जल्द काम होगा शुरू
यहाँ की समस्याओ के बिषय में सतहरिया के मैनेजर स्वेताप रंजन से मोबाइल पर बात करना चाहा तो वे अवकाश पर थे। इसके बाद सतहरिया कार्यालय से कर्मचारी ने फोन किया जब उनसे समस्याओं की बात किया तो उन्होंने बताया कि सतहरिया में 14 हजार मीटर केबिल एवं जर्जर खम्भो को बदलने के लिए बिजली विभाग को धन दिया जा चुका है जल्द ही काम शुरू होने की संभावना है। इसी तरह जर्जर सड़कों की मरम्मत के लिए पीडब्लूडी विभाग को पैसा दिया जा चुका है। कच्चे माल की आपूर्ति में उद्यमियों की सुविधा हेतु नीभापुर से सतहरिया तक रेलवे लाइन बिछाने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को कई बार भेजा गया था पुनः प्रस्ताव भेजा गया है।
अधिकारी मस्त है
ये तो रही सतहरिया की समस्या लेकिन पूरे जनपद में स्थापित औद्योगिक क्षेत्र त्रिलोचन, सिधवन, शाहगंज, सिद्दीकपुर की हालत सरकारी उपेक्षाओ को बयां करती है। पूरे जनपद में लगभग 214 बड़ी छोटी औद्योगिक इकाइयां है। जिसकी व्यवस्थाओं के देख रेख का दायित्व यूपीएसआईडीसी पर है। सरकारी उपेक्षाओ के शिकार उद्यमी परेशान है और अधिकारी मस्त है। सरकारी उपेक्षाओ के कारण त्रिलोचन में कोल इंडिया एवं पार्ले के अलावां अन्य बड़ी इकाइयां पलायन करने को मजबूर हो गयी है।
रिपोर्टर - कपिल देव मौर्य,
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