दीपांकर जैन
नोएडा: प्राधिकरण की लाखों वर्गमीटर जमीन अवैध निर्माण की भेंट चढ़ चुकी है। इसमें प्राधिकरण अधिकारियों की लापरवाही साफ दिखाई पड़ती है। समय-समय पर प्राधिकरण के आला अधिकारियों को अवैध निर्माण की जानकारी देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गयी। आईजीआरएस सेल पर शिकायत के साथ मुख्यमंत्री तक से शिकायत की गई, लेकिन अधिकारियों ने सिर्फ कागजों पर अवैध निर्माण को रोकने की बात कहकर इतिश्री कर ली। वर्तमान में प्राधिकरण के पास 5 व 10 प्रतिशत विकसित भूखंड देने के लिए जमीन का टोटा है।
शहर का विकास 19 लाख 600 हेक्टेयर जमीन पर किया गया। इसके लिए 81 गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया गया। प्राधिकरण ने अपनी योजनाओं के लिए जिन किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया,उनका उन्हें मुआवजा भी दे दिया गया, लेकिन प्राधिकरण इसके रखरखाव की बात भूल गया। इस लापरवाही का नतीजा अब सामने आ रहा है। यहां लाखों वर्गमीटर जमीन भूमाफिया के कब्जे में है जिन पर रिहायशी इमारतों का निर्माण किया जा चुका है। लोग इन इमारतों के निर्माण की शिकायत भी करते रहे मगर दबाव बनने पर महज काजगी खानापूर्ति ही की गई। इसके बाद न तो प्राधिकरण की ओर से कोई कार्रवाई की गई और न ही लखनऊ से किसी तरह के निर्देश दिए गए। अफसरों की जेब भारी होती रही और सारे मामले कागजों में निपटते रहे। वर्तमान में सदरपुर, सलारपुर, गढ़ी चौखंडी, बरौला, हरौला, हाजीपुर के अलावा दर्जनों गांवों में लाखों वर्गमीटर जमीन पर अवैध कब्जा बना हुआ है।
प्राधिकरण नहीं कर रहा कार्रवाई
अवैध कब्जे को लेकर प्राधिकरण ने 1757 इमारतों को चिन्हित किया जिसमें से 1326 इमारतों का सत्यापन किया जा रहा है। सत्यापन के बाद देखा जाएगा कि कितनी इमारतें अवैध हैं। वैसे लोगों का सवाल है कि उन इमारतों का क्या होगा जिनकी शिकायत प्राधिकरण की अलमारियों में धूल फांक रही है। ऐसा ही एक मामला सदरपुर गांव सेक्टर-45 का है। यहां कई हजार वर्गमीटर जमीन पर भूमाफिया का कब्जा है। यहां खसरा नंबर 196 से 215 तक रिहाइशी इमारत का निर्माण किया जा चुका है। इसकी शिकायत सेक्टर-45 आरडब्ल्यूए अध्यक्ष द्वारा प्राधिकरण में की गई। शिकायत पर 13 नवंबर 2014 को आवंटियों को ध्वस्तीकरण का नोटिस जारी किया गया। इस खसरे के लिए किसान को प्राधिकरण ने 44 लाख रुपए का मुआवजा तक दे दिया था। इसके बाद प्राधिकरण ने न तो जमीन की फेंसिंग की और न ही अधिसूचित होने का बोर्ड लगाया।
नतीजा यह हुआ कि यहां भूमाफिया का कब्जा जमा रहा। ध्वस्तीकरण का नोटिस वर्क सर्किल-3 की ओर से जारी किया गया मगर कार्रवाई नहीं हुई। 15 अप्रैल 2015 को प्राधिकरण ने उक्त खसरे की पैमाइश कराई। कार्रवाई न होने पर आरडब्ल्यूए अध्यक्ष ने मामले की शिकायत तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी व दो बार मुख्यमंत्री तक से की। यही नहीं 7 जून 2017 को आईजीआरएस सेल में भी शिकायत की गई। इस पर कागजी अमल करते हुए संबंधित अधिकारी ने बिना मौके पर जाए ही लिख दिया कि तत्काल प्रभाव से निर्माण कार्य को रुकवा दिया गया है। दूसरी ओर असलियत में यहां तेजी से निर्माण होता रहा। वर्तमान में यहां छह मंजिला रिहाइशी इमारत बन चुकी है। अब तक न तो कोई कार्रवाई हुई और न ही ध्वस्तीकरण किया गया।
दर्जनों गांवों में अवैध कब्जा
वर्तमान में किसानों को पांच व 10 प्रतिशत जमीन देने के लिए प्राधिकरण को एक लाख 36 हजार वर्गमीटर जमीन की जरूरत है। इसे लेकर सीईओ को भी अवगत कराया जा चुका है जबकि दर्जनों गांवों में लाखों वर्गमीटर जमीन पर अवैध कब्जा जमाया जा चुका है। इन जमीनों का मुआवजा भी किसान उठा चुके है। किसान तो वहां से चले गए, लेकिन उनकी जमीनों पर भूमाफिया व कालोनाइजरों ने कब्जा जमा लिया। जिनका सिंडीकेट इतना बड़ा है कि उन्हें उखाडऩा इतना आसान नहीं है।
सुपरवाइजर का होता है खेल
गांवों में कब्जा कराने का खेल सुपरवाइजर का होता है। प्रत्येक सेक्टर व गांव में एक वाच ऑफिस होता है जिसका कार्य अवैध कब्जे पर नजर रखना और इसकी जानकारी तुरंत प्राधिकरण व प्रशासन के आला अधिकारियों को देना होता है। खेल यहीं पर होता है। सुपरवाइजर कागज और कलम लेकर अतिक्रमण कर्ता के पास पहुंच तो जाता है, लेकिन वहां से सही जानकारी आगे नहीं जाती। वह अपनी रिपोर्ट में जमीन को खाली ही बताता है जबकि वास्तव में वहां एक इमारत का निर्माण हो चुका होता है।