Phoolan Devi: शहादत दिवस मनाकर बैंडिट क्वीन को किया याद, पैतृक गांव में आयोजित हुआ कार्यक्रम

Bandit Queen Phoolan Devi: बन्दूक के जरिये पहचान बनाने वाली, बैंडिट क्वीन फूलन देवी की आज पुण्यतिथि मनाई गई है। एकलव्य सेना ने फूलन देवी की 23वीं पुण्यतिथि को शहादत दिवस के रूप में मनाया।

Report :  Afsar Haq
Update:2024-07-25 17:20 IST

Bandit Queen Phoolan Devi (Pic: Newstrack)

Jalaun News: जालौन बीहड़ के गांवों में अपनी बन्दूक के जरिये पहचान बनाने वाली, बैंडिट क्वीन फूलन देवी की आज पुण्यतिथि मनाई गई है। एकलव्य सेना ने फूलन देवी की 23वीं पुण्यतिथि को शहादत दिवस के रूप में मनाया। सेना के पदाधिकारियों ने फूलन के पैतृक गांव शेखपुर गुढा में पहुंचकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस दौरान आसपास क्षेत्र के अलावा कई जिले के लोग कार्यक्रम में शामिल हुए। पूर्व सांसद एवं बैंडिट क्वीन नाम से प्रख्यात दस्यू, फूलन देवी को कौन नहीं जानता है, जिसकी दहशत से कई राज्यों के लोग नाम से कांपते थे। बैंडिट क्वीन फूलन देवी का जन्म जालौन जिले के कालपी तहसील के यमुना पट्टी के बीहड गांव ग्राम शेखपुर गुढा में 10 अगस्त 1963 में एक गरीब परिवार में हुआ था। गरीब परिवार में जन्मी लड़की और उसके परिवार पर उसके चाचा के द्वारा जुर्म किया गया तो उसने बीहड का रास्ता अपना लिया। अपने चाचा को सबक सिखाने के लिए फूलन देवी, बीहड में कूद कर डकैत बन गई थी।

11 वर्ष की उम्र में हुई थी 50 वर्ष के बुजुर्ग से शादी

घर में आर्थिक तंगी के कारण फूलन के पिता देवीदीन ने फूलन को समझा बुझाकर 11 वर्ष की उम्र में ही उसकी शादी 50 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति से कर दी थी। जहां फूलन को ससुराल में ससुराल पक्ष के द्वारा मारपीट एवं प्रताड़ित किया जाने लगा। फिर वह अपने गांव में वापस आकर रहने लगी थी। उसके चचेरे भाई ने उसको झूठे मुकदमे में फंसा कर जेल भेज दिया था। 20 साल की उम्र में जब वह जेल से रिहा हुई तभी उसने गांव वापस आई और फिर दोबारा अपने ससुराल पहुंच गई लेकिन ससुराल के लोगों ने फिर भी उसको सही सलामत नहीं रखा और वह वापस अपने गांव फिर से आ गई।

गिरोह में हुई शामिल 

20 वर्ष की उम्र में ही अपने रिश्तेदार के माध्यम से वह एक गिरोह में शामिल हो गई थी। गिरोह में भी कई प्रकार की विकट परिस्थितियों से जूझना पड़ा। इसके बाद उसकी मुलाकात कानपुर देहात के ग्राम दमनपुर निवासी डकैत श्री राम, लाल राम हुई। उनके द्वारा फूलन देवी को वहमई गांव ले जाकर कमरे में बंद कर प्रताड़ित किया। इसकी जानकारी फूलन के पुराने साथियों को हुई। वह लोग छुपते छुपाते फूलन को छुड़ाने गांव पहुंच गए। वहां से फूलन को 3 सप्ताह बाद वापस निकाल कर ले आए। इसके बाद फूलन ने अपने पुराने साथी मानसिंह मल्हाह की सहायता से एक गिरोह का पुनर्गठन किया और उसकी वह सरदार बन गई।

बहमई में हर अत्याचार का सात माह बाद लिया बदला, किया नरसंहार

गिरोह का सरदार बनने के बाद वह बहमई गांव में हुए अत्याचार का बदला लेने की सोचती रही। ठीक 7 महीने के बाद उसे यह बदला लेने का मौका मिला। 14 फरवरी 1981 को बदले की आग में उबल रही फूलन अपने गिरोह के साथ पुलिस वेश में गांव पहुंच गई। जहां पर एक शादी का आयोजन हो रहा था जिसमें कुछ बाहरी गांव के लोग भी आए हुए थे। फूलन और उसके लोगों ने बंदूक के जोर पर पूरे गांव को घेर लिया तथा ठाकुर जाति के अलावा सभी मर्दों को एक लाइन में खड़ा होने का आदेश दिया। जिसमें से उनके पुराने गिरोह के दो साथी भी थे लेकिन वह वहां पर नहीं थे जिन्होंने फूलन के साथ दुष्कर्म किया हुआ था। अपने दुश्मनों को वहां पर न देखकर फूलन देवी पूरी तरह बौखला गई और ग्रामीणो पर गोलियों की बौछार कर दी। इससे मौके पर ही 20 लोगों की मृत्यु हो गई थी जिसमें मात्र एक चंदन सिंह जिंदा बचा था। मरने वालों में 17 ठाकुर एवं तीन अन्य जातियों के लोग शामिल थे। इन लोगों में गांव के ही मुस्लिम नजीर खान तथा दूसरा रामावतार कठेरिया और तुलसीराम मौर्य शामिल थे।

शेरसिंह राणा ने की थी फूलन की हत्या

जालौन बहमई के इस कांड से लेकर ठाकुर जाति में फूलन के खिलाफ रोष व्याप्त हो गया था जिसमें ठाकुर बिरादरी के लोग उसको जान से मारने के लिए अपनी गोटे बिछाने लगे थे जिसमें 38 साल की उम्र में शेर सिंह राणा के द्वारा 25 जुलाई 2001 को दिल्ली सांसद आवास के सामने फूलन को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। इसी को लेकर तभी से मल्हाह जाति के लोग फूलन देवी की मृत्यु को शहादत के रूप में उनके पैतृक गांव में मनाते हैं। शहादत दिवस के मौके पर शेखपुर गुढा प्रधान रामबाबू निषाद, प्रधान पवनदीप निषाद, प्रधान उमाशंकर निषाद, प्रधान बाल सिंह निषाद,।पूर्व प्रधान कमलेश निषाद, राम बिहारी निषाद के अलावा एकलव्य सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष कश्यप, रुक्मणी, माता प्रसाद, केवी निषाद, मोहन निषाद, इंद्रजीत निषाद, श्री कृष्ण निषाद सहित आसपास क्षेत्र एवं अन्य जिलों के लोग शामिल रहे।

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