झांसी: कृषि उपज पर MSP ने ही बढ़ाई किसानों की मुश्किलें, जानिए कैसे
जानकारों का मानना है कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून किसान के हित में नहीं है। न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे कानून को अगर सरकार गारन्टी दे दे तो फिर देश में लोगों को दालें, तेल, मोटा आनाज, फल और सब्जियां मिलना मुश्किल हो जाएगा
झांसी: कृषि बिल के खिलाफ किसानों के चल रहा आंदोलन अब तक बेनतीजा है। किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी समर्थक नारों व जेल में बंद विवादास्पद लोगों की रिहाई की मांग को लेकर एक बात तो स्पष्ट होती जा रही है, कुछ राजनीतिक दल किसानों के आंदोलन की आड़ में अपनी राजनीति कर रहे हैं। वह आंदोलन की दिशा ही बदल रहे हैं। इन राजनीतिक दलों की किसानों की समस्याओं से सहानुभूति नजर नहीं आ रही है।
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फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून किसान के हित में नहीं है
जानकारों का मानना है कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून किसान के हित में नहीं है। न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे कानून को अगर सरकार गारन्टी दे दे तो फिर देश में लोगों को दालें, तेल, मोटा आनाज, फल और सब्जियां मिलना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इन फसलों की उपज सुनिश्चित नहीं होती।
कृषिविद् वी के सचान का कहना है कि कल्पना करें कि यदि देश का प्रत्येक किसान गेहूं, धान, गन्ना ही बोने लगे तो क्या होगा। भू गर्भ जल समाप्त बहुत शीघ्र समाप्त हो जाएगा, आटा, चावल, चीनी के अलावा और कुछ खाने को नहीं मिलेगा, भूमि की उर्वरता शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी। भला हो कुदरत का कि देश के कुछ हिस्सों में पानी नहीं है जिस कारण किसानों को वर्षा आधारित फसलें उगानी पड़ती हैं। यदि देश के प्रत्येक क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा हो जाये तो फिर धान, चावल, गन्ना के अलावा किसान कोई फसल नहीं उगाएगा।
यदि सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात उठी तो क्या होगा-
श्री वी के सचान का कहना है कि कृषि का विषय दर्शन शास्त्र का विषय है। कृषि हमारी वह प्राचीन सनातन संस्कृति है जो सबको साथ लेकर चलती है, किन्तु दुर्भाग्य है कि इस बात को न तो देश की नीतियां समझने को तैयार है क्योंकि उन्हें वोटों का लालच है। सरकारी मशीनरी यह बात इस लिए नहीं समझना चाहती कि उसे नोटों का लालच है। वहीं दूसरी ओर देश का किसान इसे गनता से समझ नहीं पा रहा है, इसका कारण है कि वह अपनी कोई ठोस राय नहीं बना पा रहा है। आन्दोलन की आग में तो राजनैतिक पार्टियां अपनी रोटियां सेंक रही हैं।
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लाभ/हानि के नियम समझने होंगे-
व्यवपार में यदि एक पक्ष को लाभ होता है तो दूसरे को नुकसान उठाना पड़ता है। कृषि संस्कृति का नियम है कि किसी को लाभ नहीं और किसी को हानि नहीं। किन्तु जब कृषि को लाभ का, व्यवपार का, उद्योग का धंधा बताया जाने लगा तो हानि का हिस्सा प्रकृति एवं जैव विविधता को उठाना पड़ा। जिसका परिणाम यह हुआ कि भूमि बंजर हो गयी, भूगर्भ जल नीचे, चला गया, जैव विविधता नष्ट हो गयी, रासायनिक खादों की वजह से भोजन में स्वाद नहीं बचा, जहर खाकर हम बीमार हो गए। इन सबकी वजह से किसानों को अधिक नुकसान हुआ।
रिपोर्ट- बी.के.कुशवाहा
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