Jhansi News: तीन माह से डॉक्टर विहीन चल रहा हैं रेल कारखाना का स्वास्थ्य केंद्र

Jhansi News: कर्मचारी एवं उनके परिवार के सदस्य परेशान हैं। दवाइयों की एक्सपायरी डेट नजदीक होने से लाखों रुपए की दवाइयां खराब होने की कगार पर हैं। बिना काम के वेतन पर लगभग 6 लाख रुपए से अधिक की रकम पैरामेडिकल स्टाफ पर फूंके जा रहे हैं।

Report :  B.K Kushwaha
Update: 2024-01-18 06:46 GMT

झांसी में डॉक्टर विहीन चल रहा हैं रेल कारखाना का स्वास्थ्य केंद्र (न्यूजट्रैक)

Jhansi News: घोर आश्चर्य! उत्तर-मध्य रेल कारखाना डीजल शैड एवं सवारी डिब्बा मरम्मत कारखाना के लगभग छह हजार से अधिक कर्मचारी एवं उनके परिजनों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बना एकमात्र रेलवे कारखाना स्वास्थ्य केंद्र, बैगन रिपेयर कारखाना, तीन माह से डॉक्टर विहीन चल रहा है। कर्मचारी एवं उनके परिवार के सदस्य परेशान हैं। दवाइयों की एक्सपायरी डेट नजदीक होने से लाखों रुपए की दवाइयां खराब होने की कगार पर हैं। बिना काम के वेतन पर लगभग 6 लाख रुपए से अधिक की रकम पैरामेडिकल स्टाफ पर फूंके जा रहे हैं।

फैक्ट्री एक्ट के तहत डिस्पेंसरी होना जरुरी

रेल कारखाना की स्थापना फैक्ट्री एक्ट के तहत की गई थी । जिसमें कर्मचारियों की दुर्घटना अथवा चोटिल होने पर उसको तुरंत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए डिस्पेंसरी का होना जरूरी होता है। इसी नियम के तहत स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना वर्कशॉप के मुख्य कारखाना प्रबंधक कार्यालय (सीडब्ल्यूएम ) परिसर के अंदर की गई थी। बाद में 70 के दशक में इसको सीडब्ल्यूएम ऑफिस के सामने नए भवन में स्थानांतरित कर दिया गया । उस समय ही इसमें दो चिकित्सक (1 महिला एवं 1 पुरुष), 2 फार्मासिस्ट, 2 ड्रेसर, 2 नर्स, 1 चपरासी एवं 1 सफाई कर्मी की नियुक्ति की गई थी।

इस केंद्र में लग चुका हैं ग्रहण?

बताते हैं कि वर्ष 2000 तक पूरा स्टाफ यहां कार्य करता था । प्रसूति की भी व्यवस्था यहां थी। इसके बाद ही इस केंद्र पर गृहण लगना प्रारंभ हुआ। जब महिला चिकित्सक को मंडलीय स्वास्थ्य केंद्र बुला लिया गया।

सात लोगों का स्टॉफ पांच बजे ड्यूटी खत्म होने का करता हैं इंतजार

आज आलम यह है कि एक पुरुष मात्र डॉक्टर को भी लगभग 3 माह पहले वहीं बुला लिया गया। आज भी दर्जनों मरीज प्रतिदिन केंद्र पर आते हैं। इसमें रिटायर्ड रेलकर्मी की भी संख्या काफी होती है। चैनल के अंदर पसरा सन्नाटा देखकर वह समझ बैठते हैं कि आज डॉक्टर अवकाश पर होंगे । जब हकीकत से रूबरू होते हैं कि यहां अब डॉक्टर की तैनाती ही नहीं है ,तो हैरान हो जाते हैं। यहां पर पदस्थ सात लोगों का स्टाफ बाहर गुंनगुनी धूप सेंकता हुए निठल्ला बैठा रहता है। पांच बजे ड्यूटी खत्म होने का इंतजार करता है। इसकी ही उन्हें पूरी पगार मिल रही है। प्रतिमाह लगभग 6 लाख रूपए से अधिक की रकम रेलवे उनके वेतन में लूट रहा है।

स्टोर रुम में पड़ी दवाइयां हो रही हैं खराब

जानकारों का कहना है कि इन तीन माह में स्टोर रूम में दवाइयां पड़ीं-पड़ीं ही खराब हो रही हैं। कई दवाइयों की एक्सपायरी डेट निकल गई थी। जिनको नष्ट कर दिया गया है। शेष बची लाखों रुपए कीमत की दवाइयां भी इसी तरह नष्ट हो जाएंगी ? देखना होगा कि रेल विभाग इसे धीमे-धीमे कब बंद करता अथवा डॉक्टर को पुनः भेजकर इसको पुराने स्वरूप में लाता है ? उल्लेखनीय है रेलवे स्वास्थ्य केंद्र ,रानी लक्ष्मी नगर में भी पैरामेडिकल स्टाफ इसी तरह कार्यरत है। यहां पर भी लगभग एक दशक से कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं है।

कर्मचारी यूनियनों की कार्यप्रणाली पर भी उठ रहे सवालिया निशान

स्वास्थ्य केंद्र के आसपास कई रेलवे कर्मचारी यूनियनों के पदाधिकारी भी क्वार्टर में निवास करते हैं । हजारों की संख्या में कर्मचारी अस्पताल के सामने से निकल कर रेलवे वर्कशॉप में कार्य करने जाते हैं। इसके बावजूद तीन माह से डॉक्टर की तैनाती नहीं करा पाने से यूनियनों की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न उठ रहे हैं। क्या इनको कर्मचारियों एवं उनके परिवारी जनों के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है ?

चिकित्सक नहीं, फिर भी दवाइयों की आपूर्ति जारी

रेल प्रशासन की कार्यशैली भी बड़ी अजीब है। जब स्वास्थ्य केंद्र पर चिकित्सक की तैनाती नहीं ,तो फिर दवाइयों की आपूर्ति किस लिए की जा रही है ? रेल चिकित्सालय के अधिकारियों के इसमें शामिल होने की ’गंध’ आती है। जानकारों का कहना है कि दवाइयों की आपूर्ति की निष्पक्ष जांच होने पर बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।

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