90वें के दशक में जब कल्याण सिंह को माना जाता था भगवा का पर्याय
कल्याण सिंह भगवा राजनीति के पर्याय हुआ करते थे। हर चुनाव में पूरे देश की निगाहें कल्याण सिंह पर ही टिकी रहती थी।
लखनऊ। 90 के दशक में जब अयोध्या आंदोलन चरम पर था और भगवा राजनीति का चारों ओर असर दिख रहा था। उस दौरान कल्याण सिंह भगवा राजनीति के पर्याय हुआ करते थे। हर चुनाव में पूरे देश की निगाहें कल्याण सिंह पर ही टिकी रहती थी। फिर चाहे वह दक्षिण भारत हो या उत्तर भारत।जबकि सांसद साक्षी महराज ही ऐसे नेता हैं, जो यदाकदा अपने बयानों से भगवा रंग को चटक करने की कोशिश करते रहते हैं। वर्ना भगवा राजनीति करने वाले भाजपा के सारे नेता आज परिदृश्य से बाहर हैं।
भाजपा ने अकेले अपने दम पर 1991 में यूपी की सत्ता हासिल
90 के दशक में कल्याण सिंह, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा, विनय कटियार, स्वामी चिन्मयानन्द, स्वामी सुरेशानन्द, रामविलास वेदान्ती, कौशलेन्द्र गिरि की पहचान 'भगवा राजनीति' करने वालों की ही श्रेणी में हुआ करती थी। मंदिर आंदोलन के कारण ही भाजपा ने अकेले अपने दम पर 1991 में यूपी की सत्ता हासिल की थी, जिसमें कल्याण सिंह की मुख्य भूमिका थी। उत्तर प्रदेश में 2009 तक का कोई भी चुनाव हो कल्याण सिंह केंद्र बिंदु रहा करते थे।
उस दौरान कल्याण सिंह हो या विनय कटियार, उमा भारती हों या साक्षी महाराज। देश में इनकी पहचान भगवा के इसी चटक रंग के सहारे बनी। इस दौर में उमाभारती और साध्वी ऋतम्भरा के भाषण के कैसटों की धूम हुआ करती थी। यह बात अलग है कि उमा भारती अब शांत हैं और ऋतम्भरा राजनीति से किनारा कर चुकी हैं। उस दौरान साध्वी निरंजन ज्योति आंदोलन की मुख्य धारा में नहीं थी, लेकिन केन्द्र में मंत्री बनने तक का सफर भगवा के इसी चटक रंग के सहारे उन्होंने तय किया।
बजरंग दल से भाजपा में शामिल होकर फैजाबाद से तीन बार सांसद बने90वें के दशक में जब कल्याण सिंह को माना जाता था भगवा का पर्यायभाजपा के फायर ब्रांड नेता कहे जाने वाले विनय कटियार की धार अब कमजोर हो चुकी है। मंदिर आंदोलन के कारण ही वह बजरंग दल से भाजपा में शामिल होकर फैजाबाद से तीन बार सांसद बने। वह इन दिनों में सक्रिय राजनीति में तो हैं लेकिन 'भगवा राजनीति' से लगभग किनारा कर चुके हैं। मंदिर आंदोलन से जुडे़ रहे स्वामी चिन्मयानन्द तो भगवा राजनीति करते करते केन्द्र में गृह राज्य मंत्री तक बने।