Karsevak Shahidi Diwas: 2 नवंबर 1990 को कारसेवकों पर बरसी थी गोलियां, खून से लाल हो गया था सरयू का पानी
Karsevak Shahidi Diwas: अयोध्या में 2 नवंबर 1990 को हुई घटना को लोग आज भी नहीं भूल पाए हैं। जब रामधुन करते कारसेवकों पर गोलियां बरसा दी गई। कारसेवकों के खून से सरयू नदी का पानी लाल हो गया था।
Karsevak Shahidi Diwas : भारतीय इतिहास में 2 नवंबर 1990 का दिन काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में इस तारीख को अयोध्या की जमीन खून से लाल हो गई थी। इसी दिन यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर पुलिस के जवानों ने कारसेवकों पर गोलियां चलाई थी। उस भयानक मंजर को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं। गोलीकांड में 40 कारसेवकों की मौत हुई थी। कहा तो ये भी जाता है कि, भले ही यूपी पुलिस के जवान आदेश का पालन कर रहे थे, मगर उनकी आंखें नम थी।
अयोध्या में भले ही आज भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, लेकिन इसके पीछे कुर्बानियां देने वालों की याद में कारसेवक शहीदी दिवस (Karsevak Balidan Diwas) मनाया जा रहा है। बुधवार (02 नवंबर 2022) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी ट्रेंड कर रहा है।
ढांचे के 1.5 किमी तक बैरिकेडिंग
32 साल पहले अयोध्या में आज ही के दिन साधु-संत और कारसेवक हनुमान गढ़ी के लिए कूच कर रहे थे। यूपी में तब मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगातार अयोध्या पहुंचने लगी थी। हालांकि, प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया था। इस वजह से श्रद्धालु शहर में प्रवेश नहीं कर पा रहे थे। उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों ने तथाकथित बाबरी मस्जिद ढांचे के 1.5 किलोमीटर दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी। चप्पे-चप्पे पर पुलिस वालों की नजर थी। हालात ये थे कि, परिंदा भी पर नहीं मार सकता था।
हनुमान गढ़ी तक पहुंचे कारसेवक
कर्फ्यू के बावजूद कारसेवक अयोध्या में प्रवेश की कोशिश करते रहे। अचानक भीड़ बेकाबू हो गई। 2 नवंबर 1990 को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए। यह विवादित ढांचे के बेहद करीब था। यहां आपको ये जानना भी जरूरी है कि, 2 नवंबर से पहले 30 अक्टूबर 1990 को भी कारसेवकों पर गोलियां चली थी। इस गोलीबारी में 5 लोगों की जान चली गई थी। इस घटना के बाद अयोध्या ही नहीं बल्कि देश का माहौल पूरी तरह गरमा गया था। इस गोलीकांड के बाद ही अयोध्या में कर्फ्यू लगाया गया था।
कारसेवकों ने इसे माना 'चैलेंज'
दरअसल, मुलायम सिंह की सरकार ने कारसेवकों से कहा था कि, यहां 'परिंदा भी पर नहीं मारेगा।' बस, इसी बात को विश्व हिन्दू परिषद और कारसेवकों ने चैलेंज के रूप में लिया। लाखों की संख्या में कारसेवक अयोध्या में इकठ्ठा हो गए। उमा भारती, अशोक सिंघल, साध्वी ऋतंभरा, स्वामी वामदेवी और विनय कटियार के नेतृत्व में कारसेवकों का बड़ा हुजूम कारसेवकपुरम के करीब से गुजरता हुआ दिगंबर अखाड़े तक पहुंच गया। यहीं पर गोलीबारी हुई।
हनुमानगढ़ी चौराहे के पास बिछी लाशें
कारसेवक राम धुन करते आगे बढ़ते जा रहे थे। तभी आदेश मिलने के बाद गोलियां चलने लगी। कई कारसेवक मारे गए। मरने वालों में कोलकाता के हीरालाल कोठरी के दोनों बेटे राम कुमार कोठारी और शरद कुमार कोठारी भी थे। कोठरी बंधुओं की शहादत को आज भी याद किया जाता है। इसके अलावा अन्य जगहों से आए कारसेवक भी शहीद हुए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उस वक्त हनुमानगढ़ी चौराहे के पास कई कारसेवकों की लाशें बिछ गई थी।
सरकारी गाड़ियां फूंक दी
इस बीच गुस्साए कारसेवकों ने सरकारी गाड़ियों में आग लगाना शुरू किया। कारसेवकों द्वारा कई गाड़ियां फूंक दी गई। सरकार उस हालात को संभालने में नाकाम दिख रही थी। इससे पहले 30 अक्टूबर को भी कारसेवक विवादित ढांचे की गुंबद पर चढ़ चुके थे, जब 02 नवंबर को 'जय श्री राम' के उद्घोष के साथ वही होता दिखा तो गोलियों ने उन्हें खामोश कर दिया। उस समय कई कारसेवक सरयू पुल पर भी मौजूद थे। जान बचाने के लिए सरयू नदी में कूद गए। कहते हैं कारसेवकों के शरीर से निकले खून से सरयू का पानी लाल हो गया था।
इस हृदय विदारक घटना के बावजूद कारसेवकों ने अयोध्या में मारे गए अपने साथियों के शवों के साथ प्रदर्शन किया। आखिरकार 4 नवंबर को कारसेवकों का अंतिम संस्कार हुआ। उनके अंतिम संस्कार के बाद उनकी राख को देश के अलग-अलग हिस्सों में ले जाया गया था।