दिल्ली चुनाव: दलितों के दिलों पर केजरीवाल का कब्जा

इसके साथ ही दिल्ली में 20 विधानसभा सीटों पर 20 प्रतिशत से ज्यादा दलित है। 15 सीटे ऐसी है जिन पर दलित मतदाताओं की संख्या 15 से 20 प्रतिशत तक है। जबकि 10 से 15 प्रतिशत तक दलित मतदाताओं की मौजूदगी वाली 17 सीटे है। इसी तरह केवल 15 सीटे ही ऐसी है जहां दलितों की संख्या 15 प्रतिशत से नीचे है।

Update:2020-02-11 14:47 IST
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मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर बादशाह बनने के लिए दलितों यानी वंचितों को रिझाना बहुत जरूरी हैै। दिल्ली की अधिकांश सीटों पर मौजूद दलित मतदाता के समर्थन के बगैर दिल्ली को जीतना मुश्किल हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे है कि दलितों ने केजरीवाल को खुलकर वोट दिया है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में 10 सीटे तो ऐसी है जहां दलित वोट जिधर चला जायेगा उसे हराना बहुत मुश्किल हो जाता है। 25 प्रतिशत से ज्यादा दलित मतदाताओं वाली इन सभी सीटों पर आम आदमी पाटी को सफलता मिली है।

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दलित बाहुल्य इन सीटों में सुल्तानपुर माजरा से मुकेश कुमार अहलावत, मंगोलपुरी से अलका लांबा, करोलबाग से विशेष रवि, मादीपुर से गिरीश सोनी, देवली से प्रकाश, अम्बेडकरनगर से अजय दत्त, कोंडली से कुलदीप कुमार, सीमापुरी से राजेन्द्र पाल गौतम, गोकलपुर से सुरेंद्र कुमार तथा त्रिलोकपुरी से रोहित कुमार जीते है। इन 10 सीटों में से सात सीटे तो ऐसी है, जिन पर आप ने जीत की हैट्रिक लगाई है।

20 विधानसभा सीटों पर 20 प्रतिशत से ज्यादा दलित है

इसके साथ ही दिल्ली में 20 विधानसभा सीटों पर 20 प्रतिशत से ज्यादा दलित है। 15 सीटे ऐसी है जिन पर दलित मतदाताओं की संख्या 15 से 20 प्रतिशत तक है। जबकि 10 से 15 प्रतिशत तक दलित मतदाताओं की मौजूदगी वाली 17 सीटे है। इसी तरह केवल 15 सीटे ही ऐसी है जहां दलितों की संख्या 15 प्रतिशत से नीचे है।

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दरअसल, आर्थिक तौर पर बहुत ज्यादा मजबूत न होने के कारण इस वर्ग के लिए दिल्ली के महंगे अस्पतालों में इलाज और महंगी शिक्षा इनकी क्षमता के बाहर थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर आए केजरीवाल के मोहल्ला क्लीनिक और शिक्षा के लिए किए गए प्रयासों का सबसे ज्यादा लाभ इन दलित वर्ग के लोगों को हुआ। इसके अलावा 200 यूनिट तक बिजली बिल माफ करने का केजरीवाल का एलान भी इस वर्ग के लिए बहुत बड़ी राहत समझी गई।

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