अलीगढ़ के हैं वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील, जानिए इनके बारे में सबकुछ
देश के वरिष्ठ वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील ने कोरोना पर गठित वैज्ञानिक सलाहकार समूह के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है।
लखनऊ: देश के जीनोम सिक्वेंसिंग के काम में समन्वय करने वाले वैज्ञानिक सलाहकार ग्रुप के प्रमुख डॉ शाहिद जमील (Virologist Shahid Jameel) के अचानक इस्तीफा देने से कई बातें निकल कर आती हैं। जिनमें सबसे प्रमुख है एक वैज्ञानिक सोच और सरकारी सिस्टम के बीच की खाई। भारत में वैज्ञानिक व साक्ष्य आधारित सोच की कमी और कोरोना त्रासदी (Coronavirus Pandemic) को जोड़ कर अंतरराष्ट्रीय मीडिया (Internasionale Media) में काफी कमेंट (Comment) किया जा चुका है।
अलीगढ़ में जन्मे और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) और आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) में शिक्षा पाए डॉ जमील भारत के प्रख्यात वायरोलॉजिस्ट (Virologist) हैं। शाहिद जमील अशोका यूनिवर्सिटी (Ashoka University) में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंस के डायरेक्टर भी हैं। डॉ जमील को वर्ष 2000 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (Shanti Swarup Bhatnagar Prize) दिया गया था।
जीनोम स्ट्रक्चर की पहचान करने का मिला था जिम्मा
पिछले साल केंद्र सरकार (Central Government) ने उन्हें कोरोना वायरस (Coronavirus) के जीनोम स्ट्रक्चर (Genome Structure) की पहचान करने का काम सौंपा था। इसके अलावा वो वायरस से जुड़े विभिन्न मसलों पर सलाह भी देते थे।
डॉ जमील खरी खरी बात कहने के लिए जाने जाते हैं। कोरोना महामारी के दौरान पिछले कुछ वक्त में वह सरकार के रुख की आलोचना करते रहे हैं। उन्होंने ने कोरोना की महामारी से निपटने के सरकार के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए थे।
केंद्र को दी थी ये सलाह
कुछ दिनों पहले उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स (New York Times) में एक लेख लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में वैज्ञानिक साक्ष्य आधारित नीति निर्माण के लिए काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने केंद्र को सलाह दी थी कि हर मसले पर वैज्ञानिकों की बात सुननी चाहिए और जिद्दी रवैये से नीति बनाने से बचना चाहिए। उनका मानना था कि कोरोना की हर लहर के पीछे नए वेरिएंट का हाथ है। जमील ने लिखा था कि डाटा के आधार पर निर्णय नहीं लिए जा रहे हैं। यही वजह है कि महामारी नियंत्रण से बाहर हो गई है।
डॉ जमील के इस्तीफा देने से जीनोम सीक्वेंसिंग के काम पर बहुत असर तो नहीं पड़ेगा। इतना जरूर है कि इस इस्तीफे से सरकार और वैज्ञानिकों के बीच दरार और सरकार में वैज्ञानिक सोच की कमी की बात जरूर निकल कर आएगी।
फैक्ट फ़ाइल
- जमील ने 1984 में वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी से बायोकेमिस्ट्री में पीएचडी की थी।
- पीएचडी के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो में मॉलिक्यूलर वाइरोलॉजी पर काम किया।
- 1988 में जमील भारत लौट आये और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी के साथ जुड़ गए और वहां वाइरोलॉजी रिसर्च ग्रुप की स्थापना की। 25 साल तक वे इसके प्रमुख रहे।
- 2013 में वे वेलकम ट्रस्ट डीबीटी इंडिया के सीईओ बने। इस पद पर वो अब भी हैं।