लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक नजूल जमीन के अधिग्रहण के मामले में जांच का आदेश दिया है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि शहर में स्थित नजूल की एक जमीन का अधिकारियों ने अधिग्रहण करवा के करोड़ों का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को दिला दिया।
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यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने सैयद मोहम्मद हुसैन की याचिका पर सुनवाई के दौरान सम्बंधित तथ्यों पर सुओ मोटो लेते हुए पारित किया। नगर निगम के अधिवक्ता अमित कुमार द्विवेदी ने बताया कि याचिका पर सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि लखनऊ के रामतीर्थ रोड पर गाटा संख्या- 57 की जमीन को अधिग्रहित करने की कार्यवाही वर्ष 1999-2000 में शुरू की गई। यह जमीन एक नजूल लैंड थी व इसका क्षेत्रफल 86 हजार 483 वर्ग फुट था। इस जमीन को अधिग्रहित करने के बदले में ढाई करोड़ का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को 30 अप्रैल 2005 को दे दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि इस सम्बंध में स्पष्ट नियम हैं कि राज्य सरकार नजूल लैंड का अधिग्रहण सरकार नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि सरकार अपनी ही जमीनों के लिए न तो अधिग्रहण प्रक्रिया कर सकती है और न ही इसके लिए किसी को मुआवजा दे सकती है। नजूल लैंड के लिए एक प्राइवेट पार्टी को मुआवजा देकर राज्य सरकार और इसके विकास प्राधिकरण ने गैर कानूनी कार्य किया है।
सुनवाई के दौरान दलील दी गई कि प्राइवेट बिल्डर को लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी की अनुमति से ट्रांसफर की गई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि नजूल की जमीन को ट्रांसफर करने का अधिकार विकास प्राधिकरण को नहीं है, यह सिर्फ सरकार या कलक्टर कर सकता है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव, राजस्व को मामले की जांच विजिलेंस विभाग से कराने के आदेश दिए।
कोर्ट ने जांच रिपोर्ट पेश करने के तीन माह का समय दिया। साथ ही निर्देश दिया कि जांच में उन अधिकारियों की संलिप्तता का पता लगाया जाए जिन्होंने सरकार की ही जमीन का अधिग्रहण करवा दिया और एक बड़ी धनराशि मुआवजे के नाम पर बांट दी। मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च को होगी।