Gonda Train accident: अगर JE सुन लेता कीमैन की बात तो नहीं होता गोंडा ट्रेन हादसा और बच जाती चार जानें

Gonda Train accident: जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लखनऊ रेलवे डिवीजन के अंतर्गत आने वाले झिलाही सेक्शन के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को इस हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

Update: 2024-07-21 06:32 GMT

गोंडा में पटरी से उतरी डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस (सोशल मीडिया)

Gonda Train accident: अगर जेई कीमैन की बात सुन लेता तो गोंडा ट्रेन हादसा टल सकता था और चार लोगों की जान नहीं जाती। 18 जुलाई को यूपी के गोंडा जिले में मोतीगंज-झिलाही रेलवे स्टेशनों के बीच पिकौरा गांव के पास चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने का कारण सामने आया है। हादसे की जांच रिपोर्ट में रेलवे के इंजीनियरिंग सेक्शन की लापरवाही सामने आई है। इसी लापरवाही के चलते डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन के बेपटरी होने की बात कही गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस जगह पर ट्रेन पटरी से उतरी, वहां ट्रैक में चार दिन से बकलिंग (गर्मी में पटरी में फैलाव होना) हो रही थी। इसी के कारण 18 जुलाई को 70 किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से गुजर रही चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस की कुल 16 बोगियों पटरी से उतर गई थीं, जिसके बाद तीन एसी कोच ट्रैक पर पलट गए थे। हादसे में 4 लोगों की मौत हो गई और 30 से अधिक घायल हो गए थे।

फोन पर रेल ट्रैक के कमजोर होने का खतरा बताया था

डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले झिलाही के कीमैन का काम देख रहे रेलवे कर्मी ने जूनियर इंजीनियर को फोन पर रेल ट्रैक के कमजोर होने का खतरा बताया था। इसके बावजूद सेक्शन के अफसरों ने ट्रैक पर सावधानी बरतने के लिए कोई संदेश नहीं लगाया, जिससे अपनी फुल स्पीड में चल रही डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसे का शिकार हो गई। रेलवे द्वारा गठित जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लखनऊ रेलवे डिवीजन के अंतर्गत आने वाले झिलाही सेक्शन के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को इस हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रेल ट्रैक की बंधाई ठीक नहीं थी। मतलब गर्मी के कारण फैलने से ट्रैक ढीला हो गया था और उसे ठीक से कसा नहीं गया था।

एक घंटे पहले गड़बड़ी का चल चुका था पता

हादसे से करीब एक घंटा पहले मोतीगंज-झिलाही के बीच ट्रैक की गड़बड़ी का पता चल चुका था, उसके बाद भी रूट पर सावधानी बरतने का संदेश नहीं लगाया गया। अगर सावधानी बरतने का संदेश लगा होता तो डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस 70 किलोमीटर प्रतिघंटे की बजाय 30 किलोमीटर प्रतिघंटे की स्पीड से ही चलती और यह हादसा नहीं होता। हादसा 18 जुलाई की दोपहर 14ः28 बजे हुआ। मोतीगंज के स्टेशन मास्टर को 14ः30 पर जानकारी दिया गया था। ट्रैक की गड़बड़ी डिटेक्ट होने के बाद अफसरों ने साइट प्रोटेक्शन करने और कॉशन बोर्ड लगाने की जहमत नहीं उठाई और डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस को उसी ट्रैक पर फुल स्पीड में गुजरने दिया, जिसकी वजह से हादसा हुआ।

नॉर्थ ईस्टर्न रेलवे के 6 अफसरों की टीम ने चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन के लोको पायलट, मैनेजर, झिलाही और मोतीगंज के स्टेशन मास्टरों समेत कई कर्मचारियों के बयान और घटनास्थल का टेक्निकल मुआयना करने के बाद अपनी रिपोर्ट में झिलाही सेक्शन के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को इस ट्रेन हादसे का जिम्मेदार बताया है।

हादसे वाले स्थान पर नमी भी देखी गई

गोंडा, डिब्रूगढ़ व गुवाहाटी (मालीगांव) के 41 रेल अधिकारी व कर्मचारी लखनऊ डीआरएम आफिस में तलब किए गए हैं। माना जा रहा है कि उनके बयान दर्ज करने के बाद लापरवाही के लिए जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई हो सकती है। हादसे वाले स्थान पर रेलवे ट्रैक के आसपास जलभराव की बात भी कही जा रही है। कल 30 से अधिक रेलकर्मी मौके पर मुस्तैद रहे। गिट्टी व मिट्टी डालकर जहां पानी जमा था, उस स्थान को भरने का काम किया जा रहा था। यह भी संभावना जताई जा रही है कि हो सकता है जलभराव के चलते ट्रैक कमजोर हुआ हो और ट्रेन गुजरते समय मिट्टी धंसी हो, जो इस ट्रेन दुर्घटना का कारण बना। हालांकि, संयुक्त जांच टीम की रिपोर्ट से ही हादसे की असल वजह पता चलेगी। लेकिन इतना तो तय है कि अगर समय पर पटरी को सही कर दिया गया होता यह हादसा नहीं होता और चार जानें नहीं जातीं।

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