LU: नदी की मछलियों को हानि पहुंचा रही गोल्डफिश, ऑस्ट्रिया जाकर शोध करेंगे शिक्षक

Lucknow University: जंतु विज्ञान विभाग के शिक्षक डॉ. अमित त्रिपाठी गोल्ड फिश के परजीवी मोनोजेनिया से मीठे जल की मछलियों को होने वाले नुकसान व उसके निवारण के बारे में अध्ययन करेंगे।;

Written By :  Abhishek Mishra
Update:2024-04-15 12:58 IST

Lucknow University  (photo: social media )

Lucknow University: लखनऊ विश्वविद्यालय गोल्ड फिश के परजीवी से होने वाली बीमारियों के कारण जानने के लिए शोध करेगा। इस विषय पर शोध करने के लिए एलयू को शोध अनुदान मिला है। एक रिपोर्ट के अनुसार मीठे जल की मछलियों को घर में पाली जाने वाली गोल्डफिश हानि पहुंचा रही हैं।

शोध के लिए मिला अनुदान

एलयू के जंतु विज्ञान विभाग के शिक्षक डॉ. अमित त्रिपाठी गोल्ड फिश के परजीवी मोनोजेनिया से मीठे जल की मछलियों को होने वाले नुकसान व उसके निवारण के बारे में अध्ययन करेंगे। इसके लिए वह ऑस्ट्रिया जाएंगे। डॉ. त्रिपाठी दो महीने तक वहां की प्रयोगशाला में इस विषय पर शोध करेंगे। इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर समाधान को तलाशेंगे। इस विषय पर शोध करने के लिए सरकार की ओर से अनुदान दिया गया है।

घर-घर में पाई जाती है गोल्डफिश

डॉ. अमित त्रिपाठी ने मछलियों के पैरासाइट्स पर विशेष रूप से अध्ययन किया है। उन्होंने बताया कि गोल्डफिश भारतीय नस्ल की मछली नहीं है। इसकी सुंदरता और बाजार में कम दाम में उपलब्ध होने के कारण लोग इस अपने घर में पाल रहे हैं। एक्वेरियम में सबसे अधिक गोल्डफिश मछली देखने को मिलती हैं। कुछ समय बाद जब मछलियां बड़ी हो जाती हैं। तो इन्हें तलाब व नदियों में छोड़ देते हैं। जिससे मछलियों को नुकसान होता है। डॉ. त्रिपाठी के मुताबिक भारत का मत्स्य उद्योग बड़ा उद्योग है। यह अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। इसलिए इस विषय पर अध्ययन जरूरी है।

मनुष्य के लिए भी मोनोजेनिया घातक

मोनोजेनिया एक प्रकार के परजीवी हैं। जो मछलियों की त्वचा, गलफड़ों व पंखों पर पाए जाते हैं। यह परजीवी मछलियों को गंभीर बीमारियों से संक्रमित कर सकते हैं। गोल्डफिश मछली के परजीवी मोनोजेनिया से मीठे जल की मछलियां संक्रमित हो सकती हैं। इसके बाद यह मछलियां मनुष्य को भी संक्रमित कर सकती है।

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