Masane Ki Holi: काशी में दिखेगा अलग रंग, हरिश्चंद्र घाट पर ‘मसाने की होली’ आज,चिता की भस्म से होली खेलेंगे बाबा के भक्त

Masane Ki Holi: होली के मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं। देश के कुछ हिस्सों में अनोखी होली खेली जाती है जो लोगों के बीच चर्चा का विषय बन जाती है।;

Update:2025-03-10 10:22 IST

Masane Ki Holi (Photo: Social Media)

Masane Ki Holi: होली के मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं। देश के कुछ हिस्सों में अनोखी होली खेली जाती है जो लोगों के बीच चर्चा का विषय बन जाती है। यदि उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो मथुरा,वृंदावन,बरसाना और महादेव की नगरी काशी में होली का अलग ही अंदाज दिखता है। काशी में रंग भरी एकादशी के साथ होली की शुरुआत हो जाती है। रंग और गुलाल से तो होली हर जगह खेली जाती है मगर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में चिता भस्म के साथ खेली जाने वाली मसाने की होली पूरी दुनिया में विख्यात है।

वाराणसी के महाश्मशान मणिकार्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर चिता की भस्म के साथ खेली जाने वाली होली सबके लिए आकर्षण और कौतूहल का केंद्र बनती है। जलती चिताओं के बीच होली का यह अद्भुत और अनोखा नजारा सिर्फ काशी में ही देखने को मिलता है। इस दुर्लभ नजारे का साक्षी बनने के लिए देश-विदेश से काफी संख्या में लोग जुटते रहे हैं। इस अनोखी होली की शुरुआत आज हरिश्चंद्र घाट से होगी जबकि मणिकर्णिका घाट पर कल चिता की भस्म के साथ होली खेली जाएगी।


काशी छोड़कर कहीं और नहीं दिखता नजारा

जलती चिताओं के बीच होली खेलने का यह अनोखा नजारा काशी छोड़कर दुनिया में कहीं और नहीं दिखता। इस नजारे को देखने के लिए काफी संख्या में लोग महाश्मशान पर जुटते हैं। सोशल मीडिया पर भी इसके वीडियो जमकर शेयर किए जाते हैं जिसके कारण इस आयोजन को पहले ही काफी प्रसिद्धी हासिल हो चुकी है। चिता की भस्म के साथ खेली जाने वाली होली का नजारा देखने के लिए भारी भीड़ महाश्मशान पर उमड़ती है।

हरिश्चंद्र घाट पर आज खेली जाने वाली मसाने की होली के लिए तैयारी पूरी की जा चुकी हैं। अबकी बार इस होली के दौरान डीजे पर प्रतिबंध रहेगा। शहनाई,ढोल-मजीरा, तासा और डमरू समेत परंपरागत वाद्य यंत्रों को ही अनुमति दी जाएगी। इस दौरान बाबा कीनाराम आश्रम से हरिश्चंद्र घाट तक तीन किलोमीटर लंबी शोभायात्रा निकाली जाएगी। जुलूस में विभिन्न झाकियों के साथ बैंड पार्टी और ढोल नगाड़ा बजाने वाले शामिल रहेंगे। शोभा यात्रा में डमरू दल के साथ बाबा भोलेनाथ के पांच स्वरूप रहेंगे।


इस बार डीजे और साउंड सिस्टम पर प्रतिबंध

शोभा यात्रा के हरिश्चंद्र घाट पहुंचने के बाद बाबा मसान नाथ का भव्य श्रृंगार और आरती की जाएगी। आरती के बाद शोभायात्रा में शामिल और घाट पर मौजूद लोग चिता की भस्म के साथ होली खेलेंगे। हरिश्चंद्र घाट पर नागा साधुओं का टेंट लगे होने के कारण इस बार डीजे और साउंड सिस्टम पर प्रतिबंध लागू रहेगा।

अघोर पीठ हरिश्चंद्र घाट काशी पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चंद्रेश्वर कपाली बाबा ने बताया कि परंपरा अनुसार महादेव का पहला पूजन वैदिक विधि विधान से किया जाएगा। इसमें बाबा का रुद्राभिषेक किया जाएगा। दूसरा पूजन तंत्र के अनुसार भस्मों से किया जाएगा। इसमें चिता भस्म महाश्मशान महादेव को अर्पित की जाएगी और उसे साधु-संत मस्तक पर धारण करेंगे और इसके बाद चिता भस्म की होली आरंभ हो जाएगी।

उन्होंने बताया कि इस बार डीजे पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। कपाली बाबा ने कहा कि हर धार्मिक नगर की अलग अनूठी परंपरा है और मसाने की होली को लोकमान्यता के अनुसार देखा जाना चाहिए। भूत भावन भगवान शंकर का मुख्य श्रृंगार चिता भस्म है। काशी रूपी महाश्मशान में मसाने की होली को इसी परंपरा के अनुसार देखा जाना चाहिए।

चिता की भस्म से होली के पीछे क्या है मान्यता

चिताओं की भस्म के साथ खेली जाने वाली अनूठी होली के पीछे काफी प्राचीन मान्यता है। जानकारों का कहना है कि जब रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी। भगवान विश्वनाथ ने अपने गणों के साथ तो होली खेल ली मगर वे अपने प्रिय महाश्मशान पर भूत-प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल सके थे।

रंगभरी एकादशी से शुरू होने वाले पंच दिवसीय होली पर्व की अगली कड़ी में भगवान विश्वनाथ ने महाश्मशान पर भूत-प्रेत, पिशाच और अघोरियों संग चिता की भस्म के साथ होली खेली थी। यह परंपरा सदियों पुरानी बताई जाती है और आज भी इस परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है।

महाश्मशान पर बदला हुआ दिखता है माहौल

मोक्ष की नगरी माने जाने वाले काशी में चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती। यहां के महाश्मशान पर जलाने के लिए दूर-दूर के इलाकों से शव लाए जाते हैं। इसी कारण महाश्मशान पर हमेशा भीड़भाड़ बनी रहती है।

शवों को जलाए जाने के कारण घाट पर चारों ओर मातम और सन्नाटा तो जरूर पसरा रहता है मगर साल में एक दिन ऐसा भी आता है जब यहां खेली जाने वाली होली के कारण यहां का माहौल पूरी तरह बदला हुआ नजर आता है।

डमरू, घंटे-घड़ियाल, मृदंग और साउंड सिस्टम पर बजने वाले गानों के बीच अबीर-गुलाल के साथ हवा में चारों ओर चिता की भस्म उड़ाई जाती है। श्री काशी महाश्मशान नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता का कहना है कि मणिकर्णिका महाश्मशान पर चिता भस्म की होली सदियों से खेली जा रही है। इसे शास्त्र सम्मत न मानने वालों को इसकी प्राचीनता का पता नहीं है।


खेलें मसाने में होरी दिगंबर

इस संबंध में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र का गाया हुआ गीत खेलैं मसाने में होरी दिगंबर काफी प्रसिद्ध हो चुका है। यूं तो छन्नूलाल मिश्र ने होली से जुड़े हुए अनेक गाने गाए हैं मगर इस गाने को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि हासिल हुई।

पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित छन्नूलाल मिश्र कजरी, ठुमरी, भजन और चैती आदि के लिए जाने जाते हैं। वैसे खेलैं मसाने में होरी उनका सबसे चर्चित गीत है। इस गीत के बोल इस प्रकार हैं-

गीत

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी।

भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी।

लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,

चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, कौनऊ बाधा

ना साजन ना गोरी, ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी

पीटैं प्रेत-थपोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी

भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाए बिरिज की गोरी

धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर, खेलैं मसाने में होरी।


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