Mahoba News: आठ साल से नंगे पांव चल रहा ये शख्स, अकेले के दम पर इतिहास रचने की जद्दोजहद

Mahoba News: बात पर्यावरण संरक्षण की हो या स्वास्थ्य सेवाओं की, तारा चंद अपने ही बूते इसको सुधारने का प्रयास किया करते हैं। महोबा की लचर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने के लिए तारा चंद पाटकर विरोधस्वरूप पिछले आठ बरस से नंगे पांव चल रहे हैं।

Update: 2023-06-07 19:07 GMT
Tara Chand Patkar walking barefoot for eight

Mahoba News: तारा चंद पाटकर नाम के शख्स उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों अकेले के दम पर पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं। उनके दृढ़ संकल्प, सेवा और मनोबल की सराहना उनको करीब से जानने वाला हर व्यक्ति करता है। बात पर्यावरण संरक्षण की हो या स्वास्थ्य सेवाओं की, तारा चंद अपने ही बूते इसको सुधारने का प्रयास किया करते हैं। महोबा की लचर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने के लिए तारा चंद पाटकर विरोधस्वरूप पिछले आठ बरस से नंगे पांव चल रहे हैं। गर्मी से तपती धरती हो या ठंड का मौसम, तारा चंद ने अपने जज्बे को कमजोर नहीं होने दिया। उनका कहना है कि जब तक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं होगा। वो पैरों में चप्पल तक नहीं पहनेंगे।

तपस्वी जैसी बनी पहचान, हर जगह लोग करते हैं सम्मान

ताराचंद पाटकर पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे हैं। वो प्रमुख अखबारों में अहम पदों पर कार्यरत रहे। उन्होंने अपने कॅरियर के दौरान आम लोग, गरीबों, वंचितों की समस्याओं को करीब से देखा। उसे आत्मसात कर लिया और पत्रकारिता को त्यागकर सामाजिक मुद्दों पर वंचित लोगों की मदद का हाथ थामकर उन्हें न्याय दिलाने निकल पड़े।

कोई भूखे पेट न सोए, इसलिए बनाया ‘रोटी बैंक’

तारा पाटकर का जन्म 7 जून 1970 को बुंदेलखंड के महोबा जिले में हुआ। वो सामाजिक सुधारक के रूप में कार्य करने लगे तब उन्होंने सर्वप्रथम महोबा जिले में कोई भी भूखे पेट ना सोए, उसके लिए बुंदेली समाज और देश के पहले रोटी बैंक की स्थापना की। उनकी टीम रोजाना लगभग 1000 लोगों को खाना खिलाती है। कालांतर में इस की तर्ज पर अनेक जनपदों में रोटी बैंक स्थापित हो चुके हैं, परंतु इसका सबसे व्यवस्थित स्वरूप इंडियन रोटी बैंक नाम से चलाया जा रहा है। रोटी बैंक का यह सिलसिला 2015 से शुरू हुआ। एक दिन तारा पाटकर और उनके दोस्तों ने पैसे की भीख मांगने से रोकने के लिए पांच भूखे लोगों को खाना खिलाया। बस यहीं से रोटी बैंक बनाने का स्वरूप उन्होंने बनाया और लोगों को इसके साथ जोड़ा। पाटकर ने 2010 में महोबा के एक समाजसेवी हाजी मुट्टन के साथ मिलकर रोटी बैंक नाम के सामाजिक संगठन को मूर्त रूप दिया। जिसके स्वयंसेवक घर-घर जाते हैं। जूट के बड़े बैग में लगभग 700 घरों से रोटी और पकी हुई सब्जी का दान इकट्ठा करते हैं। वह हर दिन औसतन 1000 लोगों को खाना खिलाते हैं।

नंगे पांव चलने से खुदरे हो चुके तलवे, दे रहे उपेक्षा की गवाही

सितंबर 2015 में तारा पाटकर ने तब तक नंगे पैर चलने की कसम खाई, कहा कि जबतक सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर और जिले में एम्स की आवश्यकता आधारित मांग को नहीं मान लेती। वो ऐसे ही रहेंगे। तारा पाटकर कहते हैं कि महोबा में एम्स उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के एक दर्जन से अधिक जिलों की सेवा कर सकता है। आखिरकार बुंदेलखंड भारत के केंद्र में है। महोबा बुंदेलखंड के केंद्र में है। बुंदेलखंड को अच्छे स्वास्थ्य में रखने के प्रयास में पाटकर सितंबर 2015 से महोबा शहर के बाहरी इलाके में गोरखगिरी पहाड़ी के पास एक झील में अपने जल ग्रहण क्षेत्र को बढ़ाने के प्रयास में मुफ्त श्रमदान भी दे रहे हैं।

उनके आंदोलन से बिजली विभाग के एक्सईएन और एसडीओ के हुए ट्रांसफर

वर्ष 2016 में बिजली विभाग द्वारा महोबा में एक तुगलकी फरमान जारी हुआ और एक्सईएन और एसडीओ के आदेश पर बिजली विभाग द्वारा सभी को दो किलोवाट के बिजली कलेक्शन दे दिए गए। जिससे बिजली का बिल हजारों में आने लगा। ताराचंद पाटकर ने इसको लेकर आंदोलन किया। शिकायती पत्र भेजे। सुनवाई ना होने पर 2016 में ही बुंदेलखंड के गांधी कहे जाने वाले ताराचंद पाटकर ने 91 दिनों के अनशन का प्रण कर लिया। जैसे ही तारापाटकार ने अनशन शुरू किया, 91 दिनों के बाद प्रशासन द्वारा बिजली विभाग के एक्सईएन और एसडीओ का यहां से ट्रांसफर कर दिया गया। आम जनमानस को एक बार फिर इस समाजसेवी के त्याग का सीधा लाभ पहुंचा।

कब तक रहेंगे तारा पाटकार नंगे पैर?

बुंदेलखंड के महोबा में अगर स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो यहां की स्वास्थ्य सेवाएं बद से बदतर हैं। यहां के जनप्रतिनिधि और आला अधिकारी आज तक इन सेवाओं को दुरुस्त नहीं कर पाए हैं। पूरी तरीके से महोबा का जिला अस्पताल एक रेफर सेंटर बन गया है। हाल यह है कि आज तक महोबा जिले में कोई ट्रामा सेंटर, मेडिकल कॉलेज, एम्स जैसी व्यवस्था नहीं हो पाई है। इन्हीं मुद्दों को लेकर 2015 से ताराचंद पाटकर अपने पैरों की चप्पलों को त्याग चुके हैं। वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खून से खत लिखकर लगातार एम्स जैसी मांगों को लेकर हजारों की तादाद में चिट्टियां भेज चुके हैं। लेकिन दुर्भाग्य से आज भी बुंदेलखंड के इस गांधी की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।

सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड की उठाई आवाज

बुंदेलखंड हमेशा से सूखे की मार झेलता आया है। इसको लेकर जब किसानों ने तारा पाटकर को अपनी भुखमरी की दास्तान सुनाई तो आला अधिकारियों के पास पहुंचकर आज के इस ‘गांधी’ ने पूरे मुआवजे की बात कई बार उठाई। जिससे किसानों को भी राहत पहुंची है। हालांकि उनके नंगे पैर रहने की मुख्य वजह बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं हैं, जो सुधरने का नाम नहीं ले रही हैं। ताराचंद पाटकर ने बताया कि प्रदेश सरकार ने जो महोबा को मेडिकल कालेज की सौगात दी है, उससे बेहद खुश हैं, हालांकि उनकी लगातार यहां मांग एम्स के लिए रही है।

अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग

बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर का मानना है कि अगर बुंदेलखंड पृथक राज्य होगा तो सरकार से आने वाली धनराशि यहां के ग्रामीणों के लिए कहीं ना कहीं लाभदायक साबित होगी। बुंदेलखंड पृथक राज्य की मांग पूरी न होने के चलते कहीं ना कहीं उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के प्रशासन का आपसी तालमेल बाधक बना हुआ है। माना जा रहा है कि यूपी के आधे हिस्से में बुंदेलखंड आता है और मध्य प्रदेश के आधे हिस्से में बुंदेलखंड आता है। ऐसे में पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग को लेकर तारा पाटकर कई सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ को खून से खत लिख चुके हैं। अलग राज्य बुंदेलखंड की मांग को लेकर लगातार प्रयासरत हैं।

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