BSP News: आखिर क्या है मायावती के ऐलान का सियासी मतलब, 2024 के लोकसभा चुनावों में किसे होगा फायदा
BSP News: 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मायावती ने एक बार फिर दलित-मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं।
BSP News: बसपा की मुखिया मायावती ने कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने दम पर उतरने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि इन चुनावों के दौरान बसपा किसी भी राजनीतिक दल से कोई गठबंधन नहीं करेगी। मायावती का यह ऐलान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है और इसके सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं।
सियासी जानकारों का मानना है कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ मायावती की बड़ी ताकत रहा है। हालांकि हाल के चुनावों में मायावती अपनी सियासी ताकत दिखाने में कामयाब नहीं हो पाई है। 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मायावती ने एक बार फिर दलित-मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं। मायावती के अकेले चुनाव मैदान में उतरने से मुस्लिम वोट बैंक में बंटवारे की आशंका जताई जा रही है जिसका भाजपा को बड़ा सियासी फायदा हो सकता है।
इसलिए गठबंधन नहीं चाहतीं मायावती
बसपा मुखिया मायावती का कहना है कि हमने काफी सोच समझकर किसी भी पार्टी से गठबंधन न करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि गठबंधन करने पर बसपा को कोई फायदा नहीं होता गठबंधन में बसपा का वोट तो दूसरे दल को ट्रांसफर होता है मगर दूसरे दलों के वोट बैंक का बसपा को कोई फायदा नहीं मिलता। इसी कारण मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का बड़ा ऐलान कर दिया है।
बसपा मुखिया मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। वैसे वे सिर्फ एक बार ही अपना कार्यकाल पूरा कर सकीं। 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की अगुवाई में बसपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत दिखाई थी। 12 मई 2007 को चौथी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया था।
प्रदेश में कमजोर पड़ी है मायावती की पकड़
उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव से ही मायावती की ही पकड़ लगातार कमजोर होती दिखी है। 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 30.43 फीसदी मतों के साथ अकेले 206 सीटों पर जीत हासिल की थी मगर 2012 के विधानसभा चुनाव से ही मायावती की पकड़ कमजोर होती दिखी है। 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 25.95 फ़ीसदी मतों के साथ 80 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत और घट गया। 2017 के चुनाव में बसपा को 22.24 फ़ीसदी मतों के साथ सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल हुई। उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती को सबसे बड़ा झटका लगा था। बसपा सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को एक करोड़ 18 लाख 73 हजार 137 वोट हासिल हुए थे। यदि वोट प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो बसपा को 2022 में 12.9 फीसदी मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ था।
2022 के चुनाव में भाजपा गठबंधन को 273 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि सपा गठबंधन ने 125 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस को दो सीटों पर कामयाबी मिली जबकि बसपा सिर्फ एक सीट ही जीत सकी। इस तरह विधानसभा चुनावों में मायावती की ताकत लगातार कमजोर होती दिखी है।
लोकसभा चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं
यदि लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखा जाए तो उससे भी पता चलता है कि मायावती लगातार कमजोर पड़ी है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा 20 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मोदी लहर ने ऐसा असर दिखाया कि बसपा का खाता तक नहीं खुल सका। मायावती के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव बड़ा सियासी झटका था।
उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन मायावती के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ और बसपा 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। दूसरी ओर सपा के लिए यह गठबंधन ज्यादा फायदेमंद साबित नहीं हुआ और सपा सिर्फ पांच सीटें जीतने में कामयाब रही। हालांकि सपा-बसपा का गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका।
वोट बैंक पर फिर पकड़ बनाने की कवायद
सियासी जानकारों का मानना है कि दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वोट बैंक मायावती की बड़ी ताकत रहा है। दलित-मुस्लिम वोट बैंक को एक बार फिर अपने पाले में खींचने के लिए मायावती ने तैयारियां शुरू कर दी है। शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली की पार्टी में वापसी और इमरान मसूद को पार्टी से जोड़ना मायावती की इसी मुहिम का हिस्सा माना जा रहा है। हाल में अतीक अहमद की पत्नी ने भी बसपा का दामन थाम लिया है। अपना जनाधार बढ़ाने के लिए मायावती 2024 के मास्टर प्लान पर काम शुरू कर दिया है। जातीय समीकरण साधने की दिशा में मजबूत कदम उठाते हुए मायावती ने पिछले दिनों विश्वनाथ पाल को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।
इस तरह हो सकता है भाजपा को फायदा
जानकारों का मानना है कि 2024 की सियासी जंग नजदीक आने के साथ ही सपा-बसपा के बीच मुस्लिम वोट बैंक की जंग और तीखी होगी। हाल के चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक का ज्यादा झुकाव॔ सपा की ओर दिखा है मगर यदि मायावती इस वोट बैंक में सेंधमारी करने में कामयाब हुई तो निश्चित रूप से इसका सियासी फायदा भाजपा को ही मिलेगा। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिल्ली की सत्ता पर काबिज कराने में उत्तर प्रदेश की प्रमुख भूमिका रही है और यही कारण है कि पार्टी ने 2024 की जंग के लिए अभी से ही तैयारियां शुरू कर दी हैं।
सभी सियासी दलों का रुख हुआ साफ
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की रणनीति छोटे दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरने की है। सपा मुखिया अखिलेश यादव समय-समय पर पार्टी की इस रणनीति को स्पष्ट करते रहे हैं। कांग्रेस से दूरी बनाते हुए हाल में उन्होंने उत्तर प्रदेश में आई भारत जोड़ो यात्रा में भी हिस्सा नहीं लिया था। उनका कहना था कि सपा और कांग्रेस की विचारधारा अलग-अलग है।
ऐसे में सपा और बसपा दोनों ने 2024 के चुनावों को लेकर अपना रुख साफ कर दिया है। अब कांग्रेस के सामने भी अकेले दम पर चुनाव मैदान में उतरने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह गया है। ऐसे में विपक्षी दलों के बीच इस खींचतान का भी भाजपा को सियासी फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। जानकारों के मुताबिक चुनावी रणनीति बनाने में माहिर माने जाने वाले भाजपा नेता इस बड़े सियासी मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकेंगे।