UP Transport Corporation: यूपी परिवहन निगम में भ्रष्टाचार, 'करे कोई-भरे कोई' जैसे हुए हालात

UP Transport Corporation: किसी भी दुर्घटना अथवा ब्रैक डाउन के लिए अधिकांश तौर पर वाहन के चालक-परिचालक को जिम्मेदार बता कर अफसरों द्वारा कार्रवाई कर दी जाती है।

Report :  Sushil Kumar
Published By :  Shashi kant gautam
Update: 2022-05-19 14:41 GMT

मेरठ: उत्तर प्रदेश परिवहन निगम: Photo - Social Media

Meerut News: "करे कोई, भरे कोई" कुछ ऐसा ही उत्तर प्रदेश परिवहन निगम (Uttar Pradesh Transport Corporation) का हाल है। निगम के चालकों और परिचालकों की मानें तो किसी भी दुर्घटना अथवा ब्रैक डाउन के लिए अधिकांश तौर पर वाहन के चालक-परिचालक को जिम्मेदार बता कर अफसरों द्वारा कार्रवाई कर दी जाती है। जबकि इसमें जिम्मेदारी कार्यशाला (workshop) कार्मिकों की कम नही होती है। क्योंकि वाहन के मार्ग पर जाने से पहले उसकी जरनल चैकिंग कार्यशाला कार्मिकों द्वारा ही की जाती है। ऐसे में किसी भी घटना के लिए चालक के साथ ही कार्यशाला के मैकेनिक व फोरमैन भी बराबर के जिम्मेदार है। जिनका काम इन जैसी बसों को चेक करके ओके लगाना है।

चालकों, परिचालकों ने बताया कि गाड़ी की जांच और सफाई के देने पड़ते हैं पैसे

नाम ना छापने की शर्त पर चालकों, परिचालकों ने निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार की जानकारी देते हुए बताया कि उन्हें यहां हर छोटे से बड़े काम को करने की एक कीमत देनी पड़ती हैं। झाड़ू के 10 ,धुलाई के 20 जनरल चैकिंग के 20 आदि। अब ऐसे में चालक-परिचालक कहां तक इन सब की पूर्ति करें यदि पैसे दे देंगे तो काम हो जाएगा यदि नहीं देंगे तो काम नहीं होगा।

सभी को यही लगता है कि परिचालक और चालक सबसे बड़े चोर

बकौल एक चालक, जब परिचालक-चालक मार्ग से वापस आते हैं तो उनकी हालत ऐसी होती है कि जैसे नाले की सफाई करने के बाद कोई सफाई कर्मचारी निकल कर आया हो। फिर भी सभी को यह लगता है कि रोडवेज में परिचालक और चालक सबसे बड़े चोर हैं। इतनी मेहनत के बावजूद उनकी मेहनत के अनुरूप प्रतिफल नहीं मिलता फिर भी वह चुपचाप अपने परिवार की वजह से काम किए जाते हैं।

कार्यशाला के मिस्त्री व फोरमैन जिम्मेदारी से नहीं करते काम

बकौल एक परिचालक, पिछले सप्ताह में लखनऊ गया था तो हमारी गाड़ी के ब्रेक फेल लखनऊ से 13 किलोमीटर पहले हो गए थे जिसमें की एक मोटरसाइकिल वाले को मामूली चोटें आई थी व उसके बाद गाड़ी डिवाइडर पर चढ़ गई। भगवान का शुक्र रहा कि किसी को कोई अन्य चोट नहीं आई। मोटरसाइकिल वाले को ₹500 देकर फैसला किया गया। जो कि मैंने खुद अपनी जेब से दिए थे।

इस परिचालक की मानें तो वाहन के ब्रैक फेल होने की जिम्मेदारी कार्यशाला के मिस्त्री व फोरमैन की थी। क्यों कार्यशाला के मिस्त्री ने रेडिएटर लगाने के बाद केवल एक ही नट लगाया था। दूसरा नट भी नहीं लगाया था। यही नही ब्रेक इतने ज्यादा टाइट कर दिए कि वह चिपक रहे थे। इस बारे में निगम के जिम्मेदार अफसरों से सम्पर्क करने की कोशिश की गई,लेकिन संपर्क नही हो सका।

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