Lok Sabha Elections: NDA गठबंधन को बहुमत नहीं मिला तो क्या करेंगे जयंत?
Lok Sabha Elections: सात चरणों में संपन्न होने वाले लोकसभा चुनाव के छह चरण बीतने के साथ ही सियासी पर्टियां, चुनावी एक्सपर्ट सीटों और सरकार के बारे में अनुमान लगाने लगे हैं। कहा जा रहा है कि शायद बीजेपी बहुमत का आंकड़ा छूने में कामयाब न रहे।
Meerut News: अगली सरकार किसकी होगी। इसका निर्णय चार जून के मतगणना परिणाम करेंगे। लेकिन, पश्चिमी यूपी के राजनीतिक गलियारों में इस तरह की अटकले तेजी से गश्त कर करने लगी है कि लोकसभा चुनाव में एनडीए को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में रालोद प्रमुख जयंत एक बार फिर इंडिया गठबंधन में वापस लौट सकते हैं। दरअसल, सात चरणों में संपन्न होने वाले लोकसभा चुनाव के छह चरण बीतने के साथ ही सियासी पर्टियां और चुनावी एक्सपर्ट सीटों और सरकार के बारे में अनुमान लगाने लगे हैं।
इन अनुमानों में यह भी कहा जा रहा है कि शायद इस बार बीजेपी बहुमत का आंकड़ा छूने में कामयाब न रहे। इन अनुमानों के बाद भाजपा का तो पता नहीं लेकिन, उसके सहयोगी दलों के नेताओं की अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंता जरुर बढ़ने लगी है। उनमें राष्ट्रीय लोकदल ते मुखिया जयंत चौधरी भी हैं जो कि चुनाव से थोड़ा पहले ही इंडिया गठबंधन का हाथ झटक कर एनडीए खेमें में शामिल हुए थे। राजनीतिक जानकारों के अनुसार अगर राष्ट्रीय लोकदल चुनाव में अपनी दोनो सीटों बागपत और बिजनौर पर जीत हासिल कर लेता है और केन्द्र में इंडिया गठबंधन और एनडीए बहुमत का आंकड़ा छूने में असफल रहते हैं तो दोनो ही तरह की स्थिति में जयंत के दोनो हाथो में लड्डू होंगे। क्योंकि अपने दो सांसदो के बल पर जयंत इंडिया गठबंधन और एनडीए से अपने समर्थन के बदले राजनीतिक मोलभाव करने में सक्षम रहेगा।
ऐसी स्थिति में दूसरा पक्ष जयंत के समर्थन के बदले उन्हें केन्द्र में मंत्री पद देने से इंकार करने की स्थिति में नहीं होगा। जैसा कि राष्ट्रीय लोकदल का इतिहास भी है कि सत्ता के लिए रालोद किसी के भी साथ जा सकता है। इसलिए इन दिनों पश्चिमी यूपी के राजनीतिक गलियारों में अटकलें हैं कि एनडीए को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में जयंत एक बार फिऱ अपने और पार्टी के नफा-नुकसान के बारे में सोचना पड़ सकता है। बता दें कि आरएलडी ने 2014 और 2019 के आम चुनाव में कुल 11 सीटों पर चुनाव लड़ा और इन सभी सीटों पर हार मिली। बॉलीवुड एक्ट्रेस से लेकर उद्योगपति अमर सिंह जैसे दिग्गज भी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए। जाट बहुल मानी जानी वाली सीटों पर भी चौधरी परिवार की चमक फीकी पड़ गई। 2014 और 2019 में कांग्रेस का साथ तो मिला ही, 2019 सपा और बसपा के साथ गठबंधन करके भी देख लिया, लेकिन एक अदद सीट नहीं जीत सके।