न पैसे हैं- ना ही श्रमिक ट्रेन का मैसेज आया, इसलिए निकल पड़े मौत के सफर पर

देश के सबसे बड़े 302 किमी दूरी वाले उत्तर प्रदेश में गुजरे लखनऊ-आगरा प्रवेश नियंत्रित एक्सप्रेस-वे पर भी भीड़ का रेला गुजरता है। शनिवार को औरैया में जो सड़क हादसा हुआ, उसमें 25 लोगों की जान चली गईं। यह सफर लोग मजबूरी में कर रहे हैं।

Update:2020-05-16 23:22 IST

कन्नौज। वैश्विक महामारी कोविड-19 की वजह से चल रहे देश व्यापी लॉकडाउन में पलायन कर रहे प्रवासी कामगारों, मजदूरों व अन्य लोगों की भीड़ लंबे रास्तों पर खूब देखी जा सकती है। इन दिनों देश के सबसे बड़े 302 किमी दूरी वाले उत्तर प्रदेश में गुजरे लखनऊ-आगरा प्रवेश नियंत्रित एक्सप्रेस-वे पर भी भीड़ का रेला गुजरता है। शनिवार को औरैया में जो सड़क हादसा हुआ, उसमें 25 लोगों की जान चली गईं। यह सफर लोग मजबूरी में कर रहे हैं।

हर रोज हजारों की संख्या में जान जोखिम में डाल एक्सप्रेस-वे से घर जा रहे लोग

एक्सप्रेस-वे पर पर एक से दो हजार किमी की दूरी लोग साइकिल, बाइक, रिक्शा, स्कूटी, डीसीएम, ट्रक की छतों पर बैठकर तय कर रहे हैं। यह सफर खतरों से कम नहीं है। मजबूरी के सफर की वजह से ही औरैया में हादसा हुआ है। मुश्किलभरी यात्रा करने वाले अधिकतर कामगारों का कहना है कि सरकार ने जो ट्रेन से भेजने की बात कही, रजिस्ट्रेशन कराया लेकिन कई दिन हो गए कोई मैसेज नहीं आया, इसलिए सैकड़ों किमी का सफर परेशानी में तय कर रहे हैं।

बुकिंग कराई, लेकिन कब मिलेगी ट्रेन, मैसेज नहीं आया

पंजाब से धर्मपाल को उन्नाव जाना है, वह 12 मई को बाइक से निकले हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन में काम बंद है। पैसे मिल नहीं रहे, मकान मालिक किराया मांगते हैं। अभी किराया चल रहा है, सामान छोड़ कर घर जा रहे हैं। 22 मार्च से वहां फंसा था। अब घर पर जाकर मियां-बीबी साथ में खेतीबाड़ी करेंगे। छह बाइक से बच्चों को मिलाकर 18 लोग घर जा रहे हैं। ट्रेन से जाने के लिए बुकिंग की थी, लेकिन कई दिन बाद भी मैसेज नहीं आया। राशन-पानी मिला नहीं।

ये भी पढ़ेंः ये कैसी बेबसी और लाचारी, नन्ही सी जान को ऐसे आना पड़ा धरती पर

महंगी खरीदी बाइक, निकल लिए परिवार के साथ

पंजाब से आए देवेंद्र कुमार ने बताया कि उनको उन्नाव जाना है। लॉकडाउन की वजह से पंजाब में काम बंद हो गया। बाबूजी लोगों को जब परेशानी बताई तो कभी चार सौ तो कभी पांच से दे दिए, लेकिन इतने में क्या होगा, इसलिए दो बच्चों व पत्नी के साथ घर जा रहे हैं। मकान मालिक किराया मांगते, उनको दिक्कत बताओ तो कहते वह कुछ नहीं जानते, किराया चाहिए। सरकार सुनती नहीं है। हेल्पलाइन नंबर लगता नहीं, थाने में भी कोई सुनवाई नहीं, इसलिए बाइक से जा रहे हैं। श्रमिक ट्रेन के लिए मैसेज आया नहीं, जबकि दो मई को ऑनलाइन किया था।

किराए के लिए मकान मालिक फेंकने लगे सामान

पंजाब के लुधियाना से अपने पति के साथ बाइक पर निकलीं ममता ने बताया कि उनके तीन बच्चे हैं। इन दिनों सभी काम बंद हैं तो खाएं क्या, इसलिए घर जा रही हूं। मकान मालिक किराया मांगते हैं, अब तो सामान भी फेंकने लगे। पति हेल्परी का काम करते हैं, इनके साथा बांगरमऊ उन्नाव जा रही हूं। राशन मिलता नहीं है, जब पैसा था, तब तक रुके उसके बाद निकल लिए। जहां काम करते थे, वहां सहयोग नहीं मिला।

ये भी पढ़ेंः लॉकडाउन 4.0 होगा ऐसा: बढ़ेगा इतने दिन, जाने अब मिलेगी कितनी छूट-कहां पाबंदी

30 हजार में डीसीएम कर सीएम के क्षेत्र जा रहे लोग

डीसीएम में कई लोगों के साथ सवार साबिर अली की गाड़ी लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे के तिर्वा-कन्नौज कट पर रुकी, उन्होंने बताया कि दिल्ली से गोरखपुर जा रहे हैं। यह क्षेत्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का है। 30 हजार पर डीसीएम की है। दो महीने होने वाला है, लेकिन लॉकडाउन खुला नहीं है। इंतजार करते थक गए तो मजबूरी में घर जा रहे हैं।

[video data-width="1920" data-height="1080" mp4="https://newstrack.com/wp-content/uploads/2020/05/VID20200515111607.mp4"][/video]

साइकिल से घुटना दर्द करने लगा

ट्रक पर सामान लदा था। छत पर बैठे एक युवक ने बताया कि वह गुडगांव से छपरा जा रहे हैं। साथ में कुछ लोग और हैं। पहले तो सभी लोग साइकिलों से निकले थे। लंबा सफर होने की वजह से घुटना दर्द करने लगा। रास्ते में एक जगह खाना खाने लगे, वहां ट्रक वाले ड्राइवर भी खाना खा रहे थे, उनसे अपनी दिक्कत बताई ओर मदद मांगी तो उन्होंने छत पर बिठा दिया। ड्राइवर के सहयोग से घर जा रहे हैं।

ये भी पढ़ेंःटेस्टिंग किट से तेज कुत्ते, ऐसे करेंगे मिनटों में सैंकड़ों की कोरोना जांच

भाभी का निधन, लेकिन मदद रहेगी जारी

कन्नौज के तिर्वा क्षेत्र के बौद्धनगर निवासी राजू चौहान ने बताया कि इन दिनों एक्सप्रेस-वे से पैदल व साइकिल से बहुत से लोग निकल रहे हैं। तिर्वा के ही समाजसेवी अंशुल गुप्त ने वीणा उठाया है कि यहां से गुजरने वाले सभी जरूरतमंदों को लंच पैकेट, पानी, बच्चों के लिए केला, बिस्किट, गट्टा व खीरा आदि का वितरण करेंगे। तभी से यह पुनीत कार्य चलने लगा। अंशुल गुप्त का कहना है कि दो दिन पहले उनकी भाभी का निधन हो गया, इसलिए नोयडा जाना पड़ा, लेकिन यह मदद का काम फिर भी जारी रहेगा।

अजय मिश्रा

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Tags:    

Similar News