ऐसे नहीं बौखलाया नेपाल, ठप्प हुआ पर्यटन और हुआ करोड़ों का नुक्सान
नेपाल के रास्ते कैलाश मानसरोवर यात्रा बंद हो जाने से जिले से सटे नेपालगंज के होटलों, पर्यटन उद्योग, कैसिनो और ट्रैवल एजेंसियों की आर्थिक कमर टूटने लगी है।
तेज प्रताप सिंह
गोंडा: कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए भारत के साथ ही नेपाल में भी लाकडाउन चल रहा है। इससे नेपाल जाने वाले भारतीय पर्यटकों का आवागमन बंद है। इस बीच उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में 80 किमी लम्बे धारचुला-लिपुलेख पास मार्ग का निर्माण कर मोदी सरकार ने जहां कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले भारतीयों को तोहफा देकर हजारों भारतीयों को दुर्गम यात्रा से निजात दिलाया है।
वहीं भारत सरकार की इस कूटनीति से नेपाल की अर्थव्यवस्था को करारा झटका लगा है। नेपाल इस पर कड़ा विरोध जता रहा है, क्योंकि नेपाल के रास्ते कैलाश मानसरोवर यात्रा बंद हो जाने से जिले से सटे नेपालगंज के होटलों, पर्यटन उद्योग, कैसिनो और ट्रैवल एजेंसियों की आर्थिक कमर टूटने लगी है। कोरोना वायरस और मार्ग बदल जाने से हजारों भारतीय पर्यटकों, तीर्थयात्रियों ने नेपाल के होटलों और ट्रैवल एजेंसियों की बुकिंग निरस्त करके करारा झटका दिया है।
प्रतिवर्ष मई से सितंबर तक होती है यात्रा
वैसे तो पूरे साल नेपाल में देश विदेश से लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं। इसमें ज्यादा संख्या में भारतीय होते हैं। पर्यटन ही नेपाल के लोगों के आय का मुख्य साधन है। हिंदुओं का पवित्र तीर्थस्थल कैलाश मान सरोवर तिब्बत में है। कैलाश मान सरोवर की यात्रा प्रति वर्ष मई से लेकर सितंबर तक होती है। अभी तक देश के गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश, पंजाब और उत्तर प्रदेश के यात्री रुपईडीहा होते हुए नेपाल के बाद तिब्बत के लिए जाते थे। वैसे कैलाश मानसरोवर के लिए तीन रास्ते हैं लेकिन एक दर्जन प्रदेशों के 60 फीसदी तीर्थयात्री उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से देवी पाटन मंडल में बहराइच जिले के रुपईडीहा बाजार होते हुए बांके जिले के नेपालगंज, सिमीकोट, हिलसा, दीरापुक गोम्पा और डोलपा से कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते थे।
यात्रा में हजारों यात्री हेलिकाप्टर और नेपाली विमानों के जरिए नेपाल के उत्तर पश्चिम में कर्णाली प्रांत में स्थित हुमला जिले में भगवान शिव के दर्शन भी करते थे। लिपुलेख की इस सड़क को कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले हिंदू, बौद्ध और जैन तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए बनाया गया है। भारतीय रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था, इस सड़क की मदद से कैलाश मानसरोवर की यात्रा महज एक हफ़्ते में की जा सकेगी। पहले इसमें दो-तीन हफ़्ते लगते थे। अभी तक जिले से सटे नेपालगंज से हुमला होते हुए मानसरोवर की जो यात्रा दो-तीन हफ़्ते में पूरी करते थे वह लिपुलेख पास मार्ग बन जाने से यह दो दिन में पूरी हो जाएगी।
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एक अनुमान के अनुसार कैलाश मानसरोवर यात्रा पर एक भारतीय तीर्थ यात्री तकरीबन दो से तीन लाख भारतीय मुद्रा खर्च करता है। जिसमें 30 प्रतिशत रकम नेपाल में खर्च होती है और लगभग 60 प्रतिशत रकम हवाई यात्रा पर खर्च होती है। यात्रा में भारतीय यात्री को लगभग दो से तीन लाख रुपये लगते थे। वह अब केवल एक से डेढ़ लाख का खर्च ही आएगा। इससे जहां भारतीयों को आर्थिक लाभ मिलेगा वहीं समय की भी बचत भी होेगी। भारत सरकार के इस कदम से अब भारतीय तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर यात्रा लगभग 80 प्रतिशत भारतीय भू-भाग से ही करेंगे।
नेपाल को होता था आर्थिक लाभ
भारत से लाखों लोग नेपाल के होटलों, रिजार्ट और कैसिनो का आनंद उठाने नेपाल जाया करते थे। लेकिन इस बार कोरोना के डर से कई माह से आवागमन बंद है। पांच हजार से अधिक लोगों के प्रतिदिन आवागमन से नेपाल में स्थित होटल वाटिका, स्नेहा, कृष्णा काटेज, होटल ट्रैवेल विपेज, कल्पतरु, सिद्धार्थ, सिटी इंटरनेशनल, अशोका होटल समेत छोटे बड़े लगभग 200 होटलों व ट्रैवल एजेंसियों को करोड़ों में आमदनी होती थी। इसके अलावा तीन कैसिनो की कमाई करोड़ों में थी। बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलता था। इसके साथ ही नेपाल के रास्ते प्रति वर्ष हजारों भारतीयों के कैलाश मानसरोवर यात्रा से नेपाल को आर्थिक लाभ होता था।
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नेपाल के आय का मुख्य स्रोत या तो भारतीय टूरिस्टों से होता है या फिर भारतीय उत्पाद से वसूले गए कस्टम शुल्क इसमें एक बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है। ट्रैवल एजेंसियां यात्रियों को सिमीकोट व हुमला जिलों तक पहुंचाने में हेलीकाप्टर व नेपाली विमानों का प्रयोग करती थी। नेपाली विमानों का भाड़ा पंद्रह हजार तथा हेलीकाप्टर का किराया भारतीय मुद्रा में 25 हजार लिया जाता था। इस काम में नेपाल की 7 हेलीकाप्टर कंपनियों का इस्तेमाल किया जाता था। कुल मिलाकर भारतीय यात्री नेपाल तक यात्रा व होटलों आदि में अच्छी खासी रकम खर्च करते थे।
11 हजार से अधिक भारतीयों ने रद्द कराई बुकिंग
दुनिया भर में फैली कोरोना बीमारी से नेपाल में भी कारोबार ठप है और लाक डाउन चल रहा है। इसी कारण से भारतीय पर्यटक भी नेपालगंज समेत देश के अनेक स्थानों पर चल रहे होटल रिर्जाट और कैसिनों में नहीं जा रहे हैं। इसके अलावा माह मई से सितंबर तक चलने वाली तिब्बत की कैलाश मानसरोवर यात्रा रद्द हो जाने से नेपालगंज के होटलों, पर्यटन उद्योग, कैसिनो और ट्रैवल एजेंसियों की आर्थिक कमर टूट गई है। अब तक 11 हजार से अधिक भारतीयों ने होटलों की बुकिंग रद्द करायी है। नेपाल होटल व्यवसायी महासंघ प्रदेश पांच के अध्यक्ष भास्कर काफ़्ले बताते हैं कि चूंकि भारत के विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रियों के पिछले कई वर्षों से आने का नेपालगंज बहुत बड़ा क्षेत्र बन गया था। जिससे इस क्षेत्र में बड़े-बड़े होटल तथा कैसीनो कि भरमार हो गई थी।
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एसोसिएशन आफ कैलाश मानसरोवर ट्रेवल एंड ट्रैकिंग एजेंट आपरेटर्स नेपाल के पूर्व अध्यक्ष तेन्जिन नोर्बू लामा के अनुसार नेपाल सरकार की सड़क निर्माण की ढिलाई के कारण हमने तकरीबन 10 लाख भारतीय पर्यटक एवं तीर्थयात्रियों जो कि नेपाल के जरिए तिब्बत तक की मानसरोवर यात्रा करते थे, उन्हें खो दिया है। जिसकी वजह से नेपाल के होटलों ट्रैवल एजेंसियों तथा नेपाल में पर्यटन उद्योग पर इसका बुरा असर पड़ेगा। जिसकी वजह से नेपाल में आय का बड़ा स्रोत बने इन तीर्थ यात्रियों को खोने की चिंता नेपाल के पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों को हो रही है। उनका कहना है कि 1960 में तातोपानी तथा 1993 में हिलसा नामक दो नाके को तीर्थ यात्रियों के लिए चिन्हित किया गया था। लेकिन इन मार्गों के निर्माण सरकारी उदासीनता के भेंट चढ़ गए।
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अब भारत ने नये रास्ते लिपुलेख का निर्माण खुद ही कर लिया है तो भारतीय तीर्थ यात्री नेपाल क्यों आएंगे। लाक डाउन के बीच रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा पिछले 8 मई को लिपुलेख पास रोड का उद्घाटन किया गया तभी से नेपाल सरकार और वहां के लोग ग़ुस्से में है। नेपाल के विभिन्न राजनीतिक संगठन भी विरोध कर रहे हैं। हाल में ही नेपालगंज में कई राजनीतिक दलों ने प्रदर्शन किया है और भारत विरोधी नारे लगाए। जबकि भारत ने नेपाल के विरोध और आरोपों को यह कहकर ख़ारिज कर दिया है कि लिपुलेख पूरी तरह से भारतीय सीमा में है।