आम प्रेमियों के लिए खास खबर, लखनऊ में दशहरी का तो असली स्वाद 15 जून के बाद ही

दशहरी आम की बाजार में शुरुआत मई के दूसरे पखवाड़े में हो जाती है। लेकिन आज ग्राहक जानते हैं कि यह शुरुआती आम जबरदस्ती पकाया हुआ है।

Update:2020-06-13 17:36 IST

लखनऊ: डाल की पकी दशहरी ले लो यह आवाज कुछ ही दिनों में गलियों में आम हो जाएगी। अधिकतर विक्रेता यह बोल कर ग्राहकों को लुभाने में इसलिए सफल हो जाते हैं क्योंकि उनके दिमाग में समय से पहले तोड़कर पकाई गई कम मीठे असामान्य दशहरी की छवि होती है। लखनऊ के मार्केट में आम के सीजन की शुरुआत मार्च में ही हो जाती है। जब दक्षिण भारत से बंगनापल्ली और तोतापुरी आम आने लगते हैं। लखनऊ के कुछ विषेश बाज़ारों में अल्फांसो भी दिखाई देने लगता है। लेकिन शायद आम आदमी को इसका स्वाद रास ना आए। क्योंकि दाम मई में मिलने वाले आम के मुकाबले 10 गुना तक ज्यादा हो सकता है। कुछ ही दिनों में लाल रंग की किस्म स्वर्णरेखा भी मार्केट में दिखाई देने लगती है।

लखनऊ में दशहरी का असली स्वाद तो 15 जून के बाद ही आता है

लेकिन इन आमो का प्रयोग लोग आम से रूबरू होने के लिए ही करते हैं। क्योंकि सीजन की शुरुआत में उन्हें दशहरी की कमी अखरती है। शायद यही कारण है कि कुछ लोग दशहरी के आने का बड़े ही बेकरारी से इंतजार करते हैं। दशहरी के मार्केट में आते ही पूरा लखनऊ आममय हो जाता है। जगह-जगह पर गलियों ठेले, और डलियो में आम बेचते हुए लोग मिल जाएंगे। कुछ लोग इस सीजन में सब कुछ छोड़ कर आम के धंधे पर ही निर्भर हो जाते हैं। दशहरी आम की बाजार में शुरुआत मई के दूसरे पखवाड़े में हो जाती है। लेकिन आज ग्राहक जानते हैं कि यह शुरुआती आम जबरदस्ती पकाया हुआ है। कार्बाइड के कारण होने वाली समस्याओं के प्रति जागरूकता ने शुरु-शुरु में आने वाले आम की मांग को कम किया है।

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हांलाकि अच्छा मुनाफा आम को इस समय ही बेचने से मिलता है। लेकिन यह सब स्वाद और क्वालिटी के मूल्य पर निर्भर करता है। लखनऊ में दशहरी का तो असली स्वाद 15 जून के बाद ही आता है। दशहरी के लिए लखनऊ मशहूर है। लेकिन इसकी खासियत के कारण दूसरे राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा मैं भी खेती की जाने लगी है। इसका एक कारण, उत्तर भारतीय लोगों का इन राज्यों में बस जाना साथ ही साथ बेहतरीन गुणवत्ता के कारण दशहरी का लोगों को लुभाना, दोनों ही माना जा सकता है। इन राज्यों में भी लोग दशहरी की खेप का इंतजार करने लगे हैं। लेकिन उन्हें शायद लखनऊ वासियों से पहले ही दशहरी नसीब हो जाता है।

दशहरी का है अपना अलग ही स्वाद और मजा

 

कुछ राज्यों में तो दशहरी के फल अप्रैल अंत या मई के प्रथम सप्ताह में ही मिलने लगते हैं। और इसका मुनाफा वे दिल्ली या दूसरे मार्केट में दशहरी जल्दी उपलब्ध करा कर प्राप्त करते हैं। देश के प्रमुख बाज़ारो में दूसरे राज्यों से दशहरी कितना ही जल्दी आ जाए। लोग लखनऊ की दशहरी का इंतजार करते हैं। गाड़ियां मई के दूसरे पखवाड़े में दिल्ली और दूसरे बाजारों में दशहरी पहुंचाने लगती। यह परंपरा कई दशकों से चालू है जब किसानों को एवं कारोबारियों को शुरू के आम में अधिक मुनाफा दिखा तो वह कार्बाइड का प्रयोग करने में नहीं हिचकते हैं। शुरु- में जबरदस्ती पकाया गया दशहरी देखने में ऊपर से थोड़ा पीलापन लिए ज़रूर हो जाता है

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परंतु खटास एवं गूदे की क्वालिटी जिसके लिए यह किस्म मशहूर है, मिलना मुश्किल होता है। दशहरी ऐसा आम है जो अपनी खुशबू के बजाय अपने गूदे की मिठास और दूसरी खासियत के कारण पसंद किया जाता है। जैसे-जैसे दशहरी पकने लगता है खट्टापन खत्म होता जाता है और खट्टे- दशहरी को लोग कम पसंद करते हैं। इसके ठीक विपरीत अलफांसो में मिठास के साथ खटास का अद्भुत समन्वय होता है। जिसके कारण इसे पूरे दुनिया में पसंद किया जाता है। अब कार्बाइड के अतिरिक्त दूसरे भी कई तरीके ईजाद कर लिए गए हैं जो जल्दी तोड़े गए हुए आम को पकाने के लिए कारगर है।

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