Gorkhpur : एनजीटी की फटकार, सीएम सिटी लाचार

Update:2019-06-14 12:21 IST
Gorkhpur : एनजीटी की फटकार, सीएम सिटी लाचार

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: पर्यावरण और जलस्रोतों की अनदेखी को लेकर एनजीटी की मार से सीएम का शहर गोरखपुर लाचार दिख रहा है। पिछले तीन दशक में गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) से लेकर गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) द्वारा किया जा रहा अनियोजित विकास आम नागरिकों के लिए मुश्किलों का सबब बन गया है। अफसरों के सरंक्षण में हुई पर्यावरण की अनदेखी से कोई खुद का आशियाना गंवाने के मुहाने पर खड़ा है तो कोई करोड़ों का ऋण लेकर बनाई अपनी फैक्ट्री। जीडीए ने जहां झील के वेटलैंड में आवासीय कालोनियां विकसित कर दीं तो वहीं गीडा ने फैक्ट्रियों को नदियों को जहरीला बनाने की छूट दे दी। अब जब एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने कड़ा रुख अपनाया है तो लूटखसोट कर योजनाओं को लांच कर करोड़ों का वारा न्यारा करने वाले अफसर खामोश हैं।

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एनजीटी की नजरें टेढ़ी

पर्यावरण को लेकर साल दर साल हुई अनदेखी के बाद एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर में नजरें टेढ़ी कर दी हैं। गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण की देखरेख में जहरीला कचरा आमी और राप्ती नदी में गिराने वाली फैक्ट्रियों के खिलाफ एनजीटी के आदेश के बाद ताला लटक गया है। वहीं जिंदगी भर की पूंजी लगाकर रामगढ़ झील के आसपास मकान बनवाने वालों के सामने बेघर होने का संकट पैदा हो गया है। मई के अंतिम सप्ताह में एनजीटी की हाई पावर कमेटी की सिफारिशों से जीडीए के अधिकारियों के साथ ही करीब 20 हजार लोगों के समक्ष संकट खड़ा हो गया है। एनजीटी की हाई पॉवर कमेटी ने रामगढ़ ताल के 500 मीटर के दायरे में आने वाले सभी निर्माण को छह महीने के अंदर जीडीए के माध्यम से ध्वस्त कराने की सिफारिश की है। बता दें कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. राधेमोहन मिश्रा ने रामगढ़ झील के वेटलैंड में अंधाधुंध निर्माण को लेकर एनजीटी में याचिका दाखिल की थी जिसके बाद एनजीटी ने गोरखपुर शहर में जलस्रोतों को लेकर हुई अनदेखी के लिए मानीटरिंग कमेटी का गठन कर दिया। साथ ही हाईपॉवर कमेटी का गठन कर रिपोर्ट तलब की थी।

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अफसरों की मनमानी की परतें खुलीं

कमेटी के चेयरमैन की सिफारिशों के बाद जीडीए के अफसरों की मनमानी की पूरी रिपोर्ट आम लोगों के सामने आ गई हैं। एनजीटी की इस सिफारिश में सर्किट हाउस, निर्माणाधीन चिडिय़ाघर और एनेक्सी को कार्रवाई से बाहर रखा गया है। सिफारिश में न्यायालय के पिछले आदेशों और हाई पॉवर कमेटी व कायाकल्प कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कहा गया है कि ताल के 500 मीटर के दायरे में पर्यावरण विभाग की मंजूरी के बिना हुए सभी निर्माण अवैध हैं। कमेटी ने जीडीए को कड़ी फटकार लगाते हुए 500 मीटर के दायरे में हुए निर्माण को ध्वस्त कराते हुए आवंटियों को किसी दूसरे स्थान पर समान क्षेत्रफल की जमीन उपलब्ध कराने के साथ ही मुआवजे के तौर पर पांच लाख रुपये देने का निर्देश दिया है।

सिफारिश की जद में जीडीए की एक दर्जन कॉलोनियां

एनजीटी की तरफ से पूर्वी उत्तर प्रदेश की नदियों एवं जल संरक्षण निगरानी समिति के सचिव राजेंद्र सिंह ने सिफारिश की है कि रामगढ़ झील के 50 मीटर के दायरे में कोई पक्का निर्माण नहीं होना चाहिए। अगर इस दायरे में जीडीए ने किसी भी तरह के निर्माण के लिए नक्शा पास किया हो तो उसे ध्वस्तीकरण पर आने वाला खर्च भी देना होगा। 50 मीटर के क्षेत्र में जीडीए और वन विभाग से पौधरोपण कराने की सिफारिश भी कमेटी ने की है। सिफारिश की जद में जीडीए की एक दर्जन कॉलोनियां भी आ रही हैं। जीडीए द्वारा विकसित वसुंधरा, लोहिया, अमरावती, सिद्धार्थपुरम जैसी करीब एक दर्जन कालोनियों में रहने वाले 2000 से अधिक लोगों के मुंह में निवाला नहीं जा रहा है। एनजीटी की सिफारिशों पर अमल हुआ तो हजारों परिवार एक झटके में बेघर हो जाएंगे। 162 पन्ने की सिफारिश वाली रिपोर्ट के लागू होने के बाद जीडीए को अरबों रुपये बतौर मुआवजा आवंटियों को देना होगा।

जीडीए की परियोजनाओं पर संकट

इसके साथ ही जीडीए की ओर से चलाई जा रही सभी परियोजनाओं के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा। मुश्किलों में फंसा जीडीए अब 500 मीटर के दायरे में हुए निर्माण को लेकर सर्वे की तैयारी है। हालांकि जीडीए के सचिव राम सिंह गौतम का मानना है कि वेटलैंड को लेकर 2017 में जो नियमावली जारी हुई है, उसके मुताबिक झील के 50 मीटर के दायरे में कोई निर्माण प्रतिबंधित है। ऐसे में 50 मीटर दायरे के चिन्हित 393 निर्माण ही प्रभावित होंगे। इस तथ्य को लेकर एनजीटी के समक्ष प्रत्यावेदन प्रस्तुत किया जाएगा। बता दें कि एनजीटी ने चिलुआताल के वेटलैंड में कूड़ा गिराने और जलाने को लेकर नगर निगम को फटकार लगाई है। कमेटी ने करीब 7 किमी लंबे गोडघोइया नाले पर हुए अतिक्रमण को गिराकर 6 महीने के अंदर नाले के बहाव को सुनिश्चित करने की सिफारिश की है। सिफारिश पर अमल हुआ तो करीब 20 मीटर चौड़े नाले पर अतिक्रमण कर बने 2000 से अधिक मकान और दुकान को ध्वस्त होना होगा।

कड़ी कार्रवाई के बाद भी बेफिक्री

गोरखपुर और आसपास के जलस्रोतों की बेपरवाही को लेकर जीडीए, नगर निगम से लेकर गीडा के अफसरों को फटकार और जुर्माना लगाता रहा है, लेकिन वह संजीदा नहीं हुए। पिछले वर्ष सुनवाई के दौरान एनजीटी कोर्ट ने आमी, राप्ती, रोहिन नदी एवं रामगढ़ झील के प्रदूषण को रोकने में लापरवाही और नाकामी को लेकर प्रदेश सरकार पर एक लाख और गोरखपुर नगर निगम पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। इतना ही नहीं बीते दिनों एनजीटी ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर गीडा की सात फैक्ट्रियों को बंद करने के साथ ही करीब 29 लाख जुर्माना वसूलने का आदेश सुनाया है। रामगढ़ झील और आमी नदी के प्रदूषण को लेकर मीरा शुक्ला और विश्वविजय सिंह की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति रामकृष्ण और विशेषज्ञ डॉ.नागिन नंदा ने केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड को इस संबंध में कार्रवाई का निर्देश दिया। एनजीटी ने भारती रिसर्च एंड ब्रीडिंग फर्म पर 2.90 लाख, मदरश्री डेयरी पर 8.40 लाख, अलकेन कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड पर 4.25 लाख, बरनेत फार्मास्यूटिकल पर 3.50 लाख, गोरखनाथ एग्रो इंडस्ट्रीज पर 3.31 लाख, रॉयल सबेरा फूड्स प्राइवेट लिमिटेड पर 3.56 लाख और संधु हेचरी के खिलाफ 2.85 लाख का जुर्माना लगाया है।

ट्रीटमेंट प्लांट को लेकर गीडा बेपरवाह

कड़ी कार्रवाई के बाद भी गीडा प्रशासन कॉमन इन्लूएंस ट्रीटमेंट प्लांट लगाने को लेकर बेपरवाह है। अफसर सिर्फ फाइलों में सीईटीपी प्लांट लगाने की कवायद कर रहे हैं। केन्द्र सरकार की एजेंसी कांउसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के सर्वे में पाया गया कि आमी में रोज 50 लाख लीटर गंदा पानी गिर रहा है जिसके लिए कम से कम पांच एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट लगाना जरूरी है। गीडा के सीईओ संजीव रंजन का कहना है कि 75 करोड़ रुपये खर्च कर 15 एमएलडी का सीईटीपी प्लांट के लिए डीपीआर को शासन को मंजूरी के लिए भेजा गया है। अब डीपीआर को नमामि गंगे योजना के तहत भेजकर फंड की मांग की गई है। इसके लिए सहजनवां तहसील के अडिलापार ग्राम सभा में सीईटीपी को लेकर 11 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई है। फंड नहीं मिला को 5 एमएलडी का सीईटीपी लगाया जाएगा। उधर, गीडा की बेफिक्री को लेकर उद्यमियों में खासी नाराजगी है।

गीडा पर मनमानी का आरोप

चैम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज के उपाध्यक्ष आरएन सिंह का कहना है कि गीडा प्रशासन सिर्फ मनमानी कर रहा है। जब फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन आवंटित की गई थी तभी सीईटीपी लगाने की बात कही गई थी। इसके बाद भी कमोवेश सभी फैक्ट्रियों ने जीरो डिस्चार्ज सुनिश्चित कर लिया है। गीडा प्रशासन अच्छी तरह अपना पक्ष रखे और सीईटीपी के वादे को पूरा करे तो पूर्वांचल में औद्योगिक विकास को गति मिलेगी। आमी बचाओ मंच के संयोजक विश्वविजय सिंह का कहना है कि स्थानीय प्रशासन जल स्रोतों को बचाने के बजाय उसे बर्बाद करने वाली एजेंसी के रूप में काम कर रही हैं। अधिकारी कोर्ट ही नहीं आम अवाम को भी धोखे में रखे हुए हैं। अभी तो आमी के जहरीले पानी से मवेशी मर रहे हैं, भविष्य में यह मानव जाति के लिए खतरनाक होने वाला है।

पूर्वांचल का भोजताल और हुसैनसागर है रामगढ़ झील

1700 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैली रामगढ़ झील कभी शहर के कचरा का ठिकाना थी, लेकिन अस्सी के दशक में पूर्व मुख्यमंत्री बीर बहादुर सिंह की पहल के बाद इसके दिन बहुरने लगे। जबसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर योगी आदित्यनाथ बैठे हैं, तबसे इसके जीर्णोद्धार की कवायद को गति मिली है। बतौर सासंद योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से झील को राष्ट्रीय झील सरंक्षण योजना में चयनित किया गया था। केन्द्र सरकार ने इसके लिए 198 करोड़ जारी भी कर दिया था। अखिलेश यादव और मायावती सरकार में तो रुपयों की बर्बादी हुई, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से झील को नया जीवन मिला है। झील के संरक्षण और सुंदरीकरण को लेकर चालू योजनाएं अमल में आईं। अब यह झील सैलानियों को हैदराबाद के हुसैन झील और भोपाल की भोजताल का अहसास कराएगी। दिसम्बर 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 110 मीटर लंबे व्यू प्वांइट का लोकार्पण किया था। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब नये सिरे से 750 मीटर व्यू प्वाइंट को विकसित किया जा रहा है। वहीं नौकायन केन्द्र को भी नये सिरे से विकसित किया जा रहा है। अब यहां लोग नौकायन करते नजर आते हैं। रामगढ़ झील में वाटर स्पोट्र्स, नौकायन, मत्स्य आखेट सहित अन्य योजनाएं अब हकीकत का रूप लेने लगी हैं। वाटर स्पोट्र्स के लिए पर्यटन विभाग ने इसके लिए 72 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार किया है।

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