Mission 2024: नीतीश, राहुल का बिग प्लान, विपक्ष की एकजुटता के लिए बनाया यह फार्मूला, जो मोदी के लिए खड़ी करेगा मुश्किलें!

Mission 2024: विपक्षी एकजुटता के लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव कई नेताओं से लगातार मुलाकात कर रहे हैं। वहीं विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात के दौरान एक फॉर्मूले का भी जिक्र किया जा रहा है। इसी फॉर्मूले के आधार पर दलों को साथ आने के लिए कहा जा रहा है। आखिर वो फॉर्मूला क्या है?

Update:2023-04-25 22:45 IST
PM Modi, Nitish Kumar, Tejashwi Yadav

Mission 2024: जैसे ही लोकसभा का चुनाव आता विपक्षी एकता की चर्चा शुरू हो जाती है और विपक्षी दल एक साथ आने के लिए कवायद तेज कर देते हैं। इस बार भी वही हो रहा है। 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है तो विपक्ष अब एकजुट होने की बात कह रहा है। यहां सवाल यह उठ रहा है कि आखिर चुनाव के समय ही क्यों विपक्ष एकजुटता की बात करता है इससे पहले क्यों नहीं? राजनीति में कहा जाता है की कुछ भी स्थाई नहीं होता यहां कोई किसी का न स्थाई दुश्मन होता है और न स्थाई दोस्त होता है। यहां सब समय के अनुसार तय होता है। घोर से घोर विरोधी भी समय आने पर एक हो जाते हैं।
इस समय विपक्षी दलों को एकजुट करने की बात जोरों पर है। इसके अगुआ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बने हैं। ये दोनों अब तक अलग-अलग दलों के कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। इसकी शुरुआत 12 अप्रैल से होती है जब नीतीश और तेजस्वी ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात के दौरान एक फॉर्मूले का भी जिक्र किया जा रहा है। इसी के आधार पर दलों को साथ आने के लिए कहा जा रहा है। आखिर वो फॉर्मूला क्या है? और कैसे विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिशें हो रहीं हैं? और किन मुद्दों पर ये दल एक साथ आ सकते हैं? आइए जानते हैं आखिए ये कैसे संभव होगा...

तो इस तरह कर रहे हैं एकजुट होनें के लिए कोशिश

विपक्ष को एक साथ लाने के लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने कवायद शुरू कर दी है। इसके लिए जदयू और राजद एक साथ काम कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस और ममता बनर्जी भी अपनी ओर से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशें कर रही हैं। कोई दक्षिण पर फोकस कर रहा है तो कोई उत्तर भारत पर तो कोई मध्य भारत पर। अब इनकी कोशिशें कहां तक कामयाब होती हैं यह तो समय बताएगा।

दक्षिण को साधने में जुटी कांग्रेस

यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश में कांग्रेस चुनाव दर चुनाव कमजोर होती गई है। दक्षिण में उसकी स्थिति बेहतर है। कर्नाटक, केरल, जैसे राज्यों में। दक्षिण भारत के राज्यों के क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की जिम्मेदारी कांग्रेस को सौंपी गई है। वहीं कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल पहले से ही कांग्रेस के साथ गठबंधन में हैं। अब इन दलों से बातचीत करके 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रस्तावित महागठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।
दक्षिण के साथ-साथ ही कांग्रेस वामदलों को भी एक साथ लाने पर काम कर रही है। 12 अप्रैल को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से मुलाकात के बाद कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने शरद पवार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी बात की थी।

नीतीश और तेजस्वी की नजरें उत्तर भारत पर

एक ओर जहां कांग्रेस दक्षिण भारत पर फोकस कर रही है तो वहीं नीतीश की अगुआई में जदयू और तेजस्वी के नेतृत्व में राजद उत्तर भारत के भाजपा विरोधी दलों को एक साथ लाने में जुटी हैं। नीतीश और तेजस्वी आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस जैसे दलों को एकजुट करने का काम रहे हैं। नीतीश की ममता बनर्जी से मुलाकात और सोमवार को लखनऊ पहुंच कर सपा सुप्रीमो अखिलेश से मुलाकात यही संकेत दे रहा है। इसके अलावा अन्य छोटे दलों को भी साथ लाने के लिए दोनों नेता लगातार प्रयासरत हैं।

अब तक किन-किन नेताओं के बीच हुई बातचीत

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने 12 अप्रैल को सबसे पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के साथ ही नीतीश ने यह भी साफ कर दिया था कि विपक्षी एकता बिना कांग्रेस को साथ लाए संभव नहीं है।
इसके बाद नीतश और तेजस्वी ने आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की। वहीं, दूसरी ओर खरगे और राहुल ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिलकर विपक्षी एकजुटता पर बातचीत की। खरगे ने अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन से भी फोन पर बात की। इसके बाद नीतीश कुमार और तेजस्वी ने सोमवार को पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की और फिर लखनऊ आकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिले।

...तो इस फार्मूले से हो रही है एकजुट करने की कोशिश?

यहां यह समझता जरूरी है कि आखिर किस तरह विपक्ष एकजुट होगा। इस बारे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब 12 अप्रैल को नीतीश, तेजस्वी के साथ खरगे और राहुल गांधी की बैठक हुई तो उसमें विपक्षी एकजुटता को लेकर कई बिंदुओं पर चर्चा की गई और इस पर सहमति बनी है। अब उसी फॉर्मूले के सहारे भाजपा के विरोधी अन्य विपक्षी दलों को एकसाथ लाने की कोशिश हो रही है। इस फॉर्मूले पर अंतिम मुहर तब लगेगी जब सारे विपक्षी दलों के नेता एक साथ बैठक करेंगे।
फार्मूले के ये हैं अहम बिंदू-

भाजपा के खिलाफ वैचारिक एकजुटता

नीतीश कुमार ने जब खरगे और राहुल से मुलाकात की थी तो उस दौरान उन्होंने कहा कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष को वैचारिक तौर पर एकजुट होना होगा। वहीं कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर विपक्ष की राय एक है और इन्हीं मुद्दों के सहारे सभी को एक होकर भाजपा से लड़ना होगा। राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने भी नीतीश के इस बात पर हामी भरी थी।

कांग्रेस करे विपक्षी एकता की अगुआई

नीतीश कुमार ने ही इसका प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस को ही विपक्ष के सभी दलों की अगुआई करनी चाहिए, लेकिन इसमें कहीं से भी न लगे कि किसी दल की उपेक्षा की जा रही है। सभी दलों के सम्मान का पूरा ख्याल रखना चाहिए।

ऐसा होगा सीटों का बंटवारा

नीतीश ने कहा कि चुनाव के समय जिस पार्टी का जिस भी राज्य या क्षेत्र में दबदबा हो वहां उसे लीड करने दिया जाए। जैसे बिहार में राजद-जदयू का प्रभाव है तो ऐसे में यहां की ज्यादातर सीटों पर इन्हीं दो पार्टियों के उम्मीदवारों का टिकट दिया जाए। इसके अलावा अन्य पार्टी जिसका कुछ जनाधार हो, उन्हें भी कुछ सीटों पर मौका दिया जाए। इसी तरह उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को ज्यादा सीटें दी जा सकती हैं तो राजस्थान-छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस लीड कर सकती है। जहां विवाद की स्थिति बने, वहां आपस में बैठकर बातचीत करके मसला हल किया जा सकता है।

ये दो मुद्दे जिनपर सब एक

ऐसे दो मुद्दे हैं जिन पर सभी विपक्ष की एक राय है। विपक्षी दल जांच एजेशियों को विरोध कर रहे हैं तो वहीं अल्पसंख्यकों को लेकर भी विपक्ष मोदी सरकार पर निशाना साधता रहा है।

विपक्षी दलों पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई

विपक्षी दल जांच एजेंसियों को लेकर अक्सर पीएम मोदी और केंद्र पर हमला बोलते हैं। विपक्ष के कैसे ऐसे नेता हैं जैसे सोनिया गांधी-राहुल गांधी से लेकर केसीआर, तेजस्वी यादव, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल तक कई मामलों में फंसे हुए हैं। विपक्ष के सामने ये एक ऐसा मुद्दा है, जिसको लेकर सभी दलों की राय एक है। सबने इसके खिलाफ मोदी सरकार पर हमला बोला है।

अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर

अल्पसंख्यक विपक्ष का बड़ा वोट बैंक है। अल्पसंख्यक के मुद्दे पर विपक्ष ने लगातार आरोप लगाया है कि सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ काम कर रही है। सरकार पर सांप्रदायिक होने का भी विपक्ष हमेशा आरोप लगाता रहा है। ऐसे में इस मुद्दे पर भी विपक्ष आपस में सहमति बना सकता है।

लेकिन धोखे भी हैं इस राह में

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव विपक्षी एकजुटता की कवायद भले ही तेज कर दिए हैं, लेकिन इस राह मंें कई ऐसे उनके दल हैं जो अभी से अपनी राहें अगल करते दिख रहे हैं। जैसे पिछले कुछ दिनों में शरद पवार ने ऐसे कई बयान दिए हैं जिससे विपक्ष को एकजुट करने की कवायद को झटका लग सकता है।

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