औरैया अन्नदाता परेशान: मुनाफा तो दूर लागत भी नहीं, हालत होती जा रही खराब
सरकार द्वारा किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए चाहे कितने भी प्रयास किए जा रहे हो मगर अन्नदाता उनसे हमेशा वंचित रह जाता है। ऐसा ही इस बार भी किसानों के साथ हो रहा है। उनकी फसल का उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। जिससे वह फिर से संकट में आ गए हैं।
औरैया: सरकार द्वारा किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए चाहे कितने भी प्रयास किए जा रहे हो मगर अन्नदाता उनसे हमेशा वंचित रह जाता है। ऐसा ही इस बार भी किसानों के साथ हो रहा है। उनकी फसल का उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। जिससे वह फिर से संकट में आ गए हैं। किसानों का कहना है पहले बारिश नहीं हुई जब कटाई का समय आया तो बारिश हो गई। जिससे उनकी फसल देरी से कटी। अब सरकारी क्रय केंद्रों पर इतनी भीड़ है कि उनका धान बिकना मुश्किल नजर आ रहा है। इस बार धान की फसल ने उन्हें धोखा दे दिया है पहले जो प्रति एकड़ 30 से 35 कुंटल होती थी वह अब 20 से 22 कुंटल ही रह गई है।
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40 फीसद कम पैदावार हुई
विकासखंड की ग्राम पंचायत जैतापुर में करीब सात सौ एकड़ धान की फसल होती है। पिछले साल की अपेक्षा इस बार 40 फीसद कम पैदावार हुई है। इसका मुख्य कारण मौसम की बेरूखी है। किसानों को धान कटकर रखा है, लेकिन सरकारी क्रय केंद्र पर उन्हें खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस बार फसल में लगाई गई लागत के बराबर भी धान नहीं हुआ है। इस ग्राम पंचायत के मात्र दस फीसद किसान ही अपना धान सरकारी क्रय केंद्र पर ले गए हैं। शेष बिचौलिए ले गए। अब गेंहू बुआई का समय आ गया है, ऐसे में उन्हें रूपयों की सख्त जरूरत है। बिचौलिए किसानों का धान 1100 से लेकर 1200 रूपये तक ले रहे हैं।
छोटे किसानों को 15 दिन बाद का टोकन दिया जा रहा
ग्राम पंचायत जैतापुर की आबादी करीब 3600 है। यहां पर सात से लेकर आठ सौ एकड़ धान की खेती होती है। पिछले बार एक एकड़ में करीब 35 क्विंटल धान हुई थी, लेकिन इस बार मात्र 15 व 16 क्विंटल ही पैदावार हुई है। एक तो कम पैदावार, उसके बाद सरकारी क्रय केंद्रों पर तमाम झंझट। सरकारी क्रय केंद्रों पर जनवरी माह तक के टोकन दिए जा रहे हैं। कई बार चक्कर काटने के बाद भी नतीजा शून्य रहता है। बड़े काश्तकारों को क्रय केंद्र पर तत्काल धान खरीदा जा रहा है, जबकि छोटे किसानों को 15 दिन बाद का टोकन दिया जा रहा है।
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बिचौलिए के माध्यम से धान को बेंचने को मजबूर
धान की फसल करने के लिए किसानों के एक एकड़ में करीब 15 हजार रूपये खर्च हुए हैं और इस बार पैदावार ही मात्र 16-17 हजार रूपये की हुई है। ऐसे में उनके सामने आगे की फसल की बुआई करने का संकट आ गया है। इस संकट से उभरने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। इस गांव के मात्र दस फीसद। किसानों ने ही अपना धान सरकारी क्रय केंद्रों पर बेंचा है, शेष किसान या तो अभी घरों में धान रखे हुए हैं या फिर बिचौलिए के माध्यम से धान को बेंचने को मजबूर हो रहे हैं।
किसानों की समस्याएं
किसान आकाश कुमार का कहना है कि मौसम की मार इस बार उन पर भारी पड़ी है। जहां पिछले बार एक एकड़ में 35 क्विंटल तक धान होता था, इस बार उसकी पैदावार मात्र 15-16 क्विंटल ही रह गई है। ऐसे में अब वह आगे की बुआई कैसे करेंगे, यह सकंट खड़ा हो गया है।
राजवीर ने बताया कि एक तो पैदावार घटी है, ऊपर से सरकारी क्रय केंद्रों पर छोटे किसानों का धान एक-एक माह तक नहीं खरीदा जा रहा है। कई बार चक्कर काटने के बाद टोकन मिल भी जाता है तो उन्हें दो-तीन दिन पहले क्रय केंद्र पर पहुंचकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।
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मिर्जापुर निवासी सतेंद्र कुमार ने बताया कि इस बार उन्होंने फसल में जितनी लागत लगाई है, उसका भी पैसा नहीं निकल पा रहा है। सरकारी केंद्र में तमाम झंझट होने के बाद उन्होंने बिचौलियों के माध्यम से मात्र 1100 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से धान बेंचा है।
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किसान श्रीबाबू ने बताया कि गेहूं की बुआई का समय आ गया है। रूपयों की सख्त जरूरत है। धान खेतों पर ही कटा पड़ा है, जिसके लिए उन्हें रातभर इंतजार करना पड़ता है। रूपयों की जरूरत के कारण उन्हें प्राइवेट आढ़त पर धान बेंचना पड़ेगा।
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इंद्रपाल ने बताया कि उन्होंने दिन-रात मेहनत की और पैदावार कम होने से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया है। उन्होंने रजिस्ट्रेशन भी कराया है, लेकिन टोकन जनवरी माह का दिया जा रहा है।
किसान पप्पू ने बताया कि पराली जलाने पर रोक लगा दी गई है। अब ऐसे में मजदूर लगाकर पराली को एकत्रित करके रखा जा रहा है। इसमें भी उनके रूपये खर्च हो रहे हैं। कम पैदावार होने के बाद भी उनके काफी रूपये बर्वाद हो रहे हैं।
फसल कटने तक खर्च हुए रूपये
काम खर्च हुए रूपये
जुताई 2500
रूपाई 4000
दवा 1500
यूरिया खाद 2500
कीड़ा वाली दवा 1000
हार्वेस्टर 3000
सिंचाई 1500
''जनपद में क्रय केंद्रों की संख्या जल्द ही बढ़ाई जाएगी, जिससे किसानों को अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी। सभी किसान सरकारी केंद्रों पर ही धान बेंचे। बिचौलियों के चक्कर में कतई न पड़े।'' सुधांशु शेखर चौबे, डिप्टी एआरएमओ
रिपोर्टर प्रवेश चतुर्वेदी औरैया