राजनीतिक दलों के लिए बैेरोमीटर से कम नहीं इस साल के पंचायत चुनाव

2017 के विधानसभा चुनाव और प्रदेश में हुए लगभग एक दर्जन उपचुनावों के बाद इस साल होने वाले पंचायत चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए सभी राजनीतिक दलों के लिए यह एक बेहतर मौका होगा।

Update: 2020-01-02 08:34 GMT

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: 2017 के विधानसभा चुनाव और प्रदेश में हुए लगभग एक दर्जन उपचुनावों के बाद इस साल होने वाले पंचायत चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए सभी राजनीतिक दलों के लिए यह एक बेहतर मौका होगा। हालांकि अभी चुनावों का समय तय नहीं हुआ है बावजूद इसके राजनीतिक दलों ने पंचायत चुनाव के लिए कमर कसना शुरू कर दिया है।

भाजपा के लिए चुनाव में सफलता पाना बड़ी चुनौती

इससे पहले पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के दौरान 2015 में पंचायतों के चुनाव हुए थे। इस बार प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार है। इसलिए अन्य दलों के मुकाबले भाजपा के लिए चुनाव में सफलता पाना बड़ी चुनौती होगी।

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प्रदेश की 75 जिला पंचायतों, 821 क्षेत्र पंचायतों और 58,758 ग्राम पंचायतों में वैसे अभी राज्य निर्वाचन आयोग मतदाता पुनरीक्षण कराने का काम कर रहा है। हालांकि अब तक यह तय नहीं हो पाया कि पंचायत चुनावों को विधानसभा की मतदाता सूची से कराना है अथवा 2015 की पंचायत चुनाव की अलग बनी मतदाता सूची से कराना है।

विधानसभा की मतदाता सूची से नहीं होंगे पंचायत चुनाव

लेकिन आयोग के सूत्रों का कहना है कि पंचायत चुनाव विधानसभा की मतदाता सूची से नहीं होंगे बल्कि 2015 की मतदाता सूची से ही कराए जाएगें। इसलिए अब इन सूचियों के पुनरीक्षण काम जल्द शुरू किया जाएगा। बताया जा रहा है कि पंचायत चुनाव की मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण कार्यक्रम फरवरी में शुरू किया जाएगा। इसके बाद अप्रैल अंत तक मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन कराने की योजना है।

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पांच साल पहले 2015 में जब पंचायत चुनाव हुए थें तब सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी के कई मंत्रियों के रिश्तेदारों के अलावा उनकी पत्नियों बेटों और भतीजों ने मुंह की खाई थी। तभी राजनीतिक विश्लेषकों को इस बात के संकेत मिल गए थें कि समाजवादी पार्टी की हालत गांव-देहातों में ठीक नही है। इसके बाद जब 2017 में विधानसभा के आम चुनाव हुए तो समाजवादी पार्टी सत्ता से बाहर हो गयी।

अब यूपी में 2022 में विधानसभा के चुनाव होने हैं जिसके लिए सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में जुटे हुए है लेकिन इसके पहले इस साल होने वाले पंचायतों के चुनाव इन दलों के राजनीतिक हालात जानने के लिए बैरोमीटर साबित होने जा रहे हैं।

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