Meerut News: जाटों में आरक्षण की आग फिर सुलगी ,आरक्षण नहीं तो वोट भी नहीं
अगले साल जाट बाहुल्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व पंजाब राज्यों में विधानसभा चुनाव है।
Meerut News: देश के पीएम नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) द्वारा कृषि के तीन नये कानूनों की वापसी की घोषणा के बाद जाटों में आरक्षण की आग एक बार फिर सुलगने लगी है। लेकिन इस बार जाट अपनी लड़ाई सड़कों पर नही बल्कि वोट से लड़ेगा। यानी आरक्षण नही तो वोट नही। आरक्षण की आग को सुलगा दिया है, जिसकी लपटें सालाना जश्न मनाने जा रही मोदी सरकार को झुलसा सकती हैं।
बता दें कि अगले साल जाट बहुल्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh),उत्तराखंड (Uttarakhand) व पंजाब (Punjab) राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly elections 2022)है। जैसा कि जाट आरक्षण संघर्ष समिति (jat aarakshan sangharsh samiti) के राष्ट्रीय अध्यक्ष यशपाल मलिक कहते हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की १२५ विधानसभा सीटों के साथ उत्तराखंड की १५ सीटों व पंजाब की १०० से अधिक सीटों पर सभी धर्मो के जाटों का प्रभाव है। इसलिए जाटों ने फैसला लिया है कि इन चुनावों में जाटों का वोट उसी दल को जाएगा जो कि जाटों को आरक्षण देगा।
यशपाल मलिक ने आज यहां कहा कि सरकार ने 2015, 2017 में आरक्षण का वादा किया था। वादा किया है तो निभाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जाट समाज के प्रमुख संगठनों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों की उपस्थिति में केंद्रीय स्तर पर जाट आरक्षण का वादा किया था। 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के आवास पर आरक्षण का भरोसा दिलाया गया था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी जाट समाज के सामने वायदे किए गए। उन्होंने कहा कि वादा किया है तो अब निभाना ही पड़ेगा।
यशपाल मलिक की मानें तो इस बार जाट आरक्षण की लड़ाई सड़कों पर नहीं, अपने वोट के निर्णय से करेगा। उन्होंने कहा कि 25 नवंबर को मुरादाबाद मंडल की बैठक होगी। उसके बाद अलीगढ़ ,आगरा और अन्य मंडलों की बैठक होगी। एक दिसंबर को राजा महेंद्र प्रताप की जयंती के दिन से जन जागरण अभियान चलाया जाएगा। जाट नेताओं का यह भी कहना है कि ''जाट ख़ुद को ठगा सा महसूस कर रहा है, उसके वोट से बीजेपी ने केंद्र और फिर उत्तर प्रदेश में कुर्सी तो हासिल कर ली लेकिन उसे उसका हक़ नहीं दिया गया।''
यहां बता दें कि केंद्रीय सेवाओं के साथ ही हरियाणा में जाटों को आरक्षण की मांग को लेकर अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति लंबे समय से संघर्ष कर रही है। यूपीए सरकार में वर्ष 2014 को दिए गए केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। जाट नेता के अनुसार इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जाट समाज के प्रतिनिधि को नए सिरे से आरक्षण दिलाने की प्रक्रिया शुरू कराने का आश्वासन दिया था, लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हो सका।
जाट नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जिस बैठक का ज़िक्र कर रहे हैं वो 26 मार्च, 2015 को सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के बाद हुई थी। इस फ़ैसले में अदालत ने कांग्रेस नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार के ज़रिये जाटों को पिछड़ी जातियों की श्रेणी में केंद्र में दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिया था। जाट आरक्षण आंदोलन से जुड़े नेता दावा कर रहे हैं कि हिंदी पट्टी, उत्तर और पश्चिम को मिलाकर 14 सूबों में उनकी ख़ासी आबादी है और कम से कम 130 सीटों पर किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत में समुदाय के वोटों की अहम भूमिका होती है।
बहरहाल,जाटों में सुलगती आरक्षण की आग की लपटें तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद जाटों को लेकर राहत की सांस ले रही मोदी सरकार को झुलसा सकती हैं।