Raja Mahendra Pratap Singh : किसान आंदोलन की धार कुंद करने की कोशिश तो नहीं

Raja Mahendra Pratap Singh : किसान आंदोलन रोकने में नाकाम हो चुकी भाजपा ने अब राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम का सहारा लिया है।

Report :  Sushil Kumar
Published By :  Shraddha
Update: 2021-09-14 11:53 GMT

 राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर यूनिवर्सिटी का शिलान्यास(फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

Raja Mahendra Pratap Singh : किसान आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) के नाम पर यूनिवर्सिटी का शिलान्यास किया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले के मुरसान रियासत के राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर यूनिवर्सिटी के शिलान्यास का कहीं कोई विरोध तो नहीं हो रहा है लेकिन राजनीतिक हलकों में इसको जाट समुदाय को मनाने की कोशिश के तौर पर अधिक देखा जा रहा है।

दरअसल, तीन कृषि कानून के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन में जाट समुदाय अधिक सक्रिय देखा जा रहा है। आंदोलन का मुख्य नेतृत्व भी इस समय एक तरह से भाकियू नेता राकेश टिकैत के हाथ में जो कि जाट हैं। यहां बता दें कि वेस्ट में दलित, मुस्लिम के बाद तीसरे नंबर पर जाट हैं। सामाजिक न्याय समिति -2001 की रिपोर्ट के मुताबिक,"उत्तर प्रदेश की पिछड़ी जातियों में जाट का प्रतिशत 3.60 है, हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर,बरेली, मुरादाबाद, आगरा, अलीगढ़ मंडलों में जाटों का प्रतिशत 18 से 20 फीसदी है। 120 विधानसभा सीटें पर जाट वोट असर रखता है। 2019 के लोकशभा चुनाव में वेस्ट यूपी से 3 सांसद संजीव बालियान (मुजफ्फरनगर), सत्यपाल सिंह (बागपत) और राजकुमार चाहर  (फतेहपुरी सीकरी) से जीते हैं। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में कमल मलिक(गढ़), मंजू सिवाच(मोदीनगर), सहेन्द्र सिंह रमाला(छपरौली), योगेश धामा(बागपत), उमेश मलिक(बुढ़ाना), तेजिन्द्र निर्वाल(शामली), जितेन्द्र सिंह(सिवालखास) जाट जीतकर विधायक बने थे।

  पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा भी जाट मतदाता पंजाब, हरियाणा, राजस्थान  के कई इलाकों में चुनावी निर्णय को प्रभावित करने का दम रखते हैं। यही नही दिल्ली,मध्यप्रदेश,गुजरात,हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड व जम्मू कश्मीर जैसे आदि राज्यों में भी जाट फैले हुए हैं। गुजरात में इन्हें आँजणा जाट (आँजणा चौधरी) नाम से जाना जाता है । पंजाब में इन्हें जट(जट्ट) बोला जाता है। सामान्यत: जाट हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं।

कहावत है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है,उसी प्रकार उत्तर प्रदेश की गद्दी का रास्ता पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। अगले साल के विधानसभा चुनाव का समय जैसे नजदीक आ रहा है वैसे ही भाजपा नेतृत्व की चिंता बढ़ने लगी है। इसकी सबसे बड़ी वजह किसान आंदोलन है। हाल ही में हुई किसानों की महापंचायत में किसानों की भारी मौजूदगी में किसान नेता राकेश टिकैत के "वोट पर चोट" की अपील आगामी विधानसभा चुनाव में कितना असर दिखाएगी, यह तो बाद का विषय है । लेकिन भाजपा नेतृत्व ने इसको हल्के में नही लिया है। इसका पता महापंचायत के तुरंत बाद बीजेपी के कई नेताओं की प्रतिक्रियाओं से भी चलता है कि किसान आंदोलन के राजनीतिक निहितार्थ से बीजेपी भी अनजान नहीं है।

यही नहीं, पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने महापंचायत में किसानों की भीड़ का वीडियो शेयर करते हुए ट्वीट किया कि सरकार को इन किसानों से नए सिरे से बातचीत करनी चाहिए। वरुण गांधी के इस ट्वीट को उनकी मां और सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने भी समर्थन करते हुए री ट्वीट किया। पीलीभीत भी उन जनपदों में शामिल हैं जहां पर किसान आंदोलन काफी प्रभावी है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि किसान आंदोलन का जितना प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है, उतना अन्य हिस्सों में नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान तीन कृषि कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलन में शुरू से ही शामिल रहे हैं। मुजफ्फरनगर की महापंचायत में जिस तरह से जाटों की भागीदारी दूसरे लोगों के मुकाबले अधिक देखी गई है,उससे भी भाजपा चिंतित है।  

  2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट और मुस्लिम मतदाताओं के बीच हुए विभाजन से भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना परचम लहरा दिया था। दूसरी ओर जाट मतदाताओं पर प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल(रालोद) हाशिये पर पहुंच गया था। यह पहली बार है कि रालोद के पास लोकसभा और विधानसभा में कोई भी सीट नहीं है। । 2017 में छपरौली से जीते रालोद के एकमात्र विधायक सहेन्द्र सिंह रमाला भाजपा में शामिल हो चुके हैं। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की 110 में से केवल 38 सीटें हासिल की थी । साल 2017 में उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 88 तक पहुंच गई थी। लेकिन किसान आंदोलन की वजह से अब स्थितियां कुछ बदल गई हैं।

किसान आंदोलन शुरू होने के बाद पहला अहम चुनाव यूपी में पंचायत चुनाव हुए । सीधे मतदाताओं की ओर से चुने जाने वाले ज़िला पंचायत सदस्यों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को अच्छी खासी जीत मिली। यही नहीं, किसान आंदोलन से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामाजिक समीकरण भी काफी बदल गए हैं। साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद छिन्न-भिन्न हुई जाट और मुस्लिम एकता को किसान आंदोलन ने एक बार फिर मज़बूत कर दिया है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो- सोशल मीडिया) 


 

स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो "जाट समुदाय न सिर्फ यहां संख्या में ज्यादा हैं बल्कि चुनावी माहौल तय करने में भी उनका बड़ा योगदान है। जाहिर है कि ऐसे में यदि जाट बीजेपी के खिलाफ चला गया तो बीजेपी को अकेले उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि जाट प्रभावित दूसरे कई राज्यों में नुकसान होने की पूरी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। किसान आंदोलन को हर तरह से फेल करने की कोशिश में नाकाम हो चुकी भाजपा ने अब राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम का सहारा लिया है। जैसा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से सांसद और केंद्र सरकार में राज्य मंत्री संजीव बालियान कहते हैं, "राजा महेंद्र प्रताप सिंह से कम योगदान देने वालों का नाम पिछली सरकारों में हर दूसरे तीसरे दिन लिया जाता रहा। लेकिन जाट समुदाय के इतने महान नेता के योगदान को याद नहीं रखा गया।" बकौल संजीव बालियान,"राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे हैं, उन्होंने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई। उन्होंने समाज के लिए कई तरह के संस्थान खोले थे।

एएमयू जैसी यूनिवर्सिटी के लिए उन्होंने जमीन दी थी। लेकिन उनके योगदान को पूरी तरह भुला दिया गया।" भाजपा व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक विनीत अग्रवाल कहते हैं, "इसको चुनावी राजनीति की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। क्योंकि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सितंबर, 2019 में ही अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम राज्य स्तरीय यूनिवर्सिटी खोलने की घोषणा की थी। उस समय कहीं कोई किसान आंदोलन नही था।"

  बहरहाल,यहां खास बात यह कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जनसंघ और बीजेपी से कभी कोई जुड़ाव नहीं रहा। वे सर्वधर्म समभाव के लिए जाने जाते थे। यही ,1957 के जिस लोकसभा चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की थी उस चुनाव में जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव लड़े थे। वाजपेयी चुनाव में 10.09 प्रतिशत वोट लेकर चौथे स्थान पर आए थे। जबकि जीत राजा महेंद्र प्रताप सिंह को मिली थी जिन्होंने 40.68 प्रतिशत वोट लेकर कांग्रेस के चौधरी दिगंबर सिंह को करीब 30 हजार वोटों से हराया था। दिगंबर सिंह को 29.57 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।

  बहरहाल, अब देखने वाली बात होगी अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर यूनिवर्सिटी का शिलान्यास करने वाली भाजपा सरकार के प्रति जाटों का रुख क्या रहता है। इसका पता तो आने वाले चुनाव में ही चल सकेगा। जाहिर है कि जाटों का रुख यदि एक बार फिर से भाजपा की तरफ होता है तो किसान आंदोलन की धार कुंद होने के साथ ही अगले चुनाव में बाजी फिर से भाजपा के हाथ में होगी।

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