अंशुमान तिवारी
लखनऊ: दुनिया के 17.7 फीसदी लोग भारत में रहते हैं, एक अरब 38 करोड़ से भी ज्यादा। इस साल अब तक देश की आबादी में 11 लाख से भी ज्यादा का इजाफा हो चुका है। अगले दस साल में आबादी के मामले में चीन भी हमसे पीछे हो जाएगा। हालात विस्फोटक हैं। अब भी कड़े कदम नहीं उठाए तो बहुत देर हो जाएगी, यही मानते हुए सरकार ने अब जनसंख्या नियंत्रण को राष्ट्रीय प्राथमिकता में रखते हुए सख्त उपाय करने की तैयारी की है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए जोर-जबर्दस्ती करने के बजाय दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देने जैसे उपाय मुमकिन हैं। दो बच्चों तक परिवार सीमित करने के लिए नीति आयोग रोडमैप तैयार कर रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले चंद महीनों में जनसंख्या कंट्रोल के लिए उपायों का ऐलान कर दिया जाए।
जनसंख्या की बेलगाम बढ़ोतरी पर पीएम नरेन्द्र मोदी ने पिछले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने भाषण में गंभीर चिंता जताकर देशवासियों से छोटे परिवार की अपील की थी।
संसद और सुप्रीम मोर्ट में मांग
जनसंख्या नियंत्रण के लिए संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में मांग उठी है। हाल में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि संघ का अगला एजेंडा दो बच्चों का कानून है। विहिप और अखाड़ा परिषद ने भी जनसंख्या पर काबू पाने की मांग की है। पिछले साल जुलाई में राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा निजी स्तर से ‘जनसंख्या नियंत्रण विधेयक’ भी पेश कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करके मांग की गई है कि सरकार को दो बच्चों की नीति लागू करने का आदेश दिया जाए।
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‘हम दो, हमारे दो का नारा कांग्रेस के सांसद बालकवि बैरागी ने दिया था। किसी जमाने में यह परिवार नियोजन का बहुत लोकप्रिय नारा था। अब संघ प्रमुख ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाने की पहल की है। संघ प्रमुख की पहल से भाजपा पर भी इसे लेकर ठोस कदम उठाने का दबाव बढ़ेगा।
2027 में बढ़ जाएगी इतनी आबादी
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत की आबादी 2027 तक 158 करोड़ हो जाएगी वहीं चीन की जनसंख्या 2027 में 153 करोड़ तक रहेगी। अभी चीन की आबादी भारत से करीब सात करोड़ ज्यादा है।
दुनिया की जनसंख्या में हमारी हिस्सेदारी 18 फीसदी है। जबकि हमारे पास कृषि योग्य भूमि दुनिया की लगभग 2 फीसदी और पीने का पानी 4 फीसदी है।
संजय गांधी का अभियान
देश में बढ़ती जनसंख्या को लेकर करीब 45 साल पहले आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने जोर-शोर से नसबंदी अभियान चलाया था। इस अभियान को लेकर कई जगह पुलिस द्वारा गांवों को घेरने और फिर पुरुषों को जबरन खींचकर उनकी नसबंदी करने के खूब आरोप लगे थे। इस अभियान में करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी। गलत ऑपरेशनों से करीब दो हजार लोगों की मौत भी हुई। इंदिरा गांधी और इमरजेंसी के खिलाफ आम जनता के गुस्से को भडक़ाने में ‘नसबंदी’ को सबसे बड़ा कारण माना जाता है।
संघ का एजेंडा दो बच्चों का कानून
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डा.मोहन भागवत का कहना है कि संघ के एजेंडे में अब सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा दो बच्चों का कानून है। उनका कहना है कि हमारी नजर में यह बहुत महत्वपूर्ण है और इस पर फैसला सरकार को लेना है। संघ का मत है कि दो बच्चों का कानून बनना ही चाहिए। संघ प्रमुख द्वारा दो बच्चों के कानून की वकालत अजूबा नहीं है। देश के ग्यारह राज्यों में दो बच्चों का कानून थोड़े सीमित दायरे में लागू है। इनमें गुजरात, उत्तराखंड, उड़ीसा, कनार्टक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश आदि राज्य शामिल हैं। यहां स्थानीय निकाय-पंचायत, जिला परिषद और नगर निगम चुनाव में उम्मीदवारी के लिए यह कानून बाधक बन सकता है। पिछले साल अक्टूबर में असम में भी यह फैसला लिया गया था कि जिनके दो से ज्यादा बच्चे होंगे, उन्हें 2021 के बाद सरकारी नौकरी नहीं मिल पाएगी।
विहिप भी संघ की राह पर
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने भी जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग की है। प्रयागराज में संत सम्मेलन के दौरान वीएचपी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कानून बेहद जरूरी है। हिंदुओं की आबादी लगातार घट रही है। हिंदुओं ने हम दो, हमारे एक को फॉलो किया,जबकि मुसलमानों में 4 और 40 हो गए। हमारे टैक्स का पैसा ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले धार्मिक समुदाय की सब्सिडी में जा रहा है। नए बच्चों के जन्मदर में 52 फीसदी से ज्यादा बच्चे मुसलमान के हैं, इसलिए खतरा बढ़ रहा है।
अखाड़ा परिषद भी समर्थन में
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने भी जनसंख्या नियंत्रण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान का समर्थन किया है। परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने कहा कि अखाड़ा परिषद भी केंद्र सरकार से दो बच्चा पैदा करने के लिए कानून बनाने की मांग करता है। महंत नरेंद्र गिरी ने सभी साधु-संतों से दो बच्चों के कानून का समर्थन करने और इसे लेकर लोगों में जागरूकता लाने के लिए भी आगे आने की अपील की है। लोग 13-13 बच्चे पैदा करके देश की आर्थिक स्थिति को संकट में डाल रहे हैं। जिस तरीके से जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, उससे देश पर बोझ बढ़ रहा है और देश का विकास भी प्रभावित हो रहा है।
बढ़ती जनसंख्या पर केंद्र को नोटिस
बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी की है। भाजपा नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि आबादी का विस्फोट बम से भी ज्यादा घातक है। इस विस्फोट से शिक्षित, समृद्ध, स्वस्थ और सुगठित मजबूत भारत बनाने की कोशिश कभी कामयाब नहीं हो सकेगी। याचिकाकर्ता की मांग है कि केंद्र सरकार आबादी नियंत्रण के उपायों को देश में लागू करे। केंद्र सरकार को सरकारी नौकरी, सब्सिडी और सहायता पाने के लिए दो बच्चों की नीति को लागू करना चाहिए।
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अश्विनी उपाध्याय इसे लेकर मुहिम चला रहे हैं और पीएमओ में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर 2018 में पे्रजेंटेशन भी दे चुके हैं। इस दौरान उन्होंने वेंकटचलैया आयोग की सिफारिशों का भी उल्लेख किया था। सुप्रीम कोर्ट से पहले दिल्ली हाईकोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण कानून के संबंध में याचिका दायर की गई थी मगर दिल्ली हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि यह सरकार का काम है और हम सरकार के कार्यों को अंजाम नहीं दे सकते। इसलिए इस याचिका को खारिज किया जाता है। हाईकोर्ट का कहना था कि अदालत संसद और राज्य विधानसभाओं को निर्देश जारी नहीं करना चाहती है।
वेंकटचलैया आयोग ने भी की थी सिफारिश
बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए अटल बिहारी सरकार ने 2000 में वेंकटचलैया आयोग गठित किया था। आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की सिफारिश की थी। इस आयोग के अध्यक्ष सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वेंकटचलैया थे जबकि जस्टिस सरकारिया, जस्टिस जीवन रेड्डी और जस्टिस पुन्नैया इसके सदस्य थे। आयोग के अन्य सदस्यों में पूर्व अटॉर्नी जनरल केशव परासरन तथा सोली सोराब, लोकसभा के महासचिव सुभाष कश्यप, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष संगमा, तत्कालीन सांसद सुमित्रा, वरिष्ठ पत्रकार सीआर ईरानी और अमेरिका में भारत के राजदूत रहे वरिष्ठ राजनयिक आबिद हुसैन भी शामिल थे। आयोग ने 31 मार्च 2002 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी मगर उसके बाद अटल सरकार इस दिशा में आगे नहीं बढ़ सकी। वेंकटचलैया आयोग द्वारा चुनाव सुधार, प्रशासनिक सुधार और न्यायिक सुधार के लिए दिए गए सुझाव भी आज तक लंबित हैं।
माल्थस ने किया था इस ओर इशारा
संघ प्रमुख के दो बच्चों संबंधी बयान के बाद विरोध के स्वर इस कदर तेज हुए हैं मानो यह भी भगवाकरण की दिशा में उठाया जाने वाला कदम है। अंदेशा जताया जाने लगा है कि इसके जरिए अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने की तैयारी हो रही है। यह सोचने और बताने से पहले हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्रिटेन निवासी थॉमस राबर्ट माल्थस ने 1798 में प्रकाशित अपने निबंध प्रिंसपल ऑफ पापुलेशन में बताया था कि मानव में जनसंख्या बढ़ाने की क्षमता बहुत अधिक है, जबकि पृथ्वी में जीविकोपार्जन के साधन जुटाने की क्षमता कम। जनसंख्या की वृद्घि गुणोत्तर श्रेणी (जिओमेट्रिकल प्रोग्रेस) में होती है जबकि जीविकोपार्जन के साधन सामांतर श्रेणी (अर्थमेटिकल प्रोगे्रस) में बढ़ते हैं। जब यह गैप बहुत बढ़ जाता है तब प्राकृतिक आपदाएं जनसंख्या नियंत्रण स्वयं करती हैं। किसी भी चुनी हुई सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्राकृतिक आपदाओं तक की स्थिति न आने दे।
देश में घटी प्रजनन दर
मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पापुलेशन सांइसेस के अनुसार 1950 में एक महिला औसतन 6 बच्चों को जन्म देती थी। आज यह आंकड़ा 2.2 रह गया है। अब भी हिन्दी भाषी राज्यों में यह आंकड़ा 3 के बराबर बैठता है। मसलन, बिहार में 3.3, उत्तर प्रदेश में 3.1, मध्यप्रदेश में 2.8, राजस्थान में 2.7 और झारखंड में 2.6 है। जबकि केरल, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में प्रजनन दर 2 से कम पाई गई है। 1992-93 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर 4.4 थी जो 1998-99 में 3.6 रह गई। 2005-06 में भी यही आंकड़ा रहा। जबकि 2015-16 यह घटकर 2.6 आ गई है।
तेजी से बढ़ेगी मुस्लिमों की आबादी
अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक मुस्लिमों की आबादी की रफ्तार को देखते हुए 40 साल बाद भारत में मुसलमानों की आबादी 33 करोड़ हो जाएगी जो अभी 19.4 करोड़ है। उत्तर प्रदेश में 19.3, पश्चिमी बंगाल में 25 और बिहार में 16.9 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इन 3 राज्यों में ही देश के 47 फीसदी मुसलमान बसते हैं। केन्द्र शासित प्रदेश लक्ष्यद्वीप में 96.2 फीसदी मुस्लिम हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में 68.3 फीसदी। हालांकि नीति आयोग के 2016 के दस्तावेज बताते हैं कि भारत में प्रजनन दर 2.3 प्रति महिला है। जबकि देश में प्रजनन दर 2.1 के औसत प्रतिस्थापन दर पर पहुंचना जरूरी है। यह वह दर है जिसमें एक आबादी खुद को पूरी तरह से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बदल लेती है।
चीन में 70 साल की सबसे कम जन्म दर
दुनिया से सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन में जन्म दर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। पिछले साल तो देश में सात दशक की न्यूनतम जन्म दर दर्ज की गई और सबसे कम बच्चों का जन्म हुआ। चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो द्वारा शिशुओं की जन्मदर से जुड़े आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल जन्म दर प्रति हजार पर 10.48 फीसदी रही। चीन के लिए चिंता का विषय यह है कि यह जन्मदर साल 1949 के बाद सबसे कम है। चीन में पिछले साल एक करोड़ 46 लाख 50 हजार बच्चों का जन्म हुआ। 2018 में यह संख्या एक करोड़ 52 लाख 30 हजार थी।
जन्म दर में गिरावट से मुसीबत में चीन
पिछले कई सालों से चीन में शिशुओं की जन्म दर में गिरावट दर्ज की जा रही है। इस कारण दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हो गई है।चीन की जन्म दर में तो गिरावट आ ही रही है मगर इसके साथ ही वहां पर मृत्यु दर भी कम है। यही कारण है कि देश की आबादी लगातार बढ़ रही है। पिछले साल चीन की आबादी 1.39 अरब से बढक़र 1.4 अरब हो गई। चीन की चिंता यह है कि जन्मदर घटने के साथ ही मृत्यु दर में कमी के कारण देश में कामकाजी युवाओं की संख्या कम होती चली जाएगी और देश में रिटायर होते बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ जाएगी।
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एक समय वह भी था जब चीन ने बढ़ती जनसंख्या से परेशान होकर 1979 में सख्ती के साथ एक संतान की नीति लागू की थी। इसके उल्लंघन पर जुर्माने से लेकर नौकरी से निकाले जाने और गर्भपात तक का प्रावधान किया गया था मगर बाद में चीन सरकार के लिए यह नीति चिंता का विषय बन गई क्योंकि इस नीति के चलते लिंगानुपात में असंतुलन के साथ ही जन्मदर भी काफी घटने लगी। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक अब भी पुरुषों की संख्या वहां महिलाओं से लगभग तीन करोड़ अधिक है। सरकार ने 2015 में इस नीति में ढील देते हुए माता-पिता को दो बच्चे पैदा करने की छूट दे दी थी मगर इस नीति का भी ज्यादा असर नहीं दिख रहा क्योंकि अधिकांश परिवारों में अब भी एक ही बच्चा पैदा हो रहा है। इस सुधार के तुरंत बाद दो साल तक तो जन्म दर बढ़ी, लेकिन देश की गिरती जन्म दर को संभाला नहीं जा सका।
जापान की जन्म दर चीन से भी कम
मौजूदा समय में चीन की स्थिति यह हो गई है कि चीन की जन्म दर अमेरिका से भी कम हो गई है। आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 2017 में प्रति एक हजार लोगों पर जन्म दर 12 थी। चीन में 2019 में जन्म दर 10.48 प्रति एक हजार रही जो 1949 के बाद सबसे कम है। इंग्लैंड और वेल्स में 2019 में जन्म दर 11.6 थी जबकि स्कॉटलैंड में यह 9 रही। उत्तरी आयरलैंड में 2018 में जन्म दर 12.1 थी। इस लिहाज से देखा जाए तो चीन में जन्म दर काफी कम है। चीन की स्थिति केवल जापान से बेहतर है जहां पिछले साल जन्म दर 8 ही रही। जन्म दर में कमी की गंभीरता का अंदाजा वैश्विक जन्म दर से तुलना करने पर लगाया जा सकता है। विश्व बैंक के मुताबिक 2017 में वैश्विक जन्म दर 18.65 रही थी।
क्या कहते हैं मुस्लिम नेता
तंजीम उलेमा ए इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन का कहना है कि पापुलेशन कंट्रोल के सिलसिले में शरियत इस्लामिया ने कोई पाबंदी नहीं रखी है, इस्लाम पाबंदी की इज्जत नहीं देता है। उन्होंने कहा कि अगर लोग अपने तौर पर खुद एहतियात बरतते हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं हैऔर ये नाजायज भी नहीं होगा मगर हुकूमत किसी जोर जबरदस्ती के जरिए पापुलेशन कम करने की बात करती है तो ये नाजायज होगा। अगर इसकी कोशिश की गई तो एक बड़ा तबका विरोध पर भी उतर आएगा। अगर इस तरह की कोई पॉलिसी आते है तो हम लोग विरोध करेंगे और मुस्लिम संगठन भी विरोध करेंगे।
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल का कहना है कि किसी नीति से मुस्लिमों को बच्चे पैदा करने से नहीं रोका जा सकता है।
समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने पापुलेशन कानून के सवाल पर तंज कसते हुए कहते हैं कि जिस परिवार में दो-तीन से ज्यादा बच्चे हैं उन पति-पत्नी को फांसी दे देनी चाहिए क्योंकि न रहेगा बांस और नबजेगी बांसुरी।
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एआईएमआईएम के प्रवक्ता आसिम वकार कहते हैं कि एक तरफ पीएम जनसंख्या नियंत्रण की बात कहते हैं, वहीं आरएसएस प्रमुख और बीजेपी सांसद साक्षी महाराज हिंदुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील करते हैं। ऐसे में पीएम साफ करें कि जनसंख्या नियंत्रण का मामला सिर्फ मुसलमानों के लिए ही है या दूसरे धर्म भी इसके दायरे में आते हैं।
देवबंदी उलेमा का मत
देवबंदी उलेमाओं का कहना है कि जनसंख्या विस्फोट पर न तो कोई फतवे की जरूरत है और नहीं कानूनकी। उन्होंने कहा कि इसके लिए कोई एक समुदाय,कोई धर्म जिम्मेदार नहीं है। इस पर लोग खुद सोचें-समझें। मदरसा जामिया शेखुल हिंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि युवा पीढ़ी रोजगार के लिए भटक रही है। वादे के मुताबिक केंद्र सरकार युवाओं को रोजगार देने की तरफ सार्थक कदम नहीं उठा रही है। सबसे पहले देश के विकास की तरफ ध्यान देने की जरूरत हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जनसंख्या विस्फोट का जिम्मेदार कोई नहीं है। सब लोगों को मिल-जुलकर एक साथ चलना चाहिए। उसमें कोई समुदाय कोई धर्म उसका जिम्मेदार नहीं है।
मुस्लिम विद्वान की राय
कई मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि कुरान में कहीं फैमिली प्लानिंग का विरोध नहीं है। करीब 1500 साल पहले अरेबियन पेनिन्सुला में आबादी की कोई समस्या नहीं थी और तब परिवार नियोजन के आधुनिक उपाय भी नहीं थे। सन 1058 में जन्मे मुस्लिम विद्वान अल गाजली ने अपनी किताब इहया उलूम उद-दीन में लिखा है कि गर्भ निरोध इन वजहों से अपनाया जा सकता है-
1. अगर बच्चे पैदा करने से बीवी की खूबसूरती पर असर पड़े
2. अगर बीवी की सेहत पर असर पड़े
3. अगर बीवी की जिंदगी को खतरा हो
4. अगर बच्चा पैदा करने से आर्थिक तंगी आए
5. यदि बड़े परिवार से दूसरी दिक्कतें पैदा हों