पोस्टर विवाद पर राजनीति: अब दंगाइयों के साथ लगी BJP नेताओं की तस्वीरें

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के पोस्टर पर तकरार ने अब राजनीतिक रूप ले लिया है। सपा के नेता आईपी सिंह ने भाजपा विरोधी पोस्टर लगाकर सरकार को पोस्टर पर सीधे सीधे चुनौती दी है।

Update: 2020-03-13 03:51 GMT

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के पोस्टर पर तकरार ने अब राजनीतिक रूप ले लिया है। दरअसल, नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में राजधानी लखनऊ में हुए दंगे के बाद शहर के चौराहों पर उपद्रवियों के पोस्टर चस्पा कर दिए गये थे। मामले में इलाहबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए पोस्टर को हटाने के निर्देश दिए लेकिन सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी। वहीं अब इस मामले ने राजनीतिक रूप ले लिया है। समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह ने भाजपा विरोधी पोस्टर लगाकर सरकार को पोस्टर पर सीधे सीधे चुनौती दी है। हालाँकि बीती रात ही पुलिस ने दंगाइयों के पोस्टर हटा दिए थे।

आईपी सिंह ने लगाये कुलदीप सिंह सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद के पोस्टर:

समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह ने लखनऊ के कई क्षेत्रों में भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद और कुलदीप सिंह सेंगर का पोस्टर लगाया। पोस्टर में लिखा है कि 'ये हैं प्रदेश की बेटियों के आरोपी, इनसे रहें सावधान'।



योगी सरकार के दंगाई पोस्टर के खिलाफ रेप आरोपी BJP नेताओं के लगे पोस्टर:

बता दें कि आईपी सिंह ने ये पोस्टर कथित दंगाइयों के पोस्टर्स के पास लगवाए। ऐसा करने के पीछे के कारणों के बारे में उन्होंने ट्वीट पर जानकारी भी दी। उन्होंने ट्वीट किया, ' जब प्रदर्शनकारियों की कोई निजता नहीं है और उच्चन्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी योगी सरकार होर्डिंग नहीं हटा रही है तो ये लीजिए फिर। लोहिया चौराहे पर मैंने भी कुछ कोर्ट द्वारा नामित अपराधियों का पोस्टर जनहित में जारी कर दिया है, इनसे बेटियाँ सावधान रहें।'

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पुलिस ने हटाए रेप के आरोपियों के पोस्टर:

हालाँकि बाद में पुलिस सक्रिय हुई और रेप के आरोपी भाजपा नेताओं के पोस्टर कुछ देर बाद हटा दिए गये। पुलिस ने जानकारी मिलते ही आधी रात चौराहों पर पहुंच कर पोस्टर हटवाएं, वहीं कुछ पुलिसकर्मियों की जगह जगह तैनाती की गयी ताकि नए पोस्टर न लग सकें।

पोस्टर हटाने के दिए गये थे निर्देश:

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार से सवाल किया था कि दंगाइयों के पोस्टर किस कानून के तहत लगाये गये हैं। वहीं इसे निजता का हनन बताते हुए पोस्टर हटाने के निर्देह्स दिए थे। जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। जहां मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ ने हिंसा के कथित आरोपियों के पोस्टर लगाने के यूपी सरकार के फैसले पर हैरानी व्यक्त की।

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कोर्ट ने कहा कि यह सवाल उठता है कि कथित आरोपियों के पोस्टर लगाने का फैसला आखिर यूपी सरकार ने कैसे ले लिया। कोर्ट ने कहा, हम राज्य सरकार की चिंताओं को समझते हैं। लेकिन इस तरह का कोई कानून नहीं है जिससे कि आपके इस कदम को जायज ठहराया जा सके।

क्या है मामला:

दरअसल 19 दिसंबर को अचानक लखनऊ की सड़कों पर सीएए विरोध के दौरान हिंसा भड़क उठी थी। पुराने लखनऊ से लेकर हजरतगंज तक हिंसक भीड़ ने इस दौरान जमकर उत्पात मचाया. पुलिस से लेकर मीडिया पर भी हमला हुआ। दर्जनों गाड़ियां फूंक दी गईं, पुलिस चैकी को भी आग के हवाले कर दिया गया।

मामले में सरकार की तरफ से आरोपियों को नोटिसें भेजी गईं। जिसके बाद 5 मार्च को लखनऊ जिला प्रशासन की तरफ से लखनऊ के हजरतगंज सहित प्रमुख इलाकों में चैराहों पर आरोपी 57 लोगों की तस्वीरों का पोस्टर लगाया दिया गया।

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