Magh Mela 2023: कल्पवासियों के लिए खास तैयार हुए चूल्हे, गंगा की मिट्टी और गाय के गोबर से बने

Prayagraj Magh Mela 2023: कल्पास के समय प्रयागराज में एक साथ लाखों की संख्या में चूल्हे जलाए जाते हैं जिसके इंतजार में कई परिवार रहते हैं। इन्हीं चूल्हों को बनाकर इन परिवारों का पेट पलता है।

Report :  Syed Raza
Update: 2022-12-17 10:25 GMT

कल्पवासियों के लिए खास तैयार हुए चूल्हे (photo: social media )

Prayagraj Magh Mela 2023: प्रयागराज मे लगने वाले माघ मेले की तैयारियां चरम पर है। कुंभ के रिहर्सल की तर्ज पर लगने वाला माघ मेला बेहद खास होने वाला है । ऐसे में संगम नगरी का नजारा कुछ दिनों के बाद एक बार फिर अदभुद होगा। माघ मेला में आने वाले कल्पवासियों के लिए संगम किनारे रहने वाले लोग जोरों-शोरों से कल्पवास की तैयारियों में जुटे हैं। कल्पास के समय प्रयागराज में एक साथ लाखों की संख्या में चूल्हे जलाए जाते हैं जिसके इंतजार में कई परिवार रहते हैं। इन्हीं चूल्हों को बनाकर इन परिवारों का पेट पलता है। गंगा की मिट्टी और गोबर से बनने वाले चूल्हे और उपलि बनाने का काम तेजी से चल रहा है। 43 दिनों तक लगने वाले माघ मेले में 1 महीने का कल्पवास का बेहद खास महत्व रहता है।

माघ मेले की तैयारियों में जहां प्रशासन ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया है, वहीं संगम से सटे लोग इन दिनों कल्पवास की तैयारियों में जुटे है। संगम किनारे रहने वाल कई ऐसे परिवार भी है जो लाखों की संख्या में चिकनी मिट्टी के चूल्हे बनाते हैं। मिट्टी के चूल्हे और गोबर के उपले बनाकर यह कल्पवासियों को बेचते हैं जिससे इनका गुजर बसर होता है।

माघ मेले के दौरान पूरी दुनिया से कल्पवासियों का आगमन प्रयागराज में होता है। एक माह संगम की रेती में रहकर यह पूजा पाठ करते हैं। ऐसे में कल्पवासियों के खानपान की व्यवस्था भी बिल्कुल अलग होती है। गंगा के किनारे टेंट में रहकर कल्पवासी पूरे एक माह तक मिट्टी के चूल्हे में खाना बनकर खाते हैं।

मिट्टी के चूल्हों की डिमांड

लाखों की संख्या में जब कल्पवासी आते हैं उनके लिए मिट्टी के चूल्हों की डिमांड प्रयागराज के ही आसपास के इलाकों से होती है। दारागंज उनमें से एक है जहां कुछ परिवार हैं जो मेला शुरू होते ही मिट्टी के चूल्हे और गोबर के उपले बनाने में जुट जाते हैं। इन परिवारों का रोजगार भी यह साधन होता है और उन्हें कल्पवासियों का इंतजार रहता है।

मिट्टी की चूल्हे बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि माघ मेले में जो भी कल्पवासी आते है वह गैस चूल्हे में नहीं बल्कि मिट्टी के चूल्हे और गोबर के उपले से खाना बनाकर खाते हैं इसलिए इसकी बिक्री खूब होती है। मेला शुरू होने से पहले से ही इसे बनाने के लिए सब जुट जाते है। मेले में आए हुए कल्पवासी इसे खरीदते हैं। एक दिन में लगभग 30 से 40 उपले बनाते हैं। इस बार चूल्हे का आर्डर देने के लिए पहले से ही श्रद्धालु कारीगरों से एडवांस में चूल्हे खरीद रहे है ।

कारीगरों का कहना है कि गोबर का उपला और मिट्टी का चूल्हा बनना बहुत मेनहत का काम होता है लेकिन मेले के दौरान इसे बेचने से कमाई भी होती है जिससे इनके परिवार का पालन पोषण होता है। हालांकि महगाई के चलते 5 रुपय प्रति एक चूल्हा ज़्यादा मुनाफे का सौदा नही है।

कारीगरों का यह भी कहना है कि जिस जगह पर वह चूल्हे बना रहे हैं वहां से प्रशासन उनको हटने के लिए बार-बार कह रहा है। ऐसे में वह मीडिया के माध्यम से अपील कर रहे हैं कि पहले स्नान पर्व से पहले वह सभी वहां से चले जाएंगे क्योंकि तब तक उनके सारे चूल्हे कल्पवासी खरीद लेंगे।

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