जानना है भ्रूण का लिंग तो इस पहाड़ी पर फेंके पत्थर, पता चलेगा लड़का है या लड़की

वैसे तो सभ्य समाज में बेटा हो या बेटी कहा जाता है दोनों बराबर होते हैं, लेकिन प्रेग्नेंसी के वक्त हर कोई जानने को उत्सुक रहता है कि गर्भ में पल रहा शिशु का लिंग क्या है मेल या फीमेल। गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर हर किसी को क्यूरिसटी होती है  इसके लिए देश में कई तरह की परंपराएं प्रचलित है

Update: 2020-07-15 00:43 GMT

लखनऊ: वैसे तो सभ्य समाज में बेटा हो या बेटी कहा जाता है दोनों बराबर होते हैं, लेकिन प्रेग्नेंसी के वक्त हर कोई जानने को उत्सुक रहता है कि गर्भ में पल रहा शिशु का लिंग क्या है मेल या फीमेल। गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर हर किसी को क्यूरिसटी होती है इसके लिए देश में कई तरह की परंपराएं प्रचलित है जो लिंग का पता लगाने में मदद करती है। जैसे झारखंड के बेड़ों प्रखंड के खुखरा गांव में मां के गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता करने की एक अनोखी परम्परा पिछले 400 सालों से चली आ रही है।

गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग जानने के लिए लोग सोनोग्राफी का सहारा लेते हैं, हालांकि सरकार ने इसे निषेध कर रखा है और यह कानूनी तौर पर अपराध भी है हालांकि तकनीकी के इस युग में झारखंड के लोग भ्रूण का लिंग जानने के लिए सोनोग्राफी नहीं कराते बल्कि एक पहाड़ से ये बात जानने की कोशिश करते हैं। जो गर्भ में पल रहे नवजात लड़का है या लड़की इस बारे में जानकारी देती है।

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पजहरी पहाड़ी

खुखरा गांव में एक पहाड़ है जो पजहरी पहाड़ी के नाम से जाना जाता हैं। जिस पर एक चांद की आकृति खुदी हुई है, इसलिए इसे चांद पहाड़ भी कहते हैं। पहाड़ पर खुदी चांद की आकृति बता देती है की मां के गर्भ में पल रहा बच्चा बेटा है या बेटी। गर्भस्थ शिशु का लिंग पता करने के लिए गांव की गर्भवती महिलाओं को इस पहाड़ की ओर चांद की आकृति पर निश्चित दूरी से बस एक पत्थर फेंकना होता है। अगर गर्भवती स्त्री के हाथ से छूटा पत्थर चांद के भीतर लगे तो यह संकेत है कि बालक शिशु होगा, चांद आकृति से बाहर पत्थर लगने पर बालिका शिशु होगी।

 

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इस परम्परा पर यहां के ग्रामवासियों का अटूट विश्वास उनके अनुसार यह हमेशा सही होता है। चांद पहाड़ मूल रूप से नागवंशी राजाओं के मनोरंजन पार्क के रूप में विकसित किया गया था। पहाड़ के ऊपर शिवलिंग और कुंड जैसी आकृतियां गवाह हैं कि वहां नागवंशी राजा पूजा पाठ भी करते थे। इसके ठीक बगल में चांदनी पहाड़ है, जहां नागवंशी रानियां विहार करती थीं।

 

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