KGMU Research on PUBG: 80 प्रतिशत बच्चे दिन-रात गेम के बारे में सोचते, 56 फीसदी ने छोड़े पुराने शौक़
KGMU Research on PUBG: बच्चों को मोबाइल गेम की लत लग चुकी है। उन्होंने अपने पुराने शौकों को भुला दिया है। बच्चे पहले पार्कों में क्रिकेट, फुटबॉल या घर के अंदर लूडो, शतरंज खेलते थे।
KGMU Research on PUBG: राजधानी के पीजीआई थानांतर्गत (Under PGI Police Station) रहने वाले एक परिवार में बेटे ने पबजी (PUBG) गेम के चक्कर में मां की जान ले ली। पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, मां की गलती बस इतनी थी कि वो अपने 16 वर्षीय बेटे को गेम न खेलने के लिये बार-बार टोकती थी। बहरहाल, ये तो हो गई वो बातें, जो आप सभी को पता हैं। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्विद्यालय यानी KGMU के मानसिक स्वास्थ्य विभाग के डॉ. पवन कुमार गुप्ता ने 46 बच्चों पर शोध किया है, जिसमें यह निकलकर सामने आया कि करीब 80.43 प्रतिशत बच्चे गेम के बारे में दिन-रात सोचते रहते हैं।
शोध में निकलकर आए कई पहलू:-
डॉ. पवन द्वारा किये गए शोध में ज़्यादातर बच्चे गेम डिसऑर्डर से ग्रसित मिले। उनके अनुसार, 76.08 फीसदी बच्चे उग्र पाए गए। 64.50 प्रतिशत बच्चों ने देर रात तक गेम खेलने की बात को कबूला है। 67.39 फीसदी बच्चे मानसिक रूप से परेशान पाए गए। वहीं, 56.52 प्रतिशत बच्चों ने अपने पुराने शौक़ छोड़ दिए।
बच्चों को बहलाने के लिए न दें फ़ोन
केजीएमयू मानसिक स्वास्थ्य विभाग के डॉ. पवन कुमार गुप्ता ने बताया कि बच्चों को बहलाने के लिये फोन कतई न दें। दूध पिलाने या बच्चे के रोने पर भी उन्हें फ़ोन न दें। क्योंकि, छोटे बच्चे अपनी नज़रों से मां को समझते हैं, यदि मां मोबाइल पकड़ा देंगी, तो भावनात्मक लगाव पनपता ही नहीं।
पुराने शौक छोड़ रहें
डॉ. गुप्ता के मुताबिक, जिन बच्चों को मोबाइल गेम की लत लग चुकी है। उन्होंने अपने पुराने शौकों को बिल्कुल भुला दिया है। जो बच्चे पहले पार्कों में क्रिकेट, फुटबॉल या घर के अंदर लूडो, शतरंज खेलते थे। या जो छतों पर पतंग उड़ाते थे, मोबाइल फोन में गेम खेलने की वजह से उन्होंने ये सब भुला दिया। ऐसे बच्चों की संख्या 50 फीसदी से अधिक है।