क्षेत्रीय दलों को जनता ने नकारा, समर्थकों का हुआ मोहभंग
अलाव की आंच में पोहा का स्वाद और सियासत की कयासबाजी कि प्रदेश का ताज किसके सर सजेगा, इस वक्त पांच राज्यों में सबसे ताजा खबर है। पांच राज्यों में मतगणना और जीत हार के बाद सरकार बनाने की आतुरता ने कुछ सवाल हल किये तो कुछ सवाल सोचने के लिए छोड़ दिए। इन पांच राज्यों में से तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, में क्षेत्रीय दलों को जनता ने नकार दिया।
लखनऊ: अलाव की आंच में पोहा का स्वाद और सियासत की कयासबाजी कि प्रदेश का ताज किसके सर सजेगा, इस वक्त पांच राज्यों में सबसे ताजा खबर है। पांच राज्यों में मतगणना और जीत हार के बाद सरकार बनाने की आतुरता ने कुछ सवाल हल किये तो कुछ सवाल सोचने के लिए छोड़ दिए। इन पांच राज्यों में से तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, में क्षेत्रीय दलों को जनता ने नकार दिया। तीनों राज्यों में दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और बीजेपी को जनता ने अपना बहुमूल्य मत दिया।
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राज्य में विकास के वादे और वहां पिछड़ते विकास ने मतदाओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वोट को सोचसमझ कर इस्तेमाल करना है। राजनीतिक विश्लेषकों की ऐसी मान्यता रही है कि राज्य के चुनाव में स्थानीय मुददे ही प्रभाव रखते है। पर इसमें अब कुछ बदलाव की गुंजाइस बन रही है। ताजा पांच राज्यों के परिणाम में जनता का भरोसा बड़े दलों पर ही टिका रहा।
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राजस्थान में भारत वाहिनी पार्टी और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी सहित कुल 88 पार्टियों ने उम्मीदवार उतारे थे। यहाँ पर खाता खोल पाने वाले दल गिनती के रहे। छत्तीसगढ़ में भी 65 दल चुनाव मैदान में उतरे थे। मध्यप्रदेश में तो 100 से भी अधिक दलों ने चुनाव लड़ा लेकिन परिणाम सबके सामने है। यहां बसपा को दो सीटें मिली। मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी एक सीट के साथ अपना खाता भर खोल पाई।
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छत्तीसगढ़ की 90 में से 85 सीटों पर चुनाव लड़ रही आप को 0.9 प्रतिशत, सपा और राकांपा को 0.2 तथा भाकपा को 0.3 प्रतिशत वोट मिले। वहीं राज्य के 2.1 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा को अपनी पसंद बनाया।
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मध्य प्रदेश में जय आदिवासी युवा शक्ति,गोंडवाना गणतंत्र पार्टी,सपाक्स पार्टी चुनाव के पूर्व कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए सरदर्द बनी रही। राज्य में सर उठाते ये क्षेत्रीय दल गठबंधन करने के लिए बड़े दलों को आकर्षित करते रहे। क्षेत्र विशेष में प्रभाव व प्रभुत्व रखने वाले इन दलों का दावा था कि इनके पास जाति विशेष के वोट है। पर निर्णायक स्थिति बनते बनते इन दलों से उनके समर्थकों का मोहभंग होता चला गया।
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एमपी में आरक्षण का मुद्दा बेअसर साबित हुआ। जनता ने इस मुद्दे पर हुई राजनीति को नकार दिया है। इस मुद्दे को आधार बनाकर चुनाव मैदान में उतरी सपाक्स पार्टी कोई चमत्कार नहीं दिखा सकी। पार्टी ने 109 विधानसभा सीटों से प्रत्याशी उतारे थे, वे जीतना तो दूर वोट भी नहीं काट सके। इनमें से अधिकांश प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई है। पार्टी को प्रदेश में महज (0.4 फीसदी) वोट मिले हैं।
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आम आदमी पार्टी (आप) की बात करें तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली इस पार्टी ने राजस्थान में 141सीटों पर, छत्तीसगढ़ में प्रदेश की सभी 90 सीटों पर और मध्यप्रदेश की 208 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन यह पार्टी तीनों राज्यों में कहीं अपना खाता भी नहीं खोल सकी।