Gorakhpur Vyapari Hatyakand: वायरल वीडियो ने सच किया ऊजागर, जीडी फर्जी बनाई गई, मेडिकल रिपोर्ट में भी की गई छेड़छाड़
Gorakhpur Vyapari Hatyakand: कानपुर के मृतक व्यापारी मनीष गुप्ता के मेडिकल वाले पर्चे पर ब्रॉड डेड क्यों लिखा है, यदि पर्चे पर ब्राड डेड लिखा है तो फिर उसे भर्ती करने की क्या जरूरत थी?
Gorakhpur Vyapari Hatyakand: गोरखपुर के चर्चित व्यापारी मनीष हत्याकांड में एसआईटी की जांच शुरू होने से पूर्व आरोपी इंस्पेक्टर जेएन सिंह के इशारे पर सबूतों से जमकर छेड़छाड़ की गई है। इस केस में नामजद हुए इंस्पेक्टर जेएन सिंह ने सबसे पहले मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट को अपने हिसाब से बदलवाया। साथ ही उसके हिसाब से थाने में इस केस की जीडी भी तैयार की।इतना सब करवाकर तब इंस्पेक्टर जेएन सिंह अन्य पुलिस कर्मी फरार हो गए। सुबतों से की गई छेड़छाड़ को जांच कर रही, कानपुर एसआईटी टीम की पकड़ में आ गया है।इस केस से रिलेटिड थाने की मूल कॉपी व मेडिकल कॉलेज में बनी व्यापारी की डॉक्टरी रिपोर्ट एसआईटी ने अपने कब्जे में ले ली है।
कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता का इमरजेंसी पर्चा सार्वजनिक होने से बाबा राघव दास मेडिकल कालेज में हड़कंप मचा है। 27 सितंबर की रात में बने पर्चे पर मनीष का नाम, उम्र दर्ज होने के साथ ही आने, भर्ती होने व मृत्यु का समय दर्ज है। लेकिन इसी पर्चे पर कोने में बीडी (ब्राड डेड- अस्पताल पहुंचने से पहले मौत) भी लिखा हुआ है। इसे लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं।एसआईटी की टीम ने अपनी जांच में इस हेराफेरी को पकड़ लिया है। प्राचार्य ने संबंधित अधिकारियों की बैठक बुलाकर सभी कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है।
संबंधित अधिकारियों से किया गया सवाल-जवाब
कानपुर के मृतक व्यापारी मनीष गुप्ता के मेडिकल वाले पर्चे पर ब्रॉड डेड क्यों लिखा है, अब सवाल यह पैदा हो रहा है? यदि पर्चे पर ब्राड डेड लिखा है तो फिर उसे भर्ती करने की क्या जरूरत थी? अस्पताल पहुंचने पर जांच के दौरान यदि पता चलता है कि मरीज की मृत्यु हो चुकी है, तो डॉक्टर पर्चे पर बीडी लिखकर वापस कर देते हैं। लेकिन मनीष के भर्ती पर्चे पर नाम, पता, उम्र लिखने के बाद बीडी लिखकर उसके बाद नीचे मानसी हास्पिटल तारामंडल से रेफर होकर रात 2.15 बजे मेडिकल कालेज आने व 2.35 बजे मृत्यु होने की बात लिखी है। एक ही पर्चे पर इन दो परस्पर विरोधी बातों के लिखे जाने से व्यवस्था पर सवाल खड़ा हो गया है। कानपुर से पहुंची एसआइटी तीन दिन से इसी गुत्थी को सुझलाने में लगी है। इस संदर्भ में जारी एसएआईटी की जांच को लेकर मेडिकल के प्रचार्य से लेकर डॉक्टर तक स्तब्ध हैं । लेकिन इस प्रश्न का जवाब किसी के पास नही है कि व्यापारी मनीष हत्याकांड की यह फर्जी रिपोर्ट किसलिए और किसके कहने पर तैयार की गई है?
रिकार्ड में कैसे हो गई इतनी बड़ी चूक
आमतौर पर मरीज के ब्राड डेड घोषित होने पर उसे भर्ती नहीं किया जाता है। भर्ती किया जाता है, तो ब्राड डेड नहीं लिखा जाता है। यदि चूक थी । तो दूसरा पर्चा बनाकर इसे दुरुस्त करना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह पर्चा एसआईटी के हाथ लग गया है।अब इस मामले में एक नया मोड़ आने के साथ ही मेडिकल कालेज भी इस केस में जांच का नया केंद्र बन गया है।
लगातार एसआईटी कर रही है होटल और थाने में घंटों की जांच
ऐसा लगता है कि कानपुर की एसआईटी को इस घटना से जुड़े कुछ पहलुओं में उसे कुछ साजिश की बू आने लगी है।इसीलिये कानपुर एसआईटी ने होटल कृष्णा पैलेस और रामगढ़ताल थाने में सोमवार से लेकर अब तक रात में कई घंटों जांच की है। बताया जा रहा है कि फोरेंसिक टीम ने जो केमिकल लगा पालीथिन छोड़कर आई थी, उसके छाप को एकत्र किया। अब इसकी फोरेंसिक जांच होगी। टीम नर्सिंग होम, मेडिकल कालेज जांच के बाद दोबारा होटल में पहुंची थी।वैज्ञानिक साक्ष्य के जरिए एसआइटी पूरी कड़ी को कड़ी से जोड़ रही है।
इस केस में जुड़ी फर्जी जीडी लिखने में इंस्पेक्टर जेएन सिंह को 19 घण्टे लगे हैं
कानपुर के रियल इस्टेट कारोबारी मनीष गुप्ता की पीट कर हत्या करने के आरोपित इंस्पेक्टर जेएन सिंह और चौकी इंचार्ज अक्षय मिश्रा ने खुद को बीमार बताकर थाने की जीडी से अपनी रवानगी की है। जेएन सिंह ने पहले अक्षय मिश्रा को बीमार बताकर इलाज के लिए रवाना किया और बाद में खुद की तबीयत खराब होने का जिक्र करते हुए फरार हो गया। इससे पहले उसने अपनी गढ़ी हुई कहानी को जीडी में विधिवत दर्ज किया है।हालांकि यह कहानी लिखने में उसने 19 घंटे लगा दिए।
इस जीडी की खास बात यह है कि 27 सितम्बर की रात हुई घटना को उसने जीडी में 28 सितम्बर की देर शाम को दर्ज किया है। रामगढ़ताल थाने की जीडी नम्बर 041 पर 28 सितम्बर को 19.48 बजे यह तस्करा डाला है। अब बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि जेएन सिंह और उसके साथी पुलिस कर्मियों को दोपहर में ही निलम्बित कर दिया गया था। घटना वाली रात जिस समय मीनाक्षी गुप्ता अपने पति की हत्या का आरोप लगाते हुए पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर की मांग कर रही थी। उस वक्त जे एन सिंह अपनी जीडी लिख रहा था और घटना की कहानी गढ़ रहा था। हालांकि एफआईआर देर रात को हुई और वह जीडी में तस्करा डालकर रात में लखनऊ के नम्बर की काली स्कार्पियो से निकल गया था।
जेएन सिंह ने जीडी में लिखा है कि रात्रि जागरण के कारण हमराह उ.नि. अक्षय कुमार मिश्र की एवं मुझ प्रभारी निरीक्षक की तबीयत खराब हो गई है। उ.नि. अक्षय कुमार मिश्र को इलाज कराने के लिए रवाना किया गया है। उनके पास मौजूद पिस्टल और 10 चक्र कारतूस था, जिसे कार्यालय दाखिल किया गया है। उसके बाद अपने लिए लिखा है कि चूंकि मुझ प्रभारी निरीक्षक की तबीयत भी खराब है। अत: खुद की बीमारी का तस्करा डालते हुए इलाज कराने को रवाना होना दर्ज किया है और रवाना होने से पहले अपने पास मौजूद रिवाल्वर मय कारतूस कार्यालय में दाखिल किया है। सीयूजी मोबाइल को कांस्टेबल मुंशी हरीश कुमार गुप्ता को सुपुर्द करते हुए हिदायत दी है कि इसे वरिष्ठ उ.नि. अरुण कुमार चौबे को सुपुर्द करें। अंत में तस्करा वापसी व बीमारी अंकित किया है।
वायरल वीडियो ने खोल दिया सच
घटना वाली रात का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।इस वीडियो में दिखाया जा रहा है कि इंस्पेक्टर जेएन सिंह व अन्य पुलिस कर्मी व्यवसायी मनीष को अचेत स्थिति में कहीं ले जा रहे हैं।यह वीडियो भी इस घटना का काफी कुछ सत्य ऊजागर कर रहा है।बहरहाल, एसआईटी की पैनी निगाह में वह सच आ गया है , जिसकी टीम को तलाश थी।ऐसा लगता है जब तक इस केस को सीबीआई अपने हाथ मे लेगी तब तक एसआईटी इस केस कई परतें खोल चुकी होगी।