राम मंदिर पर बड़ी खबर: सालों बाद होगा ऐसा, बाहर आएंगी राम शिलाएं
नया साल शुरु होने के साथ ही सरकार, विश्व हिंदू परिषद्, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और संतों ने राम मंदिर निर्माण की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट गठन से लेकर मंदिर निर्माण की प्रक्रिया पर सरकार की गतिविधियां शुरु हो चुकी हैं।
अयोध्या: नया साल शुरु होने के साथ ही सरकार, विश्व हिंदू परिषद्, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और संतों ने राम मंदिर निर्माण की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट गठन से लेकर मंदिर निर्माण की प्रक्रिया पर सरकार की गतिविधियां शुरु हो चुकी हैं और इसी के साथ उन दो राम शिलाओं के बाहर आने का वक्त हो चुका है, जो 18 साल से ट्रेजरी में हैं।
2002 को सरकार को सौंपी गई थीं शिलाएं
ये शिलाएं 15 मार्च, 2002 को श्रीराम जन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष रामचंद्र परमहंस और विहिप के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंहल द्वारा केंद्र की तत्कालीन अटल विहारी वाजपेयी सरकार में गठित अयोध्या प्रकोष्ठ के प्रभारी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को सौंपी गई थीं। तब से ही ये ट्रेजरी में हैं।
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ये शिलाएं पूजित हैं और स्वर्गीय रामचंद्र परमहंस और अशोक सिंहल ये चाहते थे कि इन शिलाओं को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर बनने वाले मंदिर के गर्भगृह में लगाया जाए। इसलिए संत और विश्व हिंदू परिषद् इस कोशिश में हैं कि इन शिलाओं को मंदिर निर्माण शुरु होने से पहले ही ट्रेजरी से बाहर ले आया जाए।
जानकारी के अनुसार, इस महीने प्रयाग में होने वाले माघ मेले के दौरान संतों की होने वाली केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में इन शिलाओं को ट्रेजरी से बाहर लाने के बारे में विचार-विमर्श किया जाएगा। उसके बाद इन्हें किसी शुभ मुहूर्त पर ट्रेजरी से बाहर लाने के बारे में भी निर्णय लिया जाएगा।
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इसके साथ ही शिलाओं को मंदिर के गर्भगृह में लगाने के स्थान पर भी फैसला लिया जाएगा। हालांकि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को ही ट्रस्ट का गठन करना है, लेकिन फिर भी सभी को पता है कि सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट के जरिए मंदिर का निर्माण होने के बावजूद इसमें विश्व हिंदू परिषद् और संतों को भूमिका अहम होगी।
इस वजह से भी खास हैं ये शिलाएं
विहिप के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा का कहना है कि, ट्रेजरी में रखीं दोनों राम शिलाएं कई वजहों से अहम हैं। पहला तो ये शिलाएं स्व. रामचंद्र परमहंस और अशोक सिंहल जैसे उन लोगों द्वारा पूजन करके सरकार को सौंपी गई थीं, जिनका अयोध्या आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा। साथ ये शिलाएं अयोध्या आंदोलन के इन दोनों सूत्रधारों के साथ तमाम संतों और विहिप के उन तमाम कारसेवकों को श्रद्धांजलि देने का भी माध्यम हैं, जो अपने जीवित रहने तक मंदिर निर्माण का सपना साकार होते नहीं देख पाए। इसलिए भी इन शिलाओं को गर्भगृह जैसे मुख्य पवित्र स्थल पर लगाना है।
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