विश्व प्रसिद्ध काशी के भरत मिलाप की नहीं टूटी परंपरा, सादगी के साथ निभाई गई परंपरा

कहते हैं आज के दिन नाटी इमली की इस भरत मिलाप में भगवान श्रीराम स्वयं अपने भाइयों से मिलने आते हैं। हर वर्ष होने वाले इस आयोजन में असंख्य श्रद्धालु पुण्य की भागीदारी होते थे।

Update: 2020-10-27 13:23 GMT
विश्व प्रसिद्ध काशी के भरत मिलाप की नहीं टूटी परंपरा, सादगी के साथ निभाई गई परंपरा (Photo by social media)

वाराणासी: काशी की विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप की परम्परा टूटने से बच गई। कोरोना काल के मद्देनजर लीला की भव्यता तो नहीं दिखी लेकिन सांकेतिक तरीके से लीला मंचन कर सालों पुरानी परम्परा निभाई गई। लोगों ने संयमित तरीके से लीला को देखा और भगवान का आशीर्वाद लिया।

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भरत मिलाप देख भर आती हैं आँखें

कहते हैं आज के दिन नाटी इमली की इस भरत मिलाप में भगवान श्रीराम स्वयं अपने भाइयों से मिलने आते हैं। हर वर्ष होने वाले इस आयोजन में असंख्य श्रद्धालु पुण्य की भागीदारी होते थे। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के संकट को देखते हुए लीला की परंपरा का निर्वाह किया गया। हर वर्ष की भांति इस भरत मिलाप में काशी नरेश अनंत नारायण सिंह पहुंचे।भगवान की सुंदर झांकियों को देख नतमस्तक होकर आशीर्वाद लिए। इसके बाद लीला की शुरुआत हुई।

varanasi-ramlila (Photo by social media)

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बनारस के लक्खा मेले में शुमार है भरत मिलाप

सरकार की गाइड लाइनओं के साथ शुरू हुई विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप में भगवान श्री राम और लक्ष्मण ने भरत और शत्रुघ्न से 14 साल के वनवास के बाद देखते ही लिपट पड़े। बड़ा ही मनमोहक दृश्य था. हर ओर भगवान की जयकारें गुजने लग रहे थे। इस मिलाप की झांकी में भगवान राम स्वयं और उनके चारों भाई यहां आते हैं। इनके रूपों को देखने वाले लोगों के दिलों की धड़कन ही रुक जाती है। चारों भाइयों का प्यार और आदर सम्मान पूरे विश्व में प्रचलित है।

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खास तौर पर पूरे बनारस में इसदिन का लोगों को बेहद इंतजार होता है। ताकि वह अपने भगवान प्रभु श्री राम का दर्शन कर अपनी हर अभिलाषाओं को पूर्ण करें यही वजह है कि इस पूरे लीला में असंख्य श्रद्धालु पहुंचते हैं हर और लोगों की भीड़ और जयकारे से पूरा आयोजन गूंजता रहता है।

आशुतोष सिंह

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