रेप, हत्या के जुर्म में भुगत रहा था उम्रकैद, फर्जी आदेश से रिहाई, जांच के आदेश
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जिला जज लखनऊ को हत्या और बलात्कार के जुर्म में सजा काट रहे अभियुक्त की जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के एक कथित रूप से फर्जी आदेश के आधार पर रिहाई हो जाने की जांच करने के आदेश दिये हैं।
कोर्ट ने जिला जज को दो सप्ताह में मामले की जांच कर रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। वहीं हाईकोर्ट ने एसएसपी को इसी प्रकरण में दर्ज प्राथमिकी पर सीओ स्तर के अधिकारी से जांच कराकर रिपेर्ट पेश करने के आदेश दिये हैं।
यह आदेश जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस महेंद्र दयाल की बेंच ने अभियुक्त की ओर से दाखिल अपील पर सुनवायी के दौरान पारित किया।
उल्लेखनीय है कि एक बच्ची के हत्या और बलात्कार के मामले में अपर सत्र न्यायालय, लखनऊ ने पुतई समेत वर्तमान में नाबालिग करार दिए गए अभियुक्त को दोषी करार दिया था। नाबालिग करार दिए गए अभियुक्त को उम्रकैद और पुतई को फांसी की सजा सुनाई गई थी। जिसके बाद जेजे बोर्ड द्वारा उम्रकैद की सजा पाए अभियुक्त को किशोर करार देते हुए रिहा करने का आदेश दे दिया गया जबकि उसकी ओर से दाखिल अपील हाईकोर्ट में भी विचाराधीन थी।
अपील पर सुनवाई के दौरान यह मामला खुलते ही हाईकोर्ट ने जवाब तलब किया था।
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कोर्ट में अपना स्पष्टीकरण देते हुए जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट अचल प्रताप सिंह ने उनके नाम पर बनाया गया रिहाई आदेश फर्जी बताया है। उन्होंने कहा है कि आदेश पर मौजूद दस्तखत उनके नहीं हैं। इससे पहले मामले में मॉडल जेल के सुपरिंटेंडेंट ने अपने हलफनामे में कहा है कि उन्होंने अभियुक्त के 17 फरवरी 2018 के रिहाई आदेश के बाद 18 फरवरी 2018 को जेजे बोर्ड को पत्र लिखकर स्पष्ट करने को कहा था क्योंकि उन्हें पता था कि अभियुक्त दोषी करार दिया जा चुका है व उसकी अपील हाईकोर्ट में लंबित है। लेकिन 20 फरवरी 2018 को उन्हें पुनः रिहाई आदेश प्राप्त हुआ। पुनः रिहाई आदेश आने के बाद जेल अधिकारियों के पास अभियुक्त को रिहा करने के सिवा दूसरा चारा नहीं था।
इसके पूर्व सेशन कोर्ट के जिस आदेश से मामला जेजे बोर्ड गया था, उस पर अपने दस्तखत होने से अपर जिला व सत्र न्यायाधीश अनुपमा गोपाल निगम इंकार कर चुकी हैं।
अब बोर्ड के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट अचल प्रताप सिंह ने हलफनामा दाखिल कर 20 फरवरी 2018 के रिहाई आदेश को फर्जी बताया है। उन्होंने कहा है कि उक्त आदेश पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं। उन्हें जानकारी नहीं है कि उनकी कोर्ट से उक्त आदेश कैसे भेजा गया और उस पर उनके हस्ताक्षर कैसे आए।
प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इस संबंध में आईपीसी की धारा- 420, 467, 471 व 120 बी में एक एफआईआर भी 12 जून को दर्ज कराई गई है।
इस पर हाईकोर्ट ने एसएसपी लखनऊ को उक्त एफआईआर की जांच सीओ स्तर के अधिकारी से कराने का आदेश दिया है। जांच अधिकारी को मामले की अगली सुनवाई पर जांच की प्रगति रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश करनी होगी। मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।