Siddharthnagar News: क्यों मनाते हैं 'परावन' का त्योहार, जानिए महत्‍व और परंपराएं

Siddharthnagar News: 'परावन' सिद्धार्थनगर के उत्तरी भाग और नेपाल के दक्षिणी भाग से लगे गावों में मनाया जाने वाला एक त्योहार है। इस त्योहार के दिन गांव के कुओं की पूजा और उसे ढकने की भी परंपरा है.;

Published By :  Satyabha
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Update:2021-07-03 12:04 IST
Siddharthnagar News: क्यों मनाते हैं परावन का त्योहार, जानिए महत्‍व और परंपराएं

परावन त्योहार की तैयारी करती महिलाएं

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सिद्धार्थनगर: 'परावन' का त्योहार जनपद सिद्धार्थनगर के उत्तरी भाग और नेपाल के दक्षिणी भाग (सिद्धार्थनगर से लगे) के गावों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार वर्षा के देवता इंद्र को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है। अब आइए जानते हैं कि 'परावन' का त्योहार कैसे मनाया जाता है और क्या है इसकी परंपराएं।


सिद्धार्थनगर के नेपाल सीमा पर प्राचीन काल में बना एक देवी का मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। राजा विराट के यहां गुप्तवास करते समय इस जंगल से पांडव गुजरे थे। कहा जाता है कि महाराज युधिष्ठिर को स्वप्न में देवी ने आशीर्वाद दिया था कि उनका भाग्य पलटेगा। जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और पांडवों को राज्य वापस मिला, तो उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया। जिसे भाग्य पलटने के कारण 'पलटा देवी' मंदिर कहा गया। कपिलवस्तु के महाराज शुद्दोधन ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। कपिलवस्तु पलटा देवी से पूरब की ओर मात्र सात से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। वहां से नेपाल का लुम्बिनी सीमा पार लगा हुआ है। आषाढ़ के महीने में सभी गावों की महिलाएं एकत्रित होकर देवी का गीत गाती हुईं मंदिर जाती हैं। जहां महिलाएं देवी को सिंदूर और सरसों का तेल चढ़ाती हैं।

एक महीने तक लगता है मेला

पलटा देवी माता मंदिर पर एक महीने मेला लगता है। जिसमें केवल महिलाएं और छोटे बच्चे ही जाते हैं। वापस आने पर बुजुर्ग तय करते हैं कि किस दिन परावन का त्योहार मनाया जाएगा। जनपद स्थित सभी गांवों का परावन ग्रामीणों के सुविधानुसार ही तय होता है। त्योहार मनाने से पहले यह ध्यान दिया जाता है कि गांव में सब स्वस्थ हैं। इस दौरान केवल आदमी ही नहीं, एक जानवर भी बीमार नहीं होना चाहिये।

त्योहार मनाने से पहले ये परंपरा जरूरी

परावन त्योहार के दो दिन पहले गांव में कुवां की पूजा और उसे ढकने की परंपरा है। महिलाएं गीत गाकर कुवां की पूजा करती हैं। ऐसे ही गांव के सभी कुओं पर पूजा की जाती है। आगामी सोमवार को परावन का त्योहार दिन में मनाया जायेगा। इस दिन घर-घर में पूड़ी-सब्जी, गुझिया, गुलगुला और लप्सी बनेगा।

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