समाजसेवी ने इंग्लिश मीडियम स्कूलों की मनमानी के खिलाफ ऐसे जताया विरोध
यूपी के शाहजहांपुर में इंग्लिश मीडियम स्कूलों की मनमानी के चलते एक समाजसेवी ने अनोखा प्रदर्शन किया। सदर बाजार के निशान टाकीज के पास एक संजीव गुप्ता नाम के समाजसेवी ने शनिवार (8 अप्रैल) को इंग्लिश मीडियम स्कूलों के खिलाफ अनोखे अंदाज मे प्रदर्शन करके अपनी नाराजगी जाहिर की। समाजसेवी ने बीच सड़क पर लोगों से भीख मांगी। साथ ही रोड के किनारे बैठककर लोगों के जूते साफ कर पैसे मांगे और गाड़ियों के शीशे साफ किए।
शाहजहांपुर : यूपी के शाहजहांपुर में इंग्लिश मीडियम स्कूलों की मनमानी के चलते एक समाजसेवी ने अनोखा विरोध प्रदर्शन किया। सदर बाजार के निशान टॉकीज के पास एक संजीव गुप्ता नाम के समाजसेवी ने शनिवार (8 अप्रैल) को इंग्लिश मीडियम स्कूलों के खिलाफ अनोखे अंदाज मे प्रदर्शन करके अपनी नाराजगी जाहिर की। समाजसेवी ने बीच सड़क पर लोगों से भीख मांगी। साथ ही रोड के किनारे बैठककर लोगों के जूते साफ कर पैसे मांगे और गाड़ियों के शीशे साफ किए। वहीं ये अनोखा प्रदर्शन क्षेत्र मे चर्चा का विषय बना हुआ है।
प्रदर्शन कर जताई नाराजगी
प्रदर्शन करने वाले समाजसेवी का कहना है कि जिले मे इंग्लिश मीडियम स्कूलों की कमी नहीं है। लेकिन उसके बाद इन स्कूलों मे गरीबों के बच्चो को क्यों नहीं लिया जाता है। वहीं अमीर घर के बच्चों को फोरन एडमिशन दे दिया जाता है। जबकि सरकार ने 25 पर्सेंट गरीबों के बच्चों को एडमिशन देने के आदेश इंग्लिश मीडियम स्कूलों को दिए है। लेकिन इन आदेशों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। यही वजह है कि इस तरह का प्रदर्शन करके अपनी नाराजगी जाहिर की है। साथ ही भीख मांगने और जूते साफ करने मे जितना पैसा उन्हें मिलेगा, वह उन पैसों से किसी गरीब बच्चे को किताबें दिलाएंगे।
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लोगों ने भी दिया साथ
समाजसेवी ने गरीबी दर्शाते हुए ये जताने की कोशिश की है कि गरीब किस तरह से पैसे कमाकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहता है। लेकिन इंग्लिश मीडियम स्कूल अवैध तरीके से मनमानी फीस लेते है। जिससे गरीब आदमी अपने बच्चों का एडमिशन लेने में खुद को असमर्थ पाता है। इस अनोखे प्रदर्शन को देखने के बाद वहां पर मौजूद लोगों ने इस समाजसेवी की हौसला अफजाई की। मौजूद लोगों ने जूते साफ करने में उसका साथ दिया।
क्या कहना है समाजसेवी का?
समाजसेवी संजीव गुप्ता का कहना है कि वह बीच रोड पर इसलिए भीख मांग रहे और लोगों के जूते साफ कर रहे हैं ताकि इंग्लिश मीडियम स्कूल वाले ये देखे कि गरीब भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहता है। क्या उसका हक नहीं है कि वह इंग्लिश मीडियम स्कूलों मे पढ़े। क्या उन स्कूलों मे सिर्फ अमीर घर के बच्चों का ही हक है। क्या सिर्फ गरीब बच्चों के लिए ही सरकारी स्कूल है। जहां न तो सही से पढ़ाई होती है और न ही टीचरों का कुछ पता होता है। अब तो इंग्लिश मीडियम स्कूलों ने मनमानी शुरू कर दिया है। किताबों मे प्रिंट रेट से ज्यादा पैसे वसूले जा रहे है। इस ओर सरकार भी कोई ध्यान नहीं दे रही है।
दरअसल, आज शिक्षा दो भागों मे बंट चुका है। अब शिक्षा भी अमीरी-गरीबी देखकर दी जाती है। अगर अमीर घर का बच्चा है तो उसके लिए इंग्लिश मीडियम स्कूल बने है। वहीं किसी गरीब घर के बच्चे के एडमिशन की बात आती है तो उसके लिए फीस महंगी पड़ जाती है। इंग्लिश मीडियम स्कूलों की शिक्षा महंगी होने के कारण गरीब अपने बच्चो को पढ़ाने के लिए सिर्फ सोच ही सकता है। लेकिन बाद मे उसे सरकारी स्कूलों मे ही दाखिला कराना पड़ता है।
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