Sonbhadra News: हवा में प्रतिवर्ष बढ़ रही महीन कणों की संख्या, लोगों के फेफड़ों पर पड़ रहा प्रदूषण का प्रभाव

Sonbhadra News: हवा में प्रतिवर्ष महीन कणों (पीएम2.5) की संख्या बढ़ने का खुलासा हुआ है। वहीं, इस बात की भी जानकारी सामने आई है कि प्रदूषण के कारण पूर्व के वर्षों के मुकाबले लोगों का स्वास्थ्य और फेफड़ा दोनों के प्रभावित होने की गति तेज हो गई है।

Update: 2024-07-29 14:07 GMT

हवा में प्रतिवर्ष बढ़ रहा प्रदूषण, लोगों के फेफड़ों पर पड़ रहा प्रदूषण का प्रभाव: Photo- Newstrack

Sonbhadra News: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से एनजीटी में दाखिल की गई हालिया रिपोर्ट और बनवासी सेवा आश्रम की ओर से किए गए सर्वे में, सोनभद्र की स्थिति प्रदूषण और इसका लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभाव की स्थिति काफी खराब पाई गई है। हालिया रिपोर्ट-सर्वे में जहां जिले की हवा में प्रतिवर्ष महीन कणों (पीएम2.5) की संख्या बढ़ने का खुलासा हुआ है। वहीं, इस बात की भी जानकारी सामने आई है कि प्रदूषण के कारण पूर्व के वर्षों के मुकाबले लोगों का स्वास्थ्य और फेफड़ा दोनों के प्रभावित होने की गति तेज हो गई है।

सामने आए वह आंकडे़, जो बयां कर रहे प्रदूषण की खराब स्थिति

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से एनजीटी में अप्रैल 2023 से मार्च 2024 के बीच अनपरा और रेणुसागर में यूपीपीसीबी की ओर से संचालित वायु प्रदूषण मापन केंद्र और उद्योगों द्वारा संचालित प्रदूषण मापन (मानिटरिंग) केंद्र के जो आंकड़े पेश किए गए हैं, उसमें स्पष्ट हो रहे हैं, मानिटरिंग केंद्रों की आंकड़ों के मुकाबले, यूपीपीसीबी के केंद्रों के आंकड़ों में महीन कणों की संख्या ढाई से तीन गुना ज्यादा है।


- वर्ष 2011-12 में फ्लोरोसिस प्रभावित इलाकों में 32.9 प्रतिशत महिलाओं और 39.3 प्रतिशत पुरूषों के दांत में पीलेपन की शिकायत थी। वर्ष 2023-24 में बढ़कर यह क्रमशः 55.6 और 51.8 प्रतिशत पहुंच गया।

- वर्ष 2011 में जिन गांवों में फ्लोरोसिस की मात्रा 30 से 35 प्रतिशत पाई गई थी। वहां, यह संख्या बढ़कर 60 से 70 फीसद पहुंच गई है। वहीं, कोन ब्लाक के निरूइयादामर में यह लगभग शत-प्रतिशत पहुंच चुका है। बकुलिया ग्राम पंचायत के जामपानी में भी तेजी से बढ़ा फ्लोरोसिस का प्रभाव चौंकाने वाला है।

- प्रदूषण प्रभावित इलाके के कई गांवों में फेफड़ों की क्षमता भी तेजी से प्रभावित पाई गई है। वर्ष 2011-12 में सर्वे के आधार पर जहां फेफड़ों की क्षमता के मामले में, जिले का ओवरआल औसत 43 प्रतिशत तक प्रभावित पाया गया था। वहीं, 2023-24 में सर्वे से जुड़े कई गांवों में फेफड़ों के काम करने की क्षमता सामान्य पुरूष के मुकाबले 47 प्रतिशत घटी पाई गई है।

- भारी धातुओं के चलते मसूढ़ों में नीली रेखा और हाथों में कंपन की भी समस्या में वृद्धि दर्ज की गई है। सर्वे के लिए चिन्हित की गई महिलाओं में वर्ष 2011-12 में इसका प्रभाव 18.5 प्रतिशत पाया गया था। वहीं, साल 2023-24 में बढ़कर यह 39.5 प्रतिशत पर पहुंचा मिला।


एनजीटी के इन निर्देशों पर हुआ होता अमल तो सुधर सकती थी तस्वीर

- बताते चलें कि एनजीटी की ओर से कोर कमेटी के जरिए सोनभद्र में प्रदूषण की स्थिति जानने के बाद 16 दिसंबर 2017 को यहां के भूजल और सतह जल में पारा यानी मरकरी की मौजूदगी नापने के लिए उद्योगों को सोनभद्र-सिंगरौली में तीन पारा मापन केंद्र स्थापित करने के निर्देश दिए गए थे लेकिन अब तक इस पर कोई जानकारी सामने नहीं आई।

- स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का दीर्घ-कालिक अध्ययन, डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की स्पेशल ट्रेनिंग, फ्लोराइड व पारा के कारण होने वाली बीमारियों का पता लगाकर उनके सही इलाज के भी निर्देश अब तक प्रभावी नहीं हो पाए।

- जिले में टाक्सिलाजिकल (विष विज्ञान) लैब स्थापित करने, केयरिंग कैपसिटी स्टडी करते हुए, नए उद्योगों के स्थापना की नीति/अनुमति के निर्देश भी अब तक धरातल से दूर हैं।

-हालात बेहद खतरनाक, शासन से कडे़ एक्शन की जरूरत

सिंगरौली प्रदूषण मुक्ति वाहिनी के संयोजक रामेश्वर भाई हालात पर गहरी चिंता जताते हैं। कहते हैं कि सर्वे-रिपोर्टों में जिस तरह की स्थितियां सामने आई हैं, वह बेहद खतरनाक हैं। सोनभद्र में पर्यावरण की स्थिति दिन ब दिन खराब होती जा रही है। अगर समय रहते प्रदूषण पर नियंत्रण और पर्यावरण की स्थिति में सुधार को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाला समय संकट भरा रहने वाला है। एनजीटी की ओर से दिए गए निर्देशों के अनुपालन की स्थिति और प्रदूषण नियंत्रण के लिए किस तरह के कदम उठाए जा रहे, इसकी जानकारी के लिए यूपीपीसीबी के प्रभारी क्षेत्रीय अधिकारी उमेश कुमार गुप्ता से फोन पर संपर्क साधा गया लेकिन नंबर स्वीच्ड आफ का उत्तर मिलता रहा।

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