Sonbhadra News: पेड़ों की कटाई पर अपर मुख्य सचिव सहित सात से मांगा जवाब, ओबरा सी से जुड़े मामले में एनजीटी ने बनाया पक्षकार

Sonbhadra News: सभी से नोटिस प्राप्त होने के एक माह के भीतर एनजीटी के समक्ष जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।

Update: 2024-09-09 13:57 GMT

पेड़ों की कटाई पर अपर मुख्य सचिव सहित सात से मांगा जवाब  (photo: social media )

Sonbhadra News: ओबरा सी परियोजना के निर्माण के लिए कथित 50 हजार पेड़ों की कटाई मामले की एनजीटी में चल रही सुनवाई को लेकर अपर मुख्य सचिव पर्यावरण सहित सात को पक्षकार बनाया गया है। मामले में सभी पक्षकारों को प्रकरण पर, एक माह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए, सुनवाई की अगली तिथि 22 अक्टूबर 2024 तय की गई है।

इनको बनाया गया है पक्षकार

मामले में अपर मुख्य सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, लखनऊ के माध्यम से राज्य सरकार, प्रधान मुख्य वन संरक्षक यूपी, डीएफओ सोनभद्र, यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, एमडी यूपी राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड और ओबरा थर्मल पावर प्रोजेक्ट के सीजीएम को पक्षकार बनाया गया है। सभी से नोटिस प्राप्त होने के एक माह के भीतर एनजीटी के समक्ष जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।

यह है मामला और संयुक्त समिति की यह थी रिपोर्ट

अक्टूबर 2023 में एनजीटी को ओबरा से एक शिकायत भेजी गई जिसमें दावा किया गया कि ओबरा सी निर्माण से जुड़े लोगों ने अवैध तरीके से 50 हजार पेड़ काट डाले हैं। ओबरा डी निर्माण के लिए ऐसे एक लाख पेड़ों को काटे जाने की संभावना है। प्रकरण पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने प्रकरण की सुनवाई शुरू की और डीएम सोनभद्र और यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव प्रतिनिधि, प्रभागीय वनाधिकारी सोनभद्र और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय लखनऊ के प्रतिनिधि की मौजूदगी वाली संयुक्त टीम गठित कर रिपोर्टतलब की। संयुक्त समिति ने गत 24 अगस्त को संबंधित स्थल का दौरा कर पिछले दिनों एनजीटी को रिपोर्ट सौंपी जिसमें कहा गया कि मेसर्स यूपीआरवीयूएनएल ओबरा ने ओबरा-सी परियोजना के निर्माण के लिए 5347 पेड़ों को काटने की अनुमति ली थी। इसके बदले 15096 पेड़ लगाए गए थे। वन प्रभाग से उपलब्ध जानकारी के मुताबिक उसमें 11680 वृक्ष जीवित हैं जो मानक के अनुरूप हैं। ओबरा डी के मामले में अभी कोई अनुमति या इसकी प्रक्रिया न होने की जानकारी दी गई।

इस मसले को लेकर लिया गया एक्शन

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और एक्सपर्ट मेंबर डा. अफरोज अहमद की बेंच ने पिछले सप्ताह मामले की सुनवाई की। रिपोर्ट का अध्ययन करते हुए पाया गया है कि इस मामले में यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि जिस भूमि पर पेड़ काटे गए हैं वह वन भूमि है या नहीं। न ही पेड़ों के प्रकार, उम्र और पेड़ों की अन्य जानकारियों के बारे में जानकारी दी गई है। प्रभागीय वनाधिकारी द्वारा काटने की दी गई अनुमति सहित उसके स्वामित्व भूमि व आवश्यक तथ्यों का खुलासा किया गया है।

प्रावधानों के तहत पेड़ कटान की अनुमति जरूरी:

बेंच ने माना कि प्रभागीय वनाधिकारी पेड़ों को काटने की अनुमति देते हैं क्योंकि यह उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1975 के प्रावधानों के तहत आवश्यक है। इसलिए यह रिपोर्ट अधूरी है और सभी आवश्यक तथ्यों का खुलासा नहीं करती है। संबंधित तथ्यों और परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन लखनऊ के माध्यम से राज्य सरकार सहित अन्य को पक्षकार बनाया गया है और उनसे प्रकरण से जुड़े सभी पहलुओं पर, नोटिस प्राप्ति के एक माह के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।

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