Newstrack Special: सोनभद्र से जुड़ी है मां सीता और प्रभु राम के वनवास की यादें, कहीं पदचिन्ह तो कहीं शिलाखंड बयां करते नजर आते हैं श्रीराम गाथा

Sonbhadra News: बताते चलें कि सोनभद्र के बभनी सीमा से सटे छत्तीसगढ़ चंद किमी अंदर जाने पर ही भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की मौजूदगी से जुड़े कई चिन्ह मिलते हैं। वहां की सरकार ने इन चिन्हों को पर्यटन का भी बड़ा जरिया बनाया हुआ है।

Update:2024-01-21 17:16 IST

सोनभद्र से जुड़ी है मां सीता और प्रभु राम के वनवास की यादें, कहीं पदचिन्ह तो कहीं शिलाखंड बयां करते नजर आते हैं श्रीराम गाथा: Photo- Social Media

Sonbhadra News: सोनभद्र से प्रभु राम के वनवास की यादें जुड़ी हुई है। आदिवासी समाज इन यादों को लेकर जहां खुद को भगवान राम से जुड़ा होने का दावा करता है। वहीं, दूसरे लोग भी श्रीराम के वनवास से जुड़ी यादों को लेकर श्रद्धा जताते नजर आते हैं। खासकर मध्यप्रदेश की सीमा से सटे घोरावल इलाके और छत्तीसगढ़ से सटे बभनी इलाके में दावा किया जाता है कि दंडकारण्य के लिए जाते वक्त प्रभु श्रीराम ने माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ, दोनों जगहों पर रात गुजारी थी। यही कारण है कि कहीं पदचिन्हों के निशान तो कहीं शिलाखंडों के बीच जमी ओस की बूंदें, आज भी यहां के लोगों को सोनभद्र के रास्ते भगवान राम के वनगमन की कहानी याद दिलाती रहती हैं।

यहां पहाड़ी की चोटी पर राम, सीता और लक्ष्मण के विश्राम की है मान्यता

सोनभद्र से जुड़ी भगवान राम की यादों का जिक्र 226 वर्ष पूर्व कैप्टन जेटी ब्लंट की तरफ से जारी यात्रा वृत्तांत में हो चुका हैं। वहीं, युवा इतिहासकार डा. संजय कुमार सिंह की तरफ से भी अपनी रचनाओं में इसका जिक्र किया जाता रहा है। विभिन्न क्लाजों में प्रतिपादित यात्रा वृत्तांत में जेटी ब्लंट ने सोन नदी से सटी, शिल्पी गांव की पहाड़ी से सोन नदी का अप्रतिम मनोहरी दृश्य दिखने की बात का उल्लेख करते हुए कहा कि पहाड़ी की जिस चोटी से वह सोन नदी के दृश्य को निहार रहे थे।


वहां तीन बड़ी चट्टानें देखीं, जिनके भीतर एक प्रकार की कोशिका थी और सामने एक गुफा थी, जिसमें पानी से भरा हुआ था। ब्लंट का दावा था कि यह पानी पेड़ों से गिरी ओस की बूंदों से जमा हुआ था। जब उन्होंने साथ चल रहे स्थानीय गाइड से इसके बारे में पूछताछ की तो बताया गया कि प्रभु राम के वनगमन के समय इस स्थल को भगवान राम, लक्ष्मण और मा सीता का विश्राम स्थल बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। वन की यात्रा करते समय कुछ समय के लिए वह स्थान पर रुके थे और चट्टान की खोह में जो पानी दिख रहा था, उसमें अपने पांव धोए थे।

यहां की पहाड़ी पर मिलते हैं भगवान राम के पदचिन्ह के निशान

छत्तीसगढ़ से सटे बभनी इलाके के सेंदूर गांव में अजीर नदी से सटे पहाड़ी पर भी वन की यात्रा के दौरान भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के विश्राम की मान्यता है। पहाड़ी पर मौजूद एक पत्थर में मौजूद पदचिन्ह को भगवान राम का पदचिन्ह होने का दावा किया जाता है। ग्रामीणों की मान्यता है कि प्रयागराज से आगे बढ़ने पर उन्होंने पहला विश्राम सोन नदी किनारे शिल्पी की पहाड़ी पर और दूसरा विश्राम सिंदूर गांव की पहाड़ी पर किया था। मान्यता है कि अजीर नदी में ही, उन लोगों ने स्नान किया था। इसके बाद पहाड़ी पर विश्राम कर अपनी थकान मिटाई थी। अगले दिन वह यहां से छत्तीसगढ़ की सीमा में दाखिल हो गए थे। जाते-जाते प्रभु राम ने पदचिन्ह के रूप में अपनी मौजूदगी का प्रमाण यहां छोड़ दिया था। यह पदचिन्ह आज भी जिले के लोगों के साथ ही, सीमावर्ती राज्यों में श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। खासकर आदिवासी समाज में इस स्थल को लेकर विशेष मान्यता है।




 बताते चलें कि सोनभद्र के बभनी सीमा से सटे छत्तीसगढ़ चंद किमी अंदर जाने पर ही भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की मौजूदगी से जुड़े कई चिन्ह मिलते हैं। वहां की सरकार ने इन चिन्हों को पर्यटन का भी बड़ा जरिया बनाया हुआ है। सोनभद्र में भी इन चिन्हों-मान्यताओं को सहेजने का काम किया जाए तो भगवान राम से यह जुड़े प्रमाण, श्रद्धा के साथ ही पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र साबित हो सकते हैं।

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