Sonbhadra News: कजरी महोत्सव: कलाकारों-छात्राओं ने दी अद्भुत प्रस्तुति, नृत्य नाटिका के जरिए उकेरे विविध रंग

Sonbhadra News: कजरी गायन में प्रयागराज से आईं आश्रया द्विवेदी, गोरखपुर से आए राकेश उपाध्याय ने जहां मन को झंकृत कर देने वाली प्रस्तुति दी। वहीं कजरी गायन एवं नृत्य के जरिए विन्ध्य कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय की छात्राओं तथा नृत्य नाटिका पर वाराणसी से आई शिवानी मिश्रा की प्रस्तुति मंत्रमुग्ध कर देने वाली रही।

Update:2024-09-18 20:23 IST

Sonbhadra News

Sonbhadra News: भाद्रमास मास की पूर्णिमा तिथि पर राजकीय इंजीनियरिंग कालेज में आयोजित कजरी महोत्सव में सूबे के कई हिस्सों से आए कलाकारों और स्थानीय छात्राओं ने मनोहारी प्रस्तुति दी। मंगलवार की रात आयोजित कार्यक्रम में, गायन और नृत्य की एक से बढ़कर प्रस्तुति देने के साथ ही, नृत्य नाटिका के जरिए भी मंत्रमुग्ध कर देने वाली सतरंगी छटा बिखेरी गई। संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश,उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान लखनऊ, भातखण्डे संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ,राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज सोनभद्र और जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वाचधान में आयोजित कार्यक्रम का बतौर मुख्य अतिथि जिलाधिकारी बद्री नाथ सिंह, निदेशक उत्तर प्रदेश लोक कला एवं जनजाति संस्कृति संस्थान अतुल द्विवेदी,इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक जीएस तोमर ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

इन प्रस्तुतियों ने बनाए रखा कार्यक्रम का आकर्षण:

कजरी गायन में प्रयागराज से आईं आश्रया द्विवेदी, गोरखपुर से आए राकेश उपाध्याय ने जहां मन को झंकृत कर देने वाली प्रस्तुति दी। वहीं कजरी गायन एवं नृत्य के जरिए विन्ध्य कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय की छात्राओं तथा नृत्य नाटिका पर वाराणसी से आई शिवानी मिश्रा की प्रस्तुति मंत्रमुग्ध कर देने वाली रही। मिर्जापुर से आई फगुनी देवी का कजरी गायन-नृत्य, सोनभद्र की आशा देवी की तरफ से डोमकच, झूमर लोक शैली आधारित नृत्य नाटिका की प्रस्तुति देर तक लोगों को बांधे रही।


मन को तृप्त कर देने वाला होता है कजरी का गायन: डीएम

डीएम बीएन सिंह ने कहा कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है। इसकी उत्पत्ति सोनभद्र व मिर्जापुर से मानी जाती है। मुख्यतः यह वर्षा ऋतु का लोकगीत है जिसे मुख्यतः श्रावण और भाद्रपद माह में गाया जाता है। वर्षा ऋतु का वर्णन विरह-वर्णन तथा राधा-कृष्ण की लीलाओं से भरा कजरी गीत का गायन मन को तृप्त कर देने वाला होता है।


कजरी विधा को संवर्धित किए जाने की जरूरत: अतुल

निदेशक लोककला-संस्कृति अतुल द्विवेदी ने कहा कि कजरी का विकास अर्ध-शास्त्रीय गायन की जीवंत शैली के रूप में हुआ है। कभी सरनाम रही सोनभद्र-मिर्जापुर की कजरी अब केवल बनारस घराने तक ही सिमित होता जा रहा है, इसको देखते हुए गायन की कजरी विधा को संवर्धित किए जाने की जरूरत है।


कजरी में रिश्तों के हर मेल का मिलता है अनूठा संगम

राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक जीएस तोमर ने कहा कि कजरी गायन पति-पत्नी के बीच के श्रृंगार, प्रेम, विरह को खूबसूरत तरीक से रेखांकित तो करता ही है, इसमें ननद-भाभी, सास-बहू, देवर-भाभी के संबंध भी, खूबसूरती से पिरोए मिलते हैं। आलोक कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि कजरी एक विधा नहीं बल्कि वह जीवंत शैली है, जिसके जरिए महिलाएं अपने प्रेम, वेदना, श्रृंगार को बयां करती हैं। विंध्य कन्या पीजी कालेज की प्राचार्य डॉ. अंजलि विक्रम सिंह ने कहा कि ने कहा की कजरी के माध्यम से ननद-भाभी के नटखट रिश्ते, देवर भाभी के बीच के पवित्र संबंध, सास बहू के बीच की नोकझोंक को सुनकर मन को असीम तृप्ति मिलती है। इस दौरान अजय कुमार सिंह, डीडीओ शेषनाथ चौहान, समाज कल्याण अधिकारी रमाशंकर यादव, अपर जिला सूूचना अधिकारी विनय कुमार सिंह सहित अन्य मौजूद रहे।

Tags:    

Similar News