कानपुर की कहानी: ऐसे बना 'कानपुर नगर' और 'कानपुर देहात', यहां पढ़ें इसके बारे में

मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में रिसालदार कुंवरसिंह, जो क्षत्रिय थे तथा सम्भवतः जिन्होनें इस नये कस्बे का निर्माण कराया था इसका नाम गुड़ईखेड़ा से बदल कर 'अकबरपुर' कर दिया गया। इस तहसील का पुराना नाम शाहपुर-अकबरपुर भी लिखा है।

Update:2020-11-07 17:31 IST
कानपुर की कहानी: ऐसे बना 'कानपुर नगर' और 'कानपुर देहात', यहां पढ़ें इसके बारे में

कानपुर: लगभग 150 वर्ष पहले परगना अकबरपुर, शाहपुर एवं अकबरपुर बीरबल के नाम से जाना जाता था। कानपुर जिले की एक रपट माउण्टगोमरी ने लिखी थी जिसके अनुसार शाहपुर का नाम था गुड़ईखेड़ा। सम्राट अकबर के दीवान शीतल शुक्ल का उल्लेख 1878 मे प्रकाशित एफ.एन.राइट की पुस्तक 'स्टेस्टिकल डिस्क्रिप्टिव एण्ड हिस्टोरिक एकाउण्ट में तथा माउण्ट गोमरी के गजेटियर मे उल्लेख है कि अकबरपुर मे शीतल शुक्ल तथा छब्बा कलार द्वारा दो तालाब निर्मित कराये गये। प्राचीन काल मे यह कस्बा बहुत सुन्दर बसा हुआ था। 1847 मे इसकी जनसंख्या 5485 थी।

इस तहसील का पुराना नाम शाहपुर-अकबरपुर

मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में रिसालदार कुंवरसिंह, जो क्षत्रिय थे तथा सम्भवतः जिन्होनें इस नये कस्बे का निर्माण कराया था इसका नाम गुड़ईखेड़ा से बदल कर 'अकबरपुर' कर दिया गया। इस तहसील का पुराना नाम शाहपुर-अकबरपुर भी लिखा है। यहां जहानाबाद के नवाब अल्मास अली खां के आमिल शीतल शुक्ल का बनवाया अत्यंत सुन्दर एवं प्रसिद्ध तालाब भी है। 1857 के गदर में शुक्ल तालाब के पास ही एक नीम का पेड़ में 7 व्यक्तियों को अंग्रेजों द्वारा फांसी दी गयी। यहां एक बड़ा किला भी था जिसे गदर काल में गिरा कर उसी स्थान पर तहसील का निर्माण किया गया जिसे पुरानी तहसील के रूप में जाना जाता है।

अकबरपुर कानपुर नगर की स्थापना के पूर्व ही कानपुर क्षेत्र की केन्द्रीय नगरी के रूप में स्थापित रहा है। सभी प्राचीन केन्द्रीय सत्ताओं का प्रयास रहा कि कन्नौज, शिवराजपुर, अकबरपुर को दिल्ली से जोड़े रखा जाये। परन्तु ये नगर अपने पृथक अस्तित्व को बनाये रखने मे सफल रहे। गंगा व यमुना के मध्य दोआब मे भूमि उपज के निर्यातकों में अकबरपुर, शिवराजपुर एवं सिकन्दरा पुराने नगर रहे है।

ये भी देखें: भारत स्काउट एवं गाइड की स्थापना दिवस पर राज्यपाल को लगाया स्टीकर

लक्ष्मीपुरवा के रूप मे भी जाना जाता रहा है

जनश्रुति के अनुसार इसे लक्ष्मीपुरवा के रूप मे भी जाना जाता रहा है। दसवीं सदी में क्षत्रियों द्वारा इस पर अधिकार कर लिया गया। लुटेरों द्वारा खुदे खण्डहरों के कारण इसे गुड़ईखेड़ा भी कहा गया है। दूसरी कथा के अनुसार अकबरपुर की पुरातन नगरी में गुणीजन अर्थात गायन, वादन कला में पारंगत लोगों के कारण इसे गुड़ईखेड़ा कहा गया है। कहीं-कहीं परम्परा के रूप में पूजा अर्चना में संगीत की बेलायें अब भी सुनने में आती है। अकबरपुर के पीछे गुड़ईखेड़ा, शाहपुर व अकबरपुर के नामों की श्रंखला जुड़ी है।

ये भी देखें: बिकरू कांड: एसआईटी की जांच रिपोर्ट, यह आईपीएस अधिकारी आया शक के घेरे

इतिहासकार श्रीधर शास्त्री विमल के अनुसार

अकबरपुर के इतिहासकार श्रीधर शास्त्री विमल के अनुसार सन् 1413 से 1451 तक दिल्ली की गद्दी पर बहादुरशाह बैठा। उसके सेनापति मुबारकशाह ने विद्रोह दबाने के नाम पर सन् 1474 में इस नगर को लूटा तथा क्षत्रिय शासक को मार डाला तथा अपने नाम पर इसका नाम शाहपुर रख दिया। जैनपुर औद्योगिक क्षेत्र की खुदाई में बहादुरशाह के सिक्के प्राप्त हुये है। बाजार क्षेत्र में शेरशाह द्वारा पक्की सरायं बनवायी गयी व पहली बार डाक वितरण घुड़सवार द्वारा करने की व्यवस्था की गयी।

रिपोर्ट- मनोज सिंह, कानपुर

दो देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें

Tags:    

Similar News