UP Nikay Chunav...जब तवायफ की सुंदरता में खोये लोगों ने चुनाव लड़ने से किया था इनकार, नतीजों ने सबको चौंका दिया

UP Nikay Chunav- 1920 में नगर पालिका बोर्ड के चुनाव में एक तवायफ और एक हकीम के बीच हुई कांटे की टक्कर आज भी लोगों के जेहन में है। उस दौरान शहर की दीवारें शेरो-शायरी से पट गई थीं।

Update: 2023-04-28 17:37 GMT
कहानी लखनऊ के एक चुनाव की

UP Nikay Chunav- उत्तर प्रदेश में इन दिनों निकाय चुनाव चल रहे हैं। चौक-चौराहों से लेकर गली मोहल्ले में प्रत्याशी और उनके समर्थकों का जमावड़ा है। ऐसे में निकाय चुनाव से जुड़े दिलचस्प किस्से भी सामने आने लगे हैं। ऐसा ही एक किस्सा है लखनऊ की एक खूबसूरत तवायफ का, जिसके पर्चा भरते ही दिग्गज प्रत्याशियों ने मैदान छोड़ दिया था। लेकिन, बाद में आये चुनावी नतीजों ने लोगों को हैरत में डाल दिया था।

दरअसल, बात उस दौर की है, जब 1920 में नगर पालिका बोर्ड के चुनाव का बिगुल बजा था। संभावित प्रत्याशी पहले ही ताल ठोंक रहे थे। तभी अचानक शहर की मशहूत तवायफ दिलरूबा जान ने पर्चा भरा दिया। दिलरुबा के पर्चा भरते ही बड़े-बड़े दिग्गजों ने अपना नाम वापस ले लिया था। उस दौर में शहर में बहुत सारे कोठे हुआ करते थे। इनमें से एक कोठा था चौक का, जिसमें रहती थी दिलरुबा जान। उसकी सुंदरता की चर्चा शहर ही नहीं आसपास के जिलों में भी थी। अपने लटके-झटकों उसने बहुत से लोगों को दिवाना बना रखा था।

दिलरुबा के पर्चा भरते ही लगा कि वह निर्विरोध ही जीत जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐन वक्त पर एक हकीम साहब ने चुनाव मैदान में उतर आये। दोस्तों ने जबरन उन्हें चुनाव लड़वा दिया। दिलरुबा को भरोसा था कि चुनाव वह जीतेगी। वहीं, चौक अकबरी गेट के रहने वाले हकीम शम्सुद्दीन जीत को लेकर आशंकित थे। क्योंकि, दिलरुबा को पूरा शहर जानता था, लेकिन हकीम साहब को को उनके परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों और कुछ मरीजों के अलावा उन्हें कोई नहीं जानता था।

जीत के प्रति आश्वस्त थी दिलरुबा

नगर पालिका बोर्ड के चुनाव में जो मुकाबला हुआ, उसे आज भी लोग याद करते हैं। हकीम साहब चुनाव प्रचार तो करते रहे, लेकिन साथ ही दोस्तों से झगड़ते रहे कि उन्हें कहां फंसा दिया। मतदान के दिन लोगों ने जमकर वोट डाले। नतीजों के दिन सबकी सांसें अटकी थीं। मुकाबला कांटे का था। कभी दिलरुबा आगे तो कभी हकीम साहब। अंत तक हुई काउंटिग के नतीजों में दिलरुबा हार गई और हकीम साहब विजयी रहे।

"शहर में आशिक कम मरीज ज्यादा हैं"

दिलरुबा को तो अपनी हार पर भरोसा ही नहीं हुआ। नतीजों पर उसने इतना ही कहा कि आज पता चला कि शहर में आशिक कम मरीज ज्यादा हैं। चुनाव के इस किस्से को 2015 में इतिहासकार योगेश प्रवीन ने अपनी किताब 'तवायफ' में किया है। वह बताते हैं कि इस चुनाव में दोनों ने खूब शेरो-शायरी से प्रचार किया था।

हकीम साहब ने दीवारों में लिखवाया था-
हिदायत चौक के हर वोटरे-ए-शौकिन को,
दिल दीजिए दिलरुबा को वोट शम्सुद्दीन को

दिलरुबा ने शहर भर की दीवारों पर लिखवाया था-
हिदायत चौक के हर वोटरे-ए-शौकिन को,
वोट देना दिलरुबा को नब्ज शम्सुद्दीन को

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