बदहाल गांव की कहानी: 70 बरस बीत गे दादु! अबै तक कौनो नहीं आवा वोट मांगै...

आपको यकीन नहीं होगा कि आज भी एक गांव ऐसा है चित्रकूट में जहां आजादी के बाद से अब तक कोई भी नेता इस गांव में नहीं गया। न ही चुनाव के समय और न ही चुनाव के बाद। ऐसा गांव है मानिकपुर तहसील के अंर्तगत आने वाला गढ़चपा ग्राम पंचायत का बड़ेहार का पुरवा।

Update: 2019-10-25 12:50 GMT

चित्रकूट: आपको यकीन नहीं होगा कि आज भी एक गांव ऐसा है चित्रकूट में जहां आजादी के बाद से अब तक कोई भी नेता इस गांव में नहीं गया। न ही चुनाव के समय और न ही चुनाव के बाद। ऐसा गांव है मानिकपुर तहसील के अंर्तगत आने वाला गढ़चपा ग्राम पंचायत का बड़ेहार का पुरवा।

अब अंदाजा लगाइए की ऐसे गांव में विकास की कितनी उम्मीद है, क्योंकि जिन गांवों में नेता जी जाते भी हैं वहां भी विकास कराह रहा है। मौजूदा समय में चित्रकूट की 237-मानिकपुर विधानसभा में उपचुनाव भी हो गया और ये गांव इसी विधानसभा में आता है, लेकिन इस बार भी अब तक इस गांव में कोई भी प्रत्याशी वोट मांगने तक नहीं गया। यहां की बदहाली और उपेक्षा का एक उदाहरण ये भी है कि इस गांव में किसी भी पीढ़ी ने परोक्ष रूप से अब तक स्कूल का मुंह तक नहीं देखा। जी हां अंत्योदय की बात करने वाली सरकारें भी इस गांव की बदहाली आज तक सुधार नहीं पाई हैं।

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गढ़चपा ग्राम पंचायत के बड़ाहार मजरे की मौजूदा हालत बदतर है। फिलहाल बीते 70 वर्ष के बाद अब बिजली आ गई है। मौजूदा प्रधान के परिश्रम ने यहां ज्यादा से ज्यादा आवास पहुंचाने में मदद की, गांव में मनरेगा के तहत कुछ दूर तक आवागमन हेतु मिट्टी भी डलवा दी, लेकिन वन विभाग की अड़चन और जनप्रतिनिधियों की असंवेदनशीलता के चलते इस गांव का मुख्य सड़क से आज तक कोई सीधा संपर्क नहीं है।

इस गांव में कोल आदिवासी रहते हैं जिनके सामने दस्यु समस्या भी किसी मुसीबत से कम नहीं। गांव में न तो स्कूल है और न ही पर्याप्त मात्रा में पेयजल की व्यवस्था। इस गांव में निवास करने वाली आबादी में आधे से से ज्यादा पुरुष रोजगार की तलाश में परदेश पलायन कर चुके हैं। चारों तरफ घने जंगल में घिरे इस गांव में पेयजल सबसे बड़ा संकट है।

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इस गांव में सरकारी सिस्टम कैसे फेल नजर आता है इसकी बानगी भर ये है कि गांव में लेखपाल भी कभी नहीं आता। बाकी प्रधान महीने में तीन-चार बार आ ही जाते हैं। चुनावी बयार के बीच सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि आखिर इस लोकतंत्र में मतदाता कब तक सियासी हुक्मरानों की बेड़ियों में जकड़े रहेंगें और उनके झूठे आश्वासन पर अगले 5 वर्ष शांति से बिता देंगे।

आजादी के बाद विकास की दौड़ लगाते भारत ने बीते 6 दशकों में नई बुलंदियों को छुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और बुनियादी सुविधाएं दूर-दराज के इलाकों में पहुंची हैं। लेकिन डिजिटल होते और चमचमाते इंडिया में ऐसे गांव भी हैं जहां आज भी बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंची हैं। ये कहानी एक ऐसे ही गांव की है।

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जिला चित्रकूट ब्लाक मानिकपुर गांव गढ़चपा का बड़ाहार पुरवा जहां विकास नहीं है। यहां के लोगों का कहना है की क्या हम आदिवासी हैं इसलिए हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है? हम यहां पर लगभग तीन पीढ़ी से रहते हैं यहां पर हम लोग को विद्यालय नहीं है ना यहां पर सड़क आने जाने के लिए है और न ही यहां पर कोई पानी की सुविधा।

लोगों ने कहा कि यहां पर 300 लोगों पर एक हैंडपंप है और वह बिगड़ जाता है तो हम जंगल के बीहड़ से चूड़ा में 5 किलोमीटर दूर से पानी लाकर गुजारा करते हैं। गांव के प्रधान का कहना है कि मैं अपने तरफ से पहला काम इसी गांव में किया।

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