Swami Prasad Maurya: लंबे समय से प्रदेश की सियासत में छाए रहे हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, बसपा और भाजपा के बाद अब सपा नेता के रूप में मुखर
Swami Prasad Maurya: विवादित बयानों को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से सपा में ही आवाज मुखर हो रही थी जिसके बाद उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान किया है। अपने पत्र में उन्होंने कुछ नेताओं को छुटभैया बताया है तो कुछ वरिष्ठ नेताओं पर भी निशाना साधा है।
Swami Prasad Maurya: अपने विवादित बयानों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है। सपा मुखिया अखिलेश यादव को लिखे गए लंबे-चौड़े पत्र में उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान किया। हालांकि उन्होंने अभी समाजवादी पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है और वे सपा के एमएलसी बने रहेंगे।
उन्होंने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि राष्ट्रीय महासचिव पद छोड़ने के बावजूद वे पार्टी को सशक्त बनाने के लिए पूरी तरह तत्पर रहेंगे। विवादित बयानों को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से सपा में ही आवाज मुखर हो रही थी जिसके बाद उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान किया है। अपने पत्र में उन्होंने कुछ नेताओं को छुटभैया बताया है तो कुछ वरिष्ठ नेताओं पर भी निशाना साधा है। स्वामी प्रसाद मौर्य लंबे समय से प्रदेश की सियासत में चर्चाओं में बने रहे हैं। ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के सियासी सफर को जानना जरूरी है।
1980 में हुई सियासी सफर की शुरुआत
स्वामी प्रसाद मौर्य मूलरूप से प्रतापगढ़ जिले में चकवाड़ के रहने वाले हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य का जन्म 2 जनवरी 1954 को चकवाड़, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में बदलू मौर्य के यहां हुआ। उनकी शादी शिव मौर्य से हुई है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए और लॉ स्नातक की डिग्री ले रखी है।मौर्य ने 1980 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत राष्ट्रीय लोकदल से की थी।
सबसे पहले वे लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य बने और जून 1981 से 89 तक महामंत्री भी रहे। 1989 से 91 तक वे यूपी लोकदल के सचिव भी रहे। इसके बाद उन्होंने जनता दल का दामन पकड़ा और 1991 से 95 तक इस पार्टी के महासचिव पद पर रहे। उन्होंने दो जनवरी 1996 को बसपा की सदस्यता ली और पार्टी के प्रदेश महासचिव बने।
बसपा में जाने के बाद सितारे हुए बुलंद
बसपा की सदस्यता लेने के बाद ही सियासी मैदान में स्वामी प्रसाद मौर्य के सितारे बुलंद हुए। बसपा के टिकट पर 1996 में रायबरेली जिले के डलमउ विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनकर वे पहली बार सदन पहुंचे। मई 2002 से अगस्त 2003 तक मंत्री रहे। अगस्त 2003 से बसपा के नेता प्रतिपक्ष रहे। 2007 से 2009 तक बसपा सरकार में मंत्री भी रहे। इसी वर्ष उन्होंने कुशीनगर जिले की तरफ राजनीतिक कदम बढ़ाया। 2009 में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार के रूप में कुशीनगर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
पडरौना सीट पर लगाई जीत की हैट्रिक
2009 में आरपीएन सिंह के चुनाव जीतकर सांसद बनने के बाद खाली हुई पडरौना विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव पुन: बसपा के उम्मीदवार के रूप में मौर्य चुनाव लड़े और जीत मिली। 2012 में भी उन्होंने पडरौना विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। इसके बाद उनका बसपा से मोह भंग हो गया और उन्होंने आठ अगस्त 2016 को बसपा से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली।
2017 में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार के रूप में पडरौना विधानसभा सीट पर जीत हासिल करते हुए हैट्रिक लगाने में कामयाबी हासिल की। मौर्य की बेटी संघमित्रा भाजपा से ही बदायूं से सांसद हैं। 2017 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर स्वामी प्रसाद मौर्य को योगी कैबिनेट में भी जगह मिली थी।
भाजपा से इस्तीफा देकर सपा में हुए शामिल
2022 के विधानसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ ही भाजपा को भी बाय-बाय बोल दिया। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात कर उन्होंने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। सपा अध्यक्ष ने भी बड़ी गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया और स्वामी प्रसाद मौर्य को सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई लड़ने वाला करार दिया। बीजेपी छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य समर्थकों के साथ सपा में शामिल हो गए।
फाजिलनगर से मिली चुनावी हार
सपा ने कुशीनगर के पडरौना से उनकी सीट बदल दी। मौर्य पिछड़े और मुस्लिम बहुल फाजिलनगर से चुनावी मैदान में उतरे। हालांकि, अखिलेश की इस रणनीति में सपा के कद्दावर नेता इलियास ने ही पानी फेर दिया।
सपा से टिकट न मिलने के बाद इलियास बसपा के टिकट से मैदान में उतर गए। बीजेपी ने स्वामी के मुकाबले सुरेंद्र कुशवाहा को फाजिलनगर से टिकट दिया। चुनाव में मौर्य को 35 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा।
हार के बाद अखिलेश ने बनाया एमएलसी
हालांकि विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य का सम्मान बरकरार रखा और उन्हें विधान परिषद भेज दिया। स्वामी प्रसाद ओबीसी समुदाय की मौर्य जाति से आते हैं और शुरुआत से ही दलित और पिछड़ों की राजनीति करते रहे हैं। बाद में उन्हें सपा का राष्ट्रीय महासचिव में बनाया गया था मगर अब मौर्य ने इस पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि उन्होंने अभी सपा से इस्तीफा नहीं दिया है।