टपकेश्वर महादेव: इस मंदिर का ये सच जानकर हो जाएंगे हैरान
शिव शंकर के देशभर में ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में ऐस कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका इतिहास रामायण, महाभारत आदि से जुड़ा हुआ है। ऐसा ही भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है। इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, यही कारण है कि यह मंदिर अपने आप में खास माना जाता है।
देहरादून: भगवान शिव शंकर के देशभर में ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में ऐस कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका इतिहास रामायण, महाभारत आदि से जुड़ा हुआ है। ऐसा ही भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है। इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, यही कारण है कि यह मंदिर अपने आप में खास माना जाता है।
घने जंगल के बीच पहाड़ी पर टपकेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना है। पहाड़ी पर आसपास पानी का कोई स्रोत नहीं है, फिर भी यहां हमेशा शिवलिंग पर पानी टपकता रहता है यानी यहां साल भर प्राकृतिक शिवाभिषेक होता है। गुफा के अंदर दूसरी गुफा है जिसमें 7 फीट नीचे पानी की जलधारा बह रही है। यह कहां बहती है, यह भी आसपास दिखाई नहीं देता।
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कहते हैं कि टपकेश्वर महादेव मंदिर में सावन या शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक करने से मनोकामना की पूर्ति होती है। मान्यता के अनुसार टपकेश्वर महादेव मंदिर में आने वाले लोगों की मनोकामना पूर्ति होती है। कल सावन की शिवरात्रि है तो शायद संभव हो तो आप जलाभिषेक कर मनोवांछित फल पा सकते हैं।
गुरु द्रोणाचार्य जुड़ा है इतिहास
मान्यता है कि महाभारत युद्ध से पहले गुरु द्रोणाचार्य अनेक स्थानों का भ्रमण करते हुए हिमालय पहुंचे। जहां उन्होंने एक ऋषिराज से पूछा कि उन्हें भगवान शंकर के दर्शन कहां होंगे। मुनि ने उन्हें गंगा और यमुना की जलधारा के बीच बहने वाली तमसा (देवधारा) नदी के पास गुफा में जाने का मार्ग बताते हुए कहा कि यहीं स्वयंभू शिवलिंग विराजमान हैं। जब द्रोणाचार्य यहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि शेर और हिरन आपसी बैर भूल एक ही घाट पर पानी पी रहे थे।
द्रोण पुत्र अश्वत्थामा की जन्मस्थान
उन्होंने घोर तपस्या कर शिव के दर्शन किए तो उन्होंने शिव से धर्नुविद्या का ज्ञान मांगा। एक लोक मान्यता यह भी है कि गुरू द्रोणाचार्य को इसी स्थान पर भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त हुआ था। स्वयं महादेव ने आचार्य को यहां अस्त्र-शस्त्र और पूर्ण धनुर्विद्या का ज्ञान दिया था।कहा जाता है कि भगवान शिव रोज प्रकट होते और द्रोण को धर्नुविद्या का पाठ पढ़ाते। द्रोण पुत्र अश्वत्थामा की जन्मस्थान भी यही है। उन्होंने भी यहां छह माह तक एक पैर पर खड़े होकर कठोर साधना की थी।मान्यता यह भी है कि अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव से अमरता का वरदान मिला।
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उनकी गुफा भी यहीं है जहां उनकी एक प्रतिमा भी विराजमान है। एक और मान्यता है कि टपकेश्वर के स्वयं-भू शिवलिंग में द्वापर युग में दूध टपकता था, जो कलयुग में पानी में बदल गया। आज भी शिवलिंग के ऊपर निरंतर जल टपकता रहता है। हर साल फागुन में महाशिवरात्रि और श्रावण मास की शिवरात्रि पर टपकेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक के लिए हजारों श्रद्धालु आते हैं।
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