उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में स्थित 'चंद्रकांता' के विजयगढ़ दुर्ग का तिलिस्म

टीवी पर चंद्रकांता सीरियल के माध्यम से चर्चा का विषय बना उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में स्थित विजयगढ़ दुर्ग की मूलभूत संरचना, इसके निर्माण का समय और इसके ऊपर बने तालाबों की तकनीक का भेद जानने के लिए कई बार प्रयास करने के बावजूद इसका तिलिस्म अभी भी अभेद्य बना हुआ है ।

Update:2019-06-02 12:27 IST

लखनऊ: टीवी पर चंद्रकांता सीरियल के माध्यम से चर्चा का विषय बना उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में स्थित विजयगढ़ दुर्ग की मूलभूत संरचना, इसके निर्माण का समय और इसके ऊपर बने तालाबों की तकनीक का भेद जानने के लिए कई बार प्रयास करने के बावजूद इसका तिलिस्म अभी भी अभेद्य बना हुआ है ।

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प्रसिद्ध इतिहासकार और 'सोनभद्र का इतिहास' पुस्तक के रचयिता डॉ. जितेंद्र कुमार सिंह ने बातचीत में कहा, 'सोनभद्र की अनमोल थाती और भारतीय पुरातत्व विभाग के इस अनूठी धरोहर (दुर्ग) के ऊपर सैकड़ों फीट की उंचाई पर स्थित रामसागर, किरणसागर सहित सात सरोवर और उनमें वर्ष भर भरा रहने वाला पानी जहां विस्मित कर देता है, वहीं दुर्ग के अंदर छिपे राज और इससे जुड़े कहानी-किस्से भी सदियों से लोगों के लिए रहस्य और आकर्षण का कारण बने हुए हैं ।'

उन्होंने कहा, 'किले की मूलभूत संरचना, इसकी वास्तविक आयु, इसके उपर निर्मित तालाबों से जुड़़ी तकनीक को जानने के लिए कई बार शोध किए गए, लैब जांच हुई । बावजूद इस किले का राज अभी भी अनसुलझा पड़ा है ।'

शोधकर्ता शहरयार ने कहा, 'देवकीनंदन खत्री रचित उपन्यास चंद्रकांता और उससे जुड़ी चंद्रकांता संतति (सात भाग) ने पूरी दुनिया में इसे नई पहचान दिलाई । रूपहले पर्दे पर 1994 में पहली बार आए चंद्रकांता सीरियल (नीरजा गुलेरी निर्देशित तिलिस्मी प्रेमगाथा चंद्रकांता) ने इस दुर्ग को बच्चे-बच्चे की जुबान पर ला दिया ।

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2012 में बीएचयू की एक टीम ने दुर्ग का दौरा कर इसकी उम्र सहित अन्य राज सुलझाने के लिए यहां से कई नमूने उठाए। देश के बाहर की प्रयोगशालाओं में परीक्षण भी करवाया लेकिन दुर्ग के तिलिस्मी राज पर से अब तक पर्दा नहीं उठ पाया ।'

उन्होंने बताया कि हजारों वर्ष बाद भी इस दुर्ग पर उकेरीं अनूठी कृतियां, विशाल दरवाजा, खंडहर की शक्ल में तब्दील हो चले बड़े-बड़े परकोटे, उपेक्षा के चलते ढहती प्राचीरों का सौंदर्य लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है । मुख्य द्वार का रास्ता दुर्गम और झाड़-झंखाड़ से भरा होने के कारण यहां खिड़की के रास्ते आना-जाना होता है ।

जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूरी स्थित इस दुर्ग के आसपास की हरी-भरी वादियां मन प्रफुल्लित कर देती हैं । नए सिरे से निर्मित खिड़की वाली सीढ़ी के जरिए लगभग एक हजार फीट की ऊंचाई चढ़ने के बाद सामने का नजारा मन खुश कर देता है ।

शहरयार ने बताया कि इसके बाद इतनी ऊंचाई पर स्थित एक-एक कर सात तालाब, परकोटे और प्राचीरों की बनावट और तीन किलोमीटर क्षेत्र में फैली समतल जगह देख अपनी आंखों पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है । बीच में एक गणेश मंदिर, कुछ दूरी पर काली मंदिर और उससे कुछ दूरी पर मजार है । अलग-अलग समय पर यहां विराट हिंदू मेला और विशाल उर्स का आयोजन किया जाता है ।

उन्होंने बताया कि दुर्ग के नीचे जाने के लिए सीढ़ियों भरा एक रास्ता मौजूद है, जिसे सुरक्षा कारणों से काफी पहले बंद किया जा चुका है । मेन गेट पर ब्रह्मलिपि में इस दुर्ग से जुड़ी कई बातें भी अंकित हैं ।

सिंह बताते हैं कि काशी के ब्रह्मदत्त वंश के विख्यात शासक विजयदत्त ने दक्षिणी काशी में विन्ध्य पर्वत के विजयगिरि क्षेत्र में विजयगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया । बाद में इस पर शिशुनाग वंश, मौर्य वंश, भारशिव वंश, मौखरि वंश, चेरो वंश, गुप्त वंश, खरवार वंश और चंदेल शासकों का अधिकार रहा ।

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चंदेलों के शासन के समय 1744 ईस्वी से 1781 ईस्वी तक काशी नरेश बलवंत सिंह और चेतसिंह ने इस पर शासन किया । इसके बाद से इसे चेतसिंह दुर्ग के नाम से पहचाना जाने लगा । चेतसिंह के बाद इस दुर्ग पर अंग्रेजों का राज हुआ। अगस्त क्रांति के समय राजपरिवार से जुड़े लक्ष्मण सिंह ने दुर्ग को गोरों से छीनकर, भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम का इसे साक्षी बना दिया ।

सिंह का कहना है कि विजयगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक तीनों दृष्टि से सोनभद्र की अनमोल धरोहर है । इसके संरक्षण और रखरखाव के ठोस प्रबंध होने चाहिए । साथ ही इसका मूल स्वरूप बरकरार रहे और इसके वास्तविक इतिहास का लोगों को ज्ञान मिलता रहे, इसके लिए पुरातत्व और पर्यटन दोनों विभागों को ध्यान देने की जरूरत है ।

रॉबर्ट्सगंज से विधायक भूपेश चौबे ने कहा कि विजयगढ़ दुर्ग न केवल सोनभद्र का गौरव बल्कि यह यहां की संस्कृति का हिस्सा भी है । इसके संरक्षण और रख-रखाव के लिए वह प्रयास जारी रखे हुए हैं । रॉबर्ट्सगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से अपना दल :एस: के सांसद पकौड़ीलाल कोल ने कहा, ' विजयगढ़ दुर्ग हमारे संसदीय क्षेत्र की ऐतिहासिक और प्राचीन धरोहर है । इसके संवर्धन और विकास के लिए हरसंभव प्रयास किया जाएगा ।'

भाषा

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